tag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post5369562209132562322..comments2024-03-18T10:35:42.392+05:30Comments on Poorvabhas: पूर्णिमा वर्मन और उनके चार नवगीत — अवनीश सिंह चौहानअवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/05755723198541317113noreply@blogger.comBlogger43125tag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-73860976284332687302020-12-15T20:17:50.074+05:302020-12-15T20:17:50.074+05:30पूर्णिमा जी के नवगीत बहुत अच्छे है बधाई पूर्णिमा जी के नवगीत बहुत अच्छे है बधाई कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवानhttps://www.blogger.com/profile/15885065966350572216noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-46491223466177085902017-02-15T05:34:28.554+05:302017-02-15T05:34:28.554+05:30टुकड़े टुकड़े टूट जाएँगे मन के मनके दर्द हरा है
व...टुकड़े टुकड़े टूट जाएँगे मन के मनके दर्द हरा है<br />वाह पूर्णिमा जी के शब्द आगाज़ कि पंक्ति से ही समां इस तरह बाँध लेटा है कि पाठक पढ़े बिना रह नहीं सकता.<br />बहुत ही सुंदर रचनायों के लिए बधाई पूर्णिमा जी<br /><br />Today Deal $50 Off : https://goo.gl/efW8EfDevi Nangranihttps://www.blogger.com/profile/08993140785099856697noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-60370631226932479192015-07-30T09:45:43.846+05:302015-07-30T09:45:43.846+05:30पूर्णिमा जी!प्रिंट माध्यम में उपेक्षित छंदों की अं...पूर्णिमा जी!प्रिंट माध्यम में उपेक्षित छंदों की अंतर्जाल पर वापसी में आपका योगदान उल्लेखनीय है। संभवतः स्वयं भी छंद विधा पर पकड़ होने और उसकी उपेक्षा न सह पाने के कारण उसकी वापसी के लिए अकुलाई होंगी। वह अकुलाहट नाना रूपों में आपके नवगीतों में अभिव्यंजित हुई है। गीत और नवगीत प्रायः अन्तर्मन की अभिव्यक्ति ही होते हैं। यह रचनाकर पर है कि वह निज को कितना समाज को अर्पित करता है। समाज को जितना वह अपने को सौंपता है उसी अनुपात में उसके गीतों में लोक स्थान पाता है। इस दृष्टि से 'दर्द हरा है'शीर्षक गीत में कवयित्री ताड़ों पर से आती गरम हवाओं के रुख को बदलने के लिए ,"गुलमोहर-सी जलती है<br />बागी़ ज्वालाएँ"लेकर सामना करने के लिए कटि बद्ध है-<br />"सीटी देती हैं<br />गर्म हवाएँ<br />जली दूब-सी <br />तलवों में चुभती<br />यात्राएँ<br />पुनर्जन्म ले कर आती हैं<br />दुर्घटनाएँ"। इन दुर्घटनाओं से आहत हो जाने से ही ,"आज सँभाले नहीं सँभलता<br />जख़्म हृदय का"। यह ज़ख्म जितनी गीतकार के भीतर के दाह के कारण है उतना ही सामाजिक जलन के ताप के बाहरी कारण से भी । <br />जीवन की आपाधापी में कवयित्री मानव मन की लाभ-लोभ की अनावश्यक वृत्ति पर क्षुब्ध है।इन पंक्तियों में कबीर की 'जागै अरु रोवै'जैसी -सी बेचैनी देखी जा सकती है "चैन कहाँ <br />अब नींद कहाँ है।"जितना पैसा उतना बढ़ता लोभ । इंसानी जीवन की इस अतृप्ति पर क्षोभ यहाँ देखा जा सकता है- <br />कितना भी हो <br />कम लगता है"। <br />शायद लोभ की इसी वृत्ति के कारण मानव जीवन से उसका रस भरा अपनापन छिन गया है-"कहाँ ढूंढ पाएँगे उसको<br />जिसमें -<br />अपनापन लगता है।" कवयित्री ऐसी समृद्धि से ऊब गई है जिसमें अपनेपन का लेश नहीं। वह वर्तमान समृद्धि को सुखदायी कम पीड़ादायी अधिक पा रही है। सच भी है किसी भी दृष्टि से देखें भौतिक सुख -सुविधाएं पर्यावरण से लेकर मानव जीवन तक के सामने अनेक संकट खड़े कर रही हैं। ऐसे कायित्री के मन का इनसे विरक्त हो जाना अस्वाभाविक नहीं लगता-"इतनी पीड़ा<br />उसका बोझा कौन उठाए।"<br />यह परिस्थितियों से भागना नहीं बल्कि मानव जीवन से गहरी संवेदना के साथ जुडने के कारण है। -डॉ गंगा प्रसाद शर्मा'गुणशेखर',ग्वाङ्ग्ज़ाऊ,चीन । <br />gunshekharhttps://www.blogger.com/profile/05501051833588102288noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-55113280856093356872013-08-08T07:57:47.938+05:302013-08-08T07:57:47.938+05:30आपकी कवितायेँ पढ़ता रहता हूँ |यह भी बहुत ही उत्कृष्...आपकी कवितायेँ पढ़ता रहता हूँ |यह भी बहुत ही उत्कृष्ट रचनाएँ हैं |<br />http://srishtiekkalpana.blogspot.in/Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/08713896589867388766noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-68399261714323797132013-07-04T13:25:01.829+05:302013-07-04T13:25:01.829+05:30हृदयस्पर्शीय रचनाएं हैं। पूर्णिमा जी ढेरों बधाई!हृदयस्पर्शीय रचनाएं हैं। पूर्णिमा जी ढेरों बधाई!DR. MANOJ SRIVASTAVhttps://www.blogger.com/profile/13634946231453881288noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-26881007203159217442013-05-11T19:21:56.810+05:302013-05-11T19:21:56.810+05:30शानदार ..दिल की गहराइयों से निकली परत दर परत पढ़ कर...शानदार ..दिल की गहराइयों से निकली परत दर परत पढ़ कर एक सुखद अहसास हुआ ....Deepika Dwivedihttps://www.blogger.com/profile/12624195379757100374noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-29717568397649935252013-04-26T12:53:18.172+05:302013-04-26T12:53:18.172+05:30दौड़ बड़ी है
समय बहुत कम
हार जीत के सारे मौसम
कहा...दौड़ बड़ी है <br />समय बहुत कम<br />हार जीत के सारे मौसम<br />कहाँ ढूंढ पाएँगे उसको<br />जिसमें -<br />अपनापन लगता है.............पूर्णिमा जी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति Pratibha gotiwalehttps://www.blogger.com/profile/04354545551414989170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-53226848149177999702013-03-26T16:31:56.142+05:302013-03-26T16:31:56.142+05:30बहुत मनभावन नवगीत! बधाई- पूर्णिमा जी ..
.डॉ सरस्व...बहुत मनभावन नवगीत! बधाई- पूर्णिमा जी ..<br />.डॉ सरस्वती माथुर Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-72890990230411668502013-02-13T17:27:14.388+05:302013-02-13T17:27:14.388+05:30कविताएं हृदयस्पर्शीय हैं।
कविताएं हृदयस्पर्शीय हैं। <br />DR. MANOJ SRIVASTAVhttps://www.blogger.com/profile/13634946231453881288noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-36339312865927512612013-01-07T08:41:55.076+05:302013-01-07T08:41:55.076+05:30Adbhut kavitayein hainAdbhut kavitayein hainAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/06231120915265544119noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-46370787874647059212012-12-08T17:02:41.811+05:302012-12-08T17:02:41.811+05:30दौड़ बड़ी है
समय बहुत कम
हार जीत के सारे मौसम
कहा...दौड़ बड़ी है <br />समय बहुत कम<br />हार जीत के सारे मौसम<br />कहाँ ढूंढ पाएँगे उसको<br />जिसमें -<br />अपनापन लगता है<br />.... कितनी सच्ची बात कह दी आपने....<br /><br /><br />चैन कहाँ <br />अब नींद कहाँ है<br />बेचैनी की यह दुनिया है<br />मर खप कर के-<br />जितना जोड़ा<br />कितना भी हो <br />कम लगता है<br /><br />....सचमुच...<br /><br />खून-ख़राबा <br />मारा-मारी<br />कहाँ जाए <br />जनता बेचारी<br />आतंकों में-<br />शांति खोजना<br />केवल पागलपन <br />लगता है। ....<br /><br />हर एक पंक्ति बेजोड़..<br />कृष्ण नन्दन मौर्यhttps://www.blogger.com/profile/05640264086166404241noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-50446842560863522912012-11-15T17:54:48.918+05:302012-11-15T17:54:48.918+05:30Purnima Varman jee kii rachnaon se kaphi arse ke b...Purnima Varman jee kii rachnaon se kaphi arse ke baad gujarna hua hai,unke nav geeton ne bahut gehre se man ko chhu liya hai,badhai.ashok andreyhttps://www.blogger.com/profile/03418874958756221645noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-62999764517234204772012-09-03T02:53:39.708+05:302012-09-03T02:53:39.708+05:30सुधा जी, सदा आपकी बधाई और आशीर्वाद मिलता रहे बस यह...सुधा जी, सदा आपकी बधाई और आशीर्वाद मिलता रहे बस यही कामना है।पूर्णिमा वर्मनhttps://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-28005677629456535452012-09-03T02:52:49.399+05:302012-09-03T02:52:49.399+05:30भावना बहुत दिनों से अतापता नहीं है आपका। इतने धैर्...भावना बहुत दिनों से अतापता नहीं है आपका। इतने धैर्य से लंबा संदेश लिखने के लिये हार्दिक आभारपूर्णिमा वर्मनhttps://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-67235417139715035792012-09-03T02:51:50.038+05:302012-09-03T02:51:50.038+05:30हार्दिक आभारहार्दिक आभारपूर्णिमा वर्मनhttps://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-21937892829601267632012-09-03T02:51:21.772+05:302012-09-03T02:51:21.772+05:30बहुत बहुत धन्यवादबहुत बहुत धन्यवादपूर्णिमा वर्मनhttps://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-4004535598966793972012-09-03T02:50:58.365+05:302012-09-03T02:50:58.365+05:30इस विस्तृत व्याख्या के लिये हार्दिक आभार श्रीकांत ...इस विस्तृत व्याख्या के लिये हार्दिक आभार श्रीकांत जी, आपने इतने ध्यान से पढ़ा यह मेरे लिये बहुत सम्मान की बात है।पूर्णिमा वर्मनhttps://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-36918999708186271252012-09-03T02:49:11.027+05:302012-09-03T02:49:11.027+05:30धन्यवाद परमेश्वर जीधन्यवाद परमेश्वर जीपूर्णिमा वर्मनhttps://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-20002518250647629982012-09-03T02:47:02.229+05:302012-09-03T02:47:02.229+05:30इन सुंदर शब्दों के लिये धन्यवाद रचनाइन सुंदर शब्दों के लिये धन्यवाद रचनापूर्णिमा वर्मनhttps://www.blogger.com/profile/06102801846090336855noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-4504403249110821152012-07-14T18:28:25.226+05:302012-07-14T18:28:25.226+05:30कहां ढूंढ पाएंगे उसको
जिसमें अपनापन लगता है ।
स...कहां ढूंढ पाएंगे उसको <br />जिसमें अपनापन लगता है । <br /><br />सारगर्भित और बहुत मुलायम से शब्द <br />नवगीतों में जान डाल दी आपने पूर्णिमा जी ।<br /><br />बधाई । शुभकामनाएं ।सुधा अरोड़ाhttps://www.blogger.com/profile/05794472945731689930noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-29756901950708323812012-06-15T08:58:13.234+05:302012-06-15T08:58:13.234+05:30आदरणीय पूर्णिमा दी ...क्या लिखूँ...हमको तो पता ही ...आदरणीय पूर्णिमा दी ...क्या लिखूँ...हमको तो पता ही न था कि किस सागर से मिल रही हूँ मैं ...भावों का अथाह सागर आपकी रचनाएँ बहुत ज्यादा प्रभावित कर गईं हैं मन को ..ऐसी छाप बहुत दिनों बात पड़ी है हम पर .....वाह कमाल है ....!!<br />आँखों ने<br />ये क्या पढ़ लिया ..!!<br />जिसको देखा ही नहीं ,<br />जिसको कभी सुना भी नहीं ..<br />उसके लिए ह्रदय पृष्ठ पर ..<br />उपन्यास गढ़ लिया ...!!<br />फूटता है ज्वार अनायास <br />भावों का दौर दौड़ पड़ता है ...<br />तुम्हारी ओर..<br />थामे डोर ..!!<br />मन का बुरा हाल है ...<br />कमाल है ...!!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16376613957632735653noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-72627572294929989412012-06-15T08:57:16.661+05:302012-06-15T08:57:16.661+05:30आदरणीय पूर्णिमा दी ...क्या लिखूँ...हमको तो पता ही ...आदरणीय पूर्णिमा दी ...क्या लिखूँ...हमको तो पता ही न था कि किस सागर से मिल रही हूँ मैं ...भावों का अथाह सागर आपकी रचनाएँ बहुत ज्यादा प्रभावित कर गईं हैं मन को ..ऐसी छाप बहुत दिनों बात पड़ी है हम पर .....वाह कमाल है ....!!<br />आँखों ने<br />ये क्या पढ़ लिया ..!!<br />जिसको देखा ही नहीं ,<br />जिसको कभी सुना भी नहीं ..<br />उसके लिए ह्रदय पृष्ठ पर ..<br />उपन्यास गढ़ लिया ...!!<br />फूटता है ज्वार अनायास <br />भावों का दौर दौड़ पड़ता है ...<br />तुम्हारी ओर..<br />थामे डोर ..!!<br />मन का बुरा हाल है ...<br />कमाल है ...!!Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/16376613957632735653noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-76748928250622700612012-06-10T21:22:18.402+05:302012-06-10T21:22:18.402+05:30Badhayee. Hindi font chal nahee raha tha is liye a...Badhayee. Hindi font chal nahee raha tha is liye angrejee font mein pratikriya de raha hoon. Pradeep Mishrapradeep mishrahttp://www.pradeepindore.blogspot.comnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-50612687526465372362012-05-16T16:35:37.434+05:302012-05-16T16:35:37.434+05:30चारों गीत अप्रतिम. क्या शिल्प, क्या कथ्य, क्या वि...चारों गीत अप्रतिम. क्या शिल्प, क्या कथ्य, क्या विम्ब, सब कुछ सुदर्शन. पढ़ कर लगा कि ऐसा ही तो मैं लिखना चाहता हूँ. बधाई और धन्यवाद.geetfaroshhttps://www.blogger.com/profile/03390968961231475107noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-43446253175531941542012-04-08T23:29:47.011+05:302012-04-08T23:29:47.011+05:30चारो गीतों को पढ़ते हुये लगा कि जीवनपथ के सूक्ष्म ...चारो गीतों को पढ़ते हुये लगा कि जीवनपथ के सूक्ष्म निरीक्षण एवं सम्पूर्ण अनुभवों से निमज्जित होकर दर्शन को काव्य की सरस धारा में अनुभूति के आचमन तथा अप्रतिम आनन्द के साथ पाठक के अंत: चक्षुओं में लोकदृष्टि का अंजन लग गया हो.. <br />.. लोकसरोकार के साथ माधुर्य की चासनी में पगे गीत - नवगीतों की प्रासंगिकता को नमन <br /><br />१- दर्द हरा है पढ़ते हुये लगता है कि जीवनपथ की विसंगतियों की अनुभूतिे मानव मन को सत्य से सहज ही साक्षात्कार करा देती है और वह पीड़ा निरपेक्ष हो सहज ही कह उठता है <br />..<br />धीरे-धीरे ढल जाएगा<br />वक्त आज तक<br />कब ठहरा है?<br /><br />२. सच में बौनापन - आज के बिडम्बनापूर्ण सामाजिक राजनीतिक परिदृश्य पर कवि की संवेदनशील अंतर्द्रष्टि लोक सरोकार हेतु.. सत्ता के उत्तरदायी शासकों के प्रति व्यंग्य सहित भावों की धारा फूट पड़ती है और <br />झूठ बढ़ रहा-<br />ऐसा हर पल<br />सच में <br />बौनापन लगता है<br /><br />खून-ख़राबा <br />मारा-मारी<br />कहाँ जाए <br />जनता बेचारी<br />आतंकों में-<br />शांति खोजना<br />केवल पागलपन <br />लगता है। <br /><br />३. राजतंत्र की हुई ठिठोली गीत में जीवन के चरम सत्य की ओर ध्यान अकृष्ट करते हुये कवि शासकों को उनके उत्तरदायित्व्व के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से जीवन दर्शन की अनिश्चितता से आगाह करते हुये.. वह लोकदायित्व के प्रति सचेत करता है <br /><br />जाने कहाँ<br />समय ले जाए<br />बिगड़े कौन, कौन बन जाए<br />तिकड़म राजनीति की चलती<br />सड़कों पर बंदूक टहलती<br />शासक की-<br />नौकर सेनाएँ। <br /><br />४. माया में मन .. संभवत: संवेदनशील कवि का मन अपने भाव सर में नित आचमन करते हुये जीवन के उस चरम सत्य का साक्षात्कार सहजता से कर लेता है। यह प्रेतीति ही उसे अनजाने आयाम की ओर प्रेरित करने लगती है और अंतस से गीत अंकुरित होता है ..<br /><br />माया में मन कौन रमाए<br /><br />दुनिया ये आनी जानी है<br />...<br />इतनी पीड़ा<br />उसका बोझा कौन उठाए<br />माया में मन कौन रमाए। <br />..<br />सादरAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/09417713009963981665noreply@blogger.com