tag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post6000747903569866095..comments2024-03-27T12:30:05.562+05:30Comments on Poorvabhas: अवनीश सिंह चौहान के प्रेम गीत अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/05755723198541317113noreply@blogger.comBlogger5125tag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-57832834506828741722021-01-12T11:05:59.809+05:302021-01-12T11:05:59.809+05:30दिखने में जो शांतप्रिय, सद् विचार के कोष।
बातचीत ...दिखने में जो शांतप्रिय, सद् विचार के कोष। <br />बातचीत संवाद में, करते सच का घोष।। <br />मुखमंडल जैसे अभी-, अभी खिला हो प्रात।<br />कहने को अवनीश हैं, संतों-सा संतोष।। <br /><br />- वीरेंद्र आस्तिक, कानपुर Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-38873270507719085922020-06-06T13:03:37.740+05:302020-06-06T13:03:37.740+05:30एक एक गीत अपने में भावों का गुम्फ़न है ।पहले गीत मे...एक एक गीत अपने में भावों का गुम्फ़न है ।पहले गीत में आत्मा को नायिका के रूप में प्रस्तुत करना स्तुत्य ।बहुत सुंदर!अनेकशः बधाई गीतकार को ।कल्पना मनोरमा (Kalpana Manorama)https://www.blogger.com/profile/13345346701490294800noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-79020246956422476322020-06-06T10:24:18.084+05:302020-06-06T10:24:18.084+05:30भाव-बोध के स्तर पर अवनीश जी के ये प्रेम गीत बहुत ग...भाव-बोध के स्तर पर अवनीश जी के ये प्रेम गीत बहुत गहन हैं। भाषा-बिम्ब और प्रतीकों की कलात्मकता भी प्रेम की सच्ची और मीठी अनुभूति कराने में सफल हुई है। अवनीश जी के प्रेम गीत सामान्य नहीं हैं। उन्हें कोटिशः बधाई। <br />-- वीरेंद्र आस्तिक, कानपुर (उ.प्र.)अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhanhttps://www.blogger.com/profile/05755723198541317113noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-23347542780448301502020-06-06T08:10:28.280+05:302020-06-06T08:10:28.280+05:30अद्भुत शब्द संयोजन आपके द्वारा रचित यह गीत भावनात्...अद्भुत शब्द संयोजन आपके द्वारा रचित यह गीत भावनात्मक रूप से इतने सशक्त हैं के सहज ही पाठक के अंतर्मन को कहीं गहरे छू लेते हैं जिस तरह के भाव व्यंजनों को आपने यहां व्यक्त किया है समकालीन रचनाकारों में ऐसी भाव व्यंजनों की अपेक्षा कहीं दूर की कौड़ी साबित होती है आपके प्रेम गीत पहली बार पढ़ने का अवसर मिला है निश्चित रूप से टच के बिंबो एवं अनूठे प्रतीकों के माध्यम से अपनी बात कहने का एक विलक्षण हुनर दिखाई पड़ता है यहां श्रृंगार रचना का प्राण माना जाता है एक ही रस माना गया है सिंगार दुनिया में काव्य लेखन करने वाला रचनाकार जब तक श्रृंगार की रचनाएं नहीं लिखता तब तक उसकी लेखन तपस्या अधूरी मानी जाती है कलम ने काव्य रचना नहीं की है बल्कि शब्द चित्र बने हैं जिन्हें पढ़कर सहज ही मस्तिष्क पटल पर घटनाओं का खाका क्रमशः अंकित होता रहता है बहुत सुंदर रचना आपको हृदय से बधाईडॉ जय शंकर शुक्लhttps://www.blogger.com/profile/12392278601902677038noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-79639124511746514492020-06-05T20:19:48.562+05:302020-06-05T20:19:48.562+05:30
आपके गीतों की रागात्मक व्यंजना ने मन छू लिया। ऐसे...<br />आपके गीतों की रागात्मक व्यंजना ने मन छू लिया। ऐसे गीत तोअबविरले ही पढ़ने सुनने को मिल पाते हैं बहुत शुभकामनाएँ। रमेश गौतम, बरेलीhttps://www.blogger.com/profile/03947024407345098278noreply@blogger.com