tag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post8444106905380584329..comments2024-03-27T12:30:05.562+05:30Comments on Poorvabhas: समीक्षा : दिनेश सिंह कृत नवगीत-संग्रह ‘टेढ़े-मेढ़े ढाई आखर' — अवनीश सिंह चौहान अवनीश सिंह चौहान / Abnish Singh Chauhanhttp://www.blogger.com/profile/05755723198541317113noreply@blogger.comBlogger7125tag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-77043399814798559312012-07-06T20:42:11.894+05:302012-07-06T20:42:11.894+05:30बहुत सुन्दर अविनाश जी। दिनेश जी हमारे समय के श्रेष...बहुत सुन्दर अविनाश जी। दिनेश जी हमारे समय के श्रेष्ठ नवगीतकार थे।भारतेंदु मिश्रhttps://www.blogger.com/profile/07653905909235341963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-86657148346922728362011-03-03T10:06:06.350+05:302011-03-03T10:06:06.350+05:30बहुत ही विश्लेष्णात्मक समीक्षा लिखी है अवनीश जी. श...बहुत ही विश्लेष्णात्मक समीक्षा लिखी है अवनीश जी. शायद मैंने अभी तक आधुनिक प्रणयधर्म विषय पर पहली इतनी सुन्दर समीक्षा पढी है. पूरी की पूरी समीक्षा पढी है. सराहनीय.shraddhahttps://www.blogger.com/profile/06549149382669271935noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-59785074401027899642011-02-26T09:40:10.247+05:302011-02-26T09:40:10.247+05:30अवनीश जी, आप समीक्षा के माध्यम से अच्छा साहित्य...अवनीश जी, आप समीक्षा के माध्यम से अच्छा साहित्य कर्म कर रहे हैं। बधाई हो आपको। <br />समीक्षा की आपकी शैली लाजवाब है।Atul Shrivastavahttps://www.blogger.com/profile/02230138510255260638noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-79190661717596336492011-02-26T00:47:17.816+05:302011-02-26T00:47:17.816+05:30प्रणयधर्म का गायनः परंपरा से उत्तर आधुनिकता तक...
...प्रणयधर्म का गायनः परंपरा से उत्तर आधुनिकता तक...<br /><br />बहुत अच्छी समीक्षा ....मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है! आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा.Dr Varsha Singhhttps://www.blogger.com/profile/02967891150285828074noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-62734004828722925772011-02-25T11:32:49.281+05:302011-02-25T11:32:49.281+05:30समीक्षा देख हैरान हो जाती हूँ कि किस कदर इतनी कम प...समीक्षा देख हैरान हो जाती हूँ कि किस कदर इतनी कम पंक्तियों को इतना विस्तार दे देते हैं समीक्षक .....<br />मैं समीक्षा नहीं लिख पाती .....<br />एक बार जय कुमार 'रुसवा' जी ने अपनी पुस्तक की समीक्षा करने का आग्रह किया तब अनुभव हुआ कितना मुश्किल है ये काम .....<br />छुप-छुपकर मिलती रहती है<br />अपने दूजे खसम-यार से<br />बचे समय में मुझसे मिलती<br />गलबाहें दे बड़े प्यार से<br />उससे लेती छाँह देह की<br />मुझसे लेती ढाई आखर।<br />देनेश जी की ये पंक्तियाँ बड़ी अच्छी लगीं .....<br /><br />आज के परिवेश में आपका ये वक्तव्य भी मायने रखता है ......<br />आज भावनात्मक आयाम बदल चुके हैं, मानवीय मूल्यों में आयी गिरावट से प्रणय मूल्य भी प्रभावित हुए हैं। अब प्रेम किसी राग और आग के वशीभूत होकर नहीं किया जाता है। प्रेम शब्द तो ओट लेने के लिए है जिसके पीछे मुख्य मकसद तफ़री करना हो गया है और धन-वैभव को सर्वोपरि मानकर तथा इसी माध्यम का प्रयोग कर प्रेमी प्रेम की पींगे भर रहे हैं-'<br /><br />बहुत अच्छी समीक्षा ....<br />बधाई आपको भी और दिनेश जी को ......!!हरकीरत ' हीर'https://www.blogger.com/profile/09462263786489609976noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-9963735853807108562011-02-24T03:26:52.009+05:302011-02-24T03:26:52.009+05:30आदरणीय अवनीश सिंह चौहान जी
सादर सस्नेहाभिवादन ...<b><i>आदरणीय अवनीश सिंह चौहान जी </i></b> <br />सादर सस्नेहाभिवादन !<br /> <br /><b>दिनेश सिंह जी</b> के नवगीत-संग्रह <b>टेढ़े-मेढ़े ढाई आखर</b> की आप द्वारा की गई समीक्षा पढ़ कर पुस्तक पढ़ने की प्रबल इच्छा है । <br /><b> </b> समीक्षित कृति निस्संदेह उच्च कोटि के नवगीतों का संग्रह है … <br />आप समीक्षा करने में निष्णात हैं । <br />आपका श्रम श्लाघनीय है , आपके गुण वंदनीय हैं ! <br />बहुत आभार और बहुत बधाई !<br />♥ <b><a href="http://shabdswarrang.blogspot.com/" rel="nofollow">बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं ! </a></b>♥ <br />- राजेन्द्र स्वर्णकारRajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकारhttps://www.blogger.com/profile/18171190884124808971noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2283537905508347887.post-79419689142167263442011-02-23T22:06:06.364+05:302011-02-23T22:06:06.364+05:30अवनीश जी ,आप अपने ब्लाग के माद्ध्यम से गंभीर साहित...अवनीश जी ,आप अपने ब्लाग के माद्ध्यम से गंभीर साहित्यकर्म कर रहे हैं ,आप को मेरी हार्दिक बधाई .सुरेश यादवhttps://www.blogger.com/profile/16080483473983405812noreply@blogger.com