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बुधवार, 4 अप्रैल 2018

‘बनारस की हिंदी ग़ज़ल’ का हुआ लोकार्पण

चित्र में बायें से दायें: डॉ मंजरी पाण्डेय, देवेन्द्र आर्य, पंकज गौतम, 
डॉ जीवन सिंह, डॉ हरिराम द्विवेदी, 
डॉ विनय मिश्र, डॉ नित्यानंद श्रीवास्तव और नचिकेता 

वाराणसी। बौद्धायन संस्था की ओर से 25 मार्च को महाबोधि सोसायटी आफ इण्डिया, सारनाथ परिसर स्थित हाल में “सामाजिक समरसता एवं बौद्ध दर्शन” विषय पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन हुआ, जो दो सत्रों में चला। दीप प्रज्ज्वलन और बुद्ध वंदना की प्रस्तुति से सेमिनार की शुरुआत हुई। अतिथियों का स्वागत संस्था के अध्यक्ष हरिराम द्विवेदी ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाबोधि सोसायटी आफ इण्डिया के पूज्य डॉ. डी रेवत थेरो एवं पूज्य डॉ. के मेधांकर थेरो ने की।

 इस अवसर पर मुख्य वक़्ता के रूप में आमंत्रित थे अलवर राजस्थान से पधारे वरिष्ठ जनधर्मी आलोचक डॉ. जीवन सिंह जी एवं तिब्बती विश्वविद्यालय के अतिथि प्रोफ़ेसर भंते शिवली। डॉ. जीवन सिंह ने मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए बौद्ध दर्शन की उत्पादक वस्तुस्थितियों पर ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने बुद्ध को भारत का पहला समाजशास्त्री बतलाते हुए कहा कि बुद्ध पहले विचारक हैं जो वस्तुवादी दृष्टिकोण से समाज की त्रासद और अन्यायपूर्ण स्थितियों पर विचार करते हुए कारणों की तलाश करते हैं। सिंह ने कहा कि इस मामले में दर्शन और धर्म अलग अलग हो जाते हैं और बाद में धर्म का प्रभाव दर्शन को लील लेता है। बौद्ध दर्शन के साथ यही हुआ कि वह दर्शन से अधिक धर्म बना दिया गया। बाबा साहब अम्बेडकर ने उसके दार्शनिक पक्ष को बाहर निकालकर उसका उपयोग सामाजिक समरसता के लिए किया। इसे आगे बढ़ाने की सख्त जरूरत इस समय हमारे समाज को है। मुख्य अतिथि बौद्ध धर्म के विद्वान प्रोफ़ेसर वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी व विशिष्ट अतिथि के रूप में सादर शोभायमान थे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय, भूतपूर्व प्रशासनिक अधिकारी तथा जम्बूद्वीप श्रीलंका मन्दिर के पूज्य डा के सिरी सुमेध थेरो। सभी वक्ताओं ने सामयिक चर्चा को अपने महत्वपूर्ण विचारों से समृद्ध किया। सेमिनार का संचालन डॉ. मञ्जरी पाण्डेय ने किया। धन्यवाद ज्ञापन श्याम किशोर पाण्डेय तथा अशोक मिशन के अशोक जी ने किया।

इसी अवसर पर दूसरे सत्र में ऐतिहासिक पुस्तक संकलन “बनारस की हिंदी ग़ज़ल” का लोकार्पण तथा विद्वानों द्वारा विमर्श हुआ। जिसमें अध्यक्ष हरिराम द्विवेदी, मुख्य अतिथि डॉ. जीवन सिंह विशिष्ट अतिथि आज़मगढ़ के पंकज गौतम जी तथा अन्य आमंत्रित अतिथियों में पटना से वरिष्ठ कवि आलोचक नचिकेता, गोरखपुर से आलोचक व कवि के रूप मे देवेन्द्र आर्य तथा डॉ. नित्यानन्द श्रीवास्तव ने भाग लिया। प्रारंभ में संपादक प्रो विनय मिश्र ने स्वागत उद्बोधन के साथ संक्षिप्त मे पुस्तक की समग्र दृष्टि सबके समक्ष रखी। काशी के गजलकारों ने अपने ग़ज़ल काव्यपाठ से आधुनिक जीवन मूल्यों के लिए किये जाने वाले संघर्ष के अनेक चित्र प्रस्तुत किये। जिन गजलकारों की ग़ज़ल को पुस्तक में स्थान मिला उनमें प्रमुख हैं मेयार सनेही, चंद्रभाल सुकुमार, केशव शरण, परमानन्द आनन्द, दानिश जमाल सिद्दीक़ी, राजशेखर, विनय कपूर गाफ़िल, शिव कुमार पराग, अभिनव अरुण, संतोष कुमार सरस, विद्यानंद मुद्गल, धर्मेन्द्र गुप्त साहिल, सम्पादक विनय मिश्र तथा डॉ. मंजरी पाण्डेय। इस पुस्तक की खासियत है कि इसमें बनारस की ग़ज़ल की विरासत के रूप में कबीर से लगाकर भारतेंदु, जयशंकर प्रसाद, त्रिलोचन, शिव प्रसाद मिश्र रुद्र काशिकेय की ग़ज़ल के उदाहरण भी प्रस्तुत किये गये हैं। इस सत्र का संचालन धर्मेन्द्र गुप्त साहिल ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य सहयोग रहा गौतम अरोड़ा सरस, ज्योत्सना प्रवाह, अर्चना अवस्थी, उषा। इस महत्वपूर्ण अवसर जिन लोगों ने अपनी गरिमामय उपस्थिति से कार्यक्रम की उपादेयता बढ़ाई। उनमें प्रमुख थे प्रो. वाचस्पति, प्रो. बलिराज पाण्डेय, अशोक सिंह, रामानन्द तिवारी, नरोत्तम शिल्पी, सिद्धनाथ शर्मा, राकेश, शशि श्रीवास्तव इत्यादि।

कार्यक्रम प्रात: 10 बजे उद्घाटन सत्र की औपचारिकताओं के साथ संगोष्ठी से प्रारम्भ हुआ। सायंकाल सेमिनार के समापन सत्र में विज़िटिंग प्रोफ़ेसर तिब्बती विश्वविद्यालय प्रोफ़ेसर शिवली भंते, मुख्य अतिथि सं सं वि वि के पालि विभागाध्यक्ष प्रोफ़ेसर रमेश प्रसाद जी तथा जम्बूद्वीप श्रीलंका मंदिर के प्रमुख डॉ. के सिरी सुमेध थेरो के वक्तव्य के साथ कार्यक्रम ने विराम लिया।
रपट- डॉ मंजरी पाण्डेय 
सचिव, बौद्धायन
प्रेषक- डॉ विनय मिश्र

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