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शनिवार, 22 फ़रवरी 2020

परछाईं के पाँव : प्रेम और सौंदर्य की मौलिक अभिव्यक्ति— रवीन्द्र भ्रमर

1982  में प्रकाशित 'परछाईं के पाँव' वीरेन्द्र आस्तिक का पहला गीत संग्रह है। 104 पृष्ठ की इस पुस्तक में 42 गीत और 6 ग़ज़लें हैं और यह 19 मार्च, 1982 को प्रकाशित हुई थी। इसके प्रकाशक हैं— कविता प्रकाशन, मर्चेन्ट्स चेम्बर हाल, कानपुर।

वीरेंद्र आस्तिक 
गीतकार श्री वीरेन्द्र आस्तिक की रचनाएँ देख-पढ़कर मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई है। 'परछाईं के पाँव' इनका पहला गीत संग्रह है। इन गीतों का शिल्प-सौष्ठव और इनकी आनुभूमिक प्रौढ़ता को देख-पढ़कर लगता है कि श्री आस्तिक का रुझान गीत और गायन में जन्म से है। कानपुर की कविता नामक संस्था ने उक्त गीत संग्रह को प्रकाशित करके स्वातंत्र्योत्तर हिंदी गीति काव्य के बहुरंगे पट पर एक और हस्ताक्षर टॉक दिया है। 

अल्हड़-किशोर प्रेम की तरल अनुभूतियां 'परछाई के पाँव' के गीतों का मूल संवेद्य है, प्रीति और सौंदर्य-तत्व की अनूठी मौलिक अभिव्यक्ति का सुंदर प्रयास इन रचनाओं में प्रतिफलित हुआ है। ऐसा लगता है कि कवि का रागबोध प्रत्यक्ष है और उसने उन जीवन स्थितियों का साक्षात्कार किया है, जो उसके गीतों में मुखरित हुई हैं। 

रेखांकित करने योग्य एक विशेष बात यह है कि वीरेंद्र आस्तिक के गीतों में निर्गुण संत-भक्तों जैसी एकांत समर्पण भावना और घनीभूत रागात्मकता के बीज मिलते हैं। इनका उपनाम 'आस्तिक' होना निरर्थक नहीं प्रतीत होता है। प्रेम मंदिर के पुजारी की तुलना में और अधिक आस्तिक दूसरा कौन हो सकता है? वीरेंद्र कि यह आस्तिकता इनके गीतों में एक खास तरह का आध्यात्मिक आभास उत्पन्न करती है। 

आस्तिक के अधिकांश गीत अंतर्मन के उद्वेलन से स्वतः विस्फूर्जित जान पड़ते हैं। इनमें कृतिमता का अभाव है। इनका छंद विधान तो पारंपरिकता के निकट है, किंतु इनकी अंवति में नवीनता है। श्वांसों का संस्पर्श पाकर हरे बांस की बंसी जिस प्रकार पिहक उठती है, कवि की रागचेतना से ये नए गीत कुछ इसी प्रकार फूटे होंगे। इनकी बुनावट और बनावट बहुत कुछ सहज है। 

गेयता वीरेन्द्र आस्तिक के गीतों की एक और पहचान है, इनकी लयकारी में लोकगीतों की अनुगूंज और लय ताल की खनक है। भाषा साफ-सुथरी है और सपाट नहीं कही जा सकती। एक नवोदित अथवा उदीयमान कवि-गीतकार से जितनी अपेक्षा की जा सकती है, वीरेंद्र के गीत उससे आगे की चीज हैं। 

वीरेंद्र आस्तिक की इन आरंभिक रचनाओं में सार्थक-मूल्यवान कृतित्व की पूरी संभावना विद्यमान है। हिंदी गीत काव्य के समकालीन धरातल पर इनका पदार्पण स्वागत योग्य है। तथास्तु! 




सुप्रसिद्ध हिंदी कवि और आचार्य 
कीर्तिशेष आ. डॉ रवीन्द्र भ्रमर 
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अलीगढ़ 
के हिंदी विभाग में रीडर रह चुके हैं।  

Parchhain Ke Panv by Virendra Astik. Foreword by Ravindra Bhramar

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