पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

गुरुवार, 12 दिसंबर 2019

वीरेन्द्र आस्तिक को स्व. यदुनंदनप्रसाद बाजपेयी सम्मान


जबलपुर: संस्कारधानी जबलपुर की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था 'कादम्बरी' एवं 'महाकोशल शहीद स्मारक ट्रस्ट' द्वारा 'अखिल भारतीय साहित्यकार-पत्रकार सम्मान समारोह'  का भव्य आयोजन 07 दिसंबर 2019 को शहीद स्मारक भवन, गोलबाज़ार, जबलपुर, म.प्र. में किया गया, जिसमें देशभर के दो दर्जन से अधिक रचनाकारों-पत्रकारों को अलंकृत किया गया। इसी क्रम में वरिष्ठ गीतकार, आलोचक, सम्पादक श्रद्धेय वीरेन्द्र आस्तिक जी (कानपुर) को उनकी दीर्घकालिक गीत-साधना के लिए 'स्व. यदुनंदनप्रसाद बाजपेयी सम्मान 2019' से विभूषित किया गया। 

हिंदी साहित्य के समर्थ  हस्ताक्षर वीरेंद्र आस्तिक का जन्म कानपुर (उ.प्र.) जनपद के एक गाँव रूरवाहार में 15 जुलाई 1947 को हुआ। आस्तिकजी के गीत, नवगीत, कविताएँ, रिपोर्ताज, ग़ज़ल, ललित निबंध, समीक्षाएँ, लेख आदि श्रेष्ठ हिंदी गीत संचयन, समकालीन गीत: अन्तः अनुशासनीय विवेचन, शब्दपदी, गीत वसुधा, 'सहयात्री समय के', 'समकालीन गीत कोश', दैनिक जागरण, जन सन्देश टाइम्स, मधुमती, अलाव, साहित्य समीर, कविताकोश, अनुभूति, पूर्वाभास आदि ग्रंथों, पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। आस्तिक जी बाल्यकाल से ही अन्वेषी, कल्पनाशील भावुक-चिन्तक एवं मिलनसार रहे हैं। आपने 1964 से 1974 तक भारतीय वायु सेना में कार्य किया। तत्पश्चात भारत संचार निगम लि. को अपनी सेवाएं दीं। वर्तमान में सेवानिवृत्त। काव्य-साधना के शुरुआती दिनों में आपकी रचनाएँ वीरेंद्र बाबू और वीरेंद्र ठाकुर के नामों से भी छपा करती थीं। आस्तिक जी की पहिला कविता 1971 में 'साप्ताहिक नीतिमान' (जयपुर ) में छपी थी। उन दिनों आस्तिक जी दिल्ली में रहा करते थे। दिल्ली में उन दिनों नई कविता का दौर चल रहा था। इसलिए अपने प्रारम्भिक दौर में कविता और गीत साथ-साथ लिखे। 1974 में भारतीय वायु सेना छोड़ने के बाद आप कानपुर आ गए। कानपुर में छंदबद्ध कविता की लहर थी। यहाँ आप गीत के साथ-साथ ग़ज़लें भी लिखने लगे। 1980 में आपका पहला गीत संग्रह 'वीरेंद्र आस्तिक के गीत' नाम से प्रकाशित हुआ। 1982 में 'परछाईं के पाँव' एवं 1987 में 'आनंद ! तेरी हार है' (नवगीत संग्रह) प्रकाशित हुआ। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से आर्थिक सहयोग मिलने पर 'तारीख़ों के हस्ताक्षर' (नवगीत संग्रह, 1992 ) प्रकाशित हुआ। इन्हीं दिनों दैनिक जागरण में आलेख आदि और मधुमती (राज. ) में समीक्षा प्रकाशित होने लगीं। 2013 में मासिक पत्रिका 'संकल्प रथ' (भोपाल) ने वीरेंद्र आस्तिक की रचनाधर्मिता पर विशिष्ट अंक प्रकाशित किया। 

आस्तिक जी की प्रकाशित कृतियाँ :  1. नवगीत संग्रह- 'परछाईं के पाँव', 'आनंद ! तेरी हार है', 'तारीख़ों के हस्ताक्षर', 'आकाश तो जीने नहीं देता', 'दिन क्या बुरे थे', 'गीत अपने ही सुनें';  2. आलोचना/ सम्पादन- 'धार पर हम- एक' एवं 'धार पर हम' (दो)। 

आस्तिक जी को मिले सम्मान: 2012 : आखिल भारतीय साहित्य कला मंच (मुरादाबाद) से सम्मानित, 2013 : उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान (लखनऊ) से 'दिन क्या बुरे थे' को सर्जना पुरस्कार, 2018: उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान (लखनऊ) से साहित्य भूषण सम्मान आदि। 

आचार्य भागवत दुबे, राजेश पाठक प्रवीण एवं डॉ राजकुमार सुमित्र ने सभी सम्मानित रचनाकारों का आभार व्यक्त किया। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी प्रतिक्रियाएँ हमारा संबल: