कानपुर, 9 दिसंबर। 'माँ तिहारी जिंदगी का/ गीत गा पाया नहीं', 'नींद न आए रात-रात भर/ क्यों मेरे सुगना', 'कल आना था आज हो गया/ क्या संध्या भी हो जाएगी' और 'हम जमीन पर ही रहते हैं/ अंबर पास चला आता है' जैसे चर्चित गीतों के सृजनकर्ता, देश के वरिष्ठ गीतकवि वीरेन्द्र आस्तिक को आज साहित्य जागरण मंच द्वारा लक्ष्मी देवी ललित कला अकादमी के सभाकक्ष में सुनना एक अविस्मरणीय अनुभव था।
एकल काव्यपाठ का शुभारंभ मुख्य अतिथि इंद्रमोहन रोहतगी, कवि वीरेंद्र आस्तिक एवं उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुधा सेंगर तथा कथाकार राजेंद्र राव द्वारा सरस्वती प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। इस अवसर पर आस्तिक जी को पुष्प-गुच्छ और अकादमी का प्रतीक चिन्ह प्रदान किया गया।
रामधारी सिंह दिनकर का संदर्भ देते हुए आस्तिक जी ने कहा— 'भावना के बिना काव्य-सृजन असंभव है। गीत रचना के लिए भी भावना की उपस्थिति अनिवार्य है। काव्यपाठ के पूर्व अकादमी की वरिष्ट शिक्षिका कविता सिंह ने आस्तिक जी के गीत— 'कल आना था, आज हो गया/ क्या संध्या भी हो जाएगी' की संगीतमय प्रस्तुति से स्वयं कवि और सभी रसिक श्रोताओं को अभिभूत कर दिया। आस्तिक जी ने 'जो अपनी तबीयत को बदल नहीं सकते/ हम ऐसे शब्दों को जी कर क्या करते', 'बहरों के इस सभागार में/ कहने की आजादी/ इसका सीधा अर्थ यही है/ शब्दों की बर्बादी', 'सूख जाते हैं सुमन/ ऐ गंध तेरी हांर है', 'बाजारें रिश्तो की' आदि गीतों का पाठ कर वातावरण में काव्य सुरभि बिखेर दी।
कार्यक्रम के समापन पर अकादमी के महासचिव और मुख्य अतिथि इंद्रमोहन रोहतगी ने कहा कि ऐसे आयोजनों से नई पौध को भी जोड़ने की जरूरत है ताकि सृजन से आने वाली पीढ़ी भी जुड़ सके। कार्यक्रम में आगंतुकों का स्वागत जागरण मंच के प्रभारी राजेंद्र राव ने किया। कवि का परिचय विनोद श्रीवास्तव ने दिया और डॉ कमल मुसद्दी ने मंच संचालन किया। इस अवसर पर डॉ सुरेंद्र तिवारी, फारुख जायसी, लोकेश शुक्ल, डॉ सुरेश अवस्थी, लता कादंबरी, अनिल कुमार, राजेश निषाद, सुनील मासूम आदि उपस्थित रहे।
समाचार प्रस्तुति :
'वंदे ब्रज वसुंधरा' सूक्ति को आत्मसात कर जीवन जीने वाले वृंदावनवासी डॉ अवनीश सिंह चौहान (जन्म 4 जून, 1979) का नाम वेब पर हिंदी नवगीत की स्थापना करने वालों में शुमार है। वर्तमान में वे बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, बरेली के मानविकी एवं पत्रकारिता महाविद्यालय में प्रोफेसर और प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं।
Poetry Out Loud: Recitation by Virendra Astik
दर्शनीय प्रस्तुति के लिए अवनीश जी को हार्दिक बधाई और प्रभु से यह विनय है कि आस्तिक जी की कीर्ति में नित्य नए प्रतिमान जुड़ें
जवाब देंहटाएं- विनोद श्रीवास्तव, कानपुर