पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

दिनेश सिंह और उनका गीत — अवनीश सिंह चौहान

दिनेश सिंह 

१४ सितम्बर १९४७ को रायबरेली (उ.प्र.) के एक छोटे से गाँव गौरारुपई में जन्मे श्री दिनेश सिंह का नाम हिंदी साहित्य जगत में बड़े अदब से लिया जाता है।  सही मायने में कविता का जीवन जीने वाला यह गीत कवि अपनी निजी जिन्दगी में मिलनसार एवं सादगी पसंद रहा है । अब उनका स्वास्थ्य जवाब दे चुका है । गीत-नवगीत साहित्य में इनके योगदान को एतिहासिक माना जाता है । दिनेश जी ने न केवल तत्‍कालीन गाँव-समाज को देखा-समझा है और जाना-पहचाना है उसमें हो रहे आमूल-चूल परिवर्तनों को, बल्कि इन्होने अपनी संस्कृति में रचे-बसे भारतीय समाज के लोगों की भिन्‍न-भिन्‍न मनःस्‍थिति को भी बखूबी परखा है , जिसकी झलक इनके गीतों में पूरी लयात्मकता के साथ दिखाई पड़ती है। इनके प्रेम गीत प्रेम और प्रकृति को कलात्मकता के साथ प्रस्तुत करते हैं । इनके प्रणयधर्मी  गीत भावनात्मक जीवनबोध के साथ-साथ आधुनिक जीवनबोध को भी केंद्र में रखकर बदली हुईं प्रणयी भंगिमाओं को गीतायित करने का प्रयत्न करते हैं ।  अज्ञेय द्वारा संपादित 'नया प्रतीक' में आपकी पहली कविता प्रकाशित हुई थी। 'धर्मयुग', 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' तथा देश की लगभग सभी बड़ी-छोटी पत्र-पत्रिकाओं में आपके गीत, नवगीत तथा छन्दमुक्त कविताएं, रिपोर्ताज, ललित निबंध तथा समीक्षाएं निरंतर प्रकाशित होती रहीं हैं। 'नवगीत दशक' तथा 'नवगीत अर्द्धशती' के नवगीतकार तथा अनेक चर्चित व प्रतिष्ठित समवेत कविता संकलनों में गीत तथा कविताएं प्रकाशित। 'पूर्वाभास', 'समर करते हुए', 'टेढ़े-मेढ़े ढाई आखर', 'मैं फिर से गाऊँगा' आदि आपके नवगीत संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं । आपके द्वारा रचित 'गोपी शतक', 'नेत्र शतक' (सवैया छंद), 'परित्यक्ता' (शकुन्तला-दुष्यंत की पौराणिक कथा को आधुनिक संदर्भ देकर मुक्तछंद की महान काव्य रचना) चार नवगीत-संग्रह तथा छंदमुक्त कविताओं के संग्रह तथा एक गीत और कविता से संदर्भित समीक्षकीय आलेखों का संग्रह आदि प्रकाशन के इंतज़ार में हैं। चर्चित व स्थापित कविता पत्रिका 'नये-पुराने' (अनियतकालीन) के आप संपादक हैं ।  उक्त पत्रिका के माध्यम से गीत पर किये गये इनके कार्य को अकादमिक स्तर पर स्वीकार किया गया है । स्व. कन्हैया लाल नंदन जी लिखते हैं " बीती शताब्दी के अंतिम दिनों में तिलोई (रायबरेली) से दिनेश सिंह के संपादन में निकलने वाले गीत संचयन 'नये-पुराने' ने गीत के सन्दर्भ में जो सामग्री अपने अब तक के छह अंकों में दी है, वह अन्यत्र उपलब्ध नहीं रही । गीत के सर्वांगीण विवेचन का जितना संतुलित प्रयास 'नये-पुराने' में हुआ है, वह गीत के शोध को एक नई दिशा प्रदान करता है. गीत के अद्यतन रूप में हो रही रचनात्मकता की बानगी भी  'नये-पुराने' में है और गीत, खासकर नवगीत में फैलती जा रही असंयत दुरूहता की मलामत भी. दिनेश सिंह स्वयं न केवल एक समर्थ नवगीत हस्ताक्षर हैं, बल्कि गीत विधा के गहरे समीक्षक भी।  (श्रेष्ठ हिन्दी गीत संचयन- स्व. कन्हैया लाल नंदन, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, २००९, पृ.  ६७) 'नये-पुराने' पत्रिका को वेब पत्रिका ख़बर इण्डिया (http://www.khabarindiya.com/) पर भी पढ़ा जा सकता है । आपके साहित्यिक अवदान के परिप्रेक्ष्य में आपको राजीव गांधी स्मृति सम्मान, अवधी अकेडमी सम्मान, पंडित गंगासागर शुक्ल सम्मान, बलवीर सिंह 'रंग' पुरस्कार से अलंकृत किया जा चुका है।  संपर्क - ग्राम-गौरा रूपई, पोस्ट-लालूमऊ, रायबरेली (उ.प्र.)। नवगीत के इस महान शिल्पी का प्रेम गीत हम आप तक पहुंचा रहे हैं:-



१. फिर कदम्ब फूले !

फिर कदम्ब फूले
गुच्छे-गुच्छे मन में झूले

पिया कहाँ?
हिया कहाँ?
पूछे तुलसी चौरा,
बाती बिन दिया कहाँ?

हम सब कुछ भूले
फिर कदम्ब फूले

एक राग,
एक आग
सुलगाई है भीतर,
रातों भर जाग-जाग

हम लंगड़े-लूले
फिर कदम्ब फूले

वत्सल-सी,
थिरजल-सी
एक सुधि बिछी भीतर,
हरी दूब मखमल-सी

कोई तो छूले
फिर कदम्ब फूले।

Fir Kadamb Foole by Dinesh Singh

8 टिप्‍पणियां:

  1. भाई अवनीश जी दिनेश सिंह जी हमारे समय के अद्भुत गीत कवि हैं |बहुत सुन्दर सा गीत पढवाने के लिए आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्‍छी रचना। बसंत पंचमी की शुभकामनाएं।

    मेरे ब्‍लाग पर आकर मेरा उत्‍साहवर्धन करें।
    पता है- atulshrivastavaa.blogspot.com
    मेरे एक पोस्‍ट पर वोट देकर आप मुझे इंडीब्‍लागर की प्रतियोगिता में भी मदद कर सकते हैं।एक अनूठी प्रेम कहानी, जो खतों में है ढली,
    Pls promote/vote for my blog at above url

    http://www.indiblogger.in/blogger/29751/

    जवाब देंहटाएं
  3. हिन्दी के गीतों की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए दिनेश सिंह जी ने आधुनिक सन्दर्भों को भी अपने गीत संग्रह "टेढ़े-मेढ़े ढाई आखर" में सुनहरे ढंग से प्रस्तुत किया है. यह गीत उसी संग्रह से यहाँ रखा गया है.बधाई स्वीकारें

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय अबनीश जी ,

    नवगीत से मेरा परिचय निर्मल शुक्ल जी के नवगीतों से हुआ .....
    उनके दो तीन संग्रह भी मेरे पास पड़े है ...एक पत्रिका भी निकालते हैं वे शायद 'कथ्य-रूप ' नामक ....
    आज दिनेश जी का नवगीत पढ़ उनकी याद हो आई .....

    बहुत अच्छा नवगीत है ....

    पिया कहाँ?
    हिया कहाँ?
    पूछे तुलसी चौरा,
    बाती बिन दिया कहाँ?

    हम सब कुछ भूले
    फिर कदम्ब फूले

    आपका भी परिचय देखा .....
    आप स्वंय साहित्य के गुणी हैं .....

    आभार .....

    जवाब देंहटाएं
  5. नमस्कार !
    अवनीश जी दिनेश सिंह जी हमारे समय के अद्भुत गीत कवि हैं |बहुत सुन्दर सा गीत पढवाने के लिए
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  6. आदरणीय दिनेश सिंह जी का नवगीत पढ़ने का सुअवसर उपलब्ध कराने के लिए
    प्रिय बंधुवर अवनीश सिंह चौहान जी आपका हार्दिक आभार !

    हीर जी ने सच कहा है … गुणी ही गुणी की पहचान कर सकता है । आपकी भी रचनाएं बहुत उत्कृष्ट हुआ करती हैं । साधु !

    बसंत पंचमी सहित बसंत ॠतु की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  7. DINESH SINGH JI KO KAEE BAAR PADHAA HAI .
    NAV GEET LIKHNE MEIN MEIN VE DAKSH HAIN .
    UNKEE YAH RACHNAA BHEE MUN KO SPARSH KAR
    GYEE HAI .

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रियाएँ हमारा संबल: