चित्र :डॉ श्रद्धांजलि सिंह से साभार
लघुकथा-1: भविष्य
उस दिन विश्वविद्यालय के एडमीशन सेल में बड़ी भीड़ थी। नर्सिंग में डिप्लोमा करने के लिए बारहवीं पास कई लड़के और लड़कियाँ अपने अभिभावकों के साथ कतार लगाए खड़े थे।
कुछ समय बाद एडमीशन प्रक्रिया सम्पन्न हुई। कुछ लड़के और लड़कियाँ खिलखिला रहे थे, तो कुछ दुखी दिख रहे थे। अभिभावकों की भी मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ थीं।
उसी समय नर्स का परिधान पहने दो लड़कियाँ वहाँ से गुजरीं। अभिभावकों ने जिज्ञासा-वश उन्हें रोक लिया। उन्होंने उनसे पूछा— "क्या आप नर्स हैं?'
उत्तर मिला— 'जी।'
'कहाँ', 'कैसे', 'क्यों' आदि प्रश्नों के साथ अभिभावकों ने एक प्रश्न और पूछा— 'कितनी सैलरी है?'
एक नर्स ने सकुचाते हुए कहा— 'आठ हजार प्रति माह।'
एक अभिभावक ने बताया कि दिल्ली में इसकी दोगुनी सैलरी मिलती है; तो दूसरे अभिभावक बोले कि इतना भी कम नहीं है, खाली बैठने से तो अच्छा ही है।
यह सब देख-सुन रहे कई लड़के-लड़कियाँ आपस में खुसपुसाने लगे। उन्हें अपना भविष्य दिखाई दे रहा था।
लघुकथा-2: इंक्रीमेंट
जनवरी माह में कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। एक निजी विश्वविद्यालय में कार्यरत डॉ विमल अपनी सैलरी बढ़वाने के लिए अपनी वार्षिक उपलब्धियों को रिक्वेस्ट लेटर में लिख रहे थे। उसी समय उनके सहकर्मी विजय बाबू उनसे मिलने आये।
विजय बाबू ने कहा— 'दिन-भर काम में लगे रहते हो? कुछ आराम भी कर लिया करो, प्रोफेसर साब।'
डॉ विमल बोले— 'एक वर्ष और बीत गया, मित्र। मेरा इंक्रीमेंट लगने का समय आ गया है। इसलिए कुलपति जी के लिए चिट्ठी बना रहा हूँ। कुछ जरूरी डॉक्यूमेंट्स भी इसके साथ जोड़कर भेजने हैं।'
'इतनी मोटी फाइल बनाने का क्या फायदा? आपका वार्षिक इंक्रीमेंट एक हजार रूपये ही होता आया है और इतना ही फिर होना है', विजय बाबू तपाक से बोले।
इतना सुनते ही डॉ विमल कुछ पल के लिए मौन हो गए। फिर उन्होंने गहरी साँस ली। उदासी उनके मौन पर भारी पड़ रही थी।
लघुकथा-3: मदद
एक दिन दोपहर बाद बी.ए. मास कम्युनिकेशन की छात्रा मनोरमा अपने पिता को लेकर विश्वविद्यालय आयी। वे दोनों पाठ्यक्रम कोर्डिनेटर से मिले। पाठ्यक्रम कोर्डिनेटर ने उसके पिता को बताया कि यह छात्रा पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे रही है, जिसके कारण उसके इंटरनल एक्जाम में मार्क्स अच्छे नहीं आये हैं।
उसके पिता बोले— 'ठीक है, मैडम। हम आगे ध्यान रखेंगे।'
कुछ समय बाद फाइनल एक्जाम के लिए विश्वविद्यालय में फॉर्म भरे जाने लगे। उस छात्रा ने एक्जाम फॉर्म नहीं भरा। पाठ्यक्रम कोर्डिनेटर ने कई बार फोन कर उसे समझाने की कोशिश की, किन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। समय बीता। फॉर्म भरने की अंतिम तिथि भी निकल गयी। फिर अचानक एक्जाम डेट के तीन दिन पहले मनोरमा अपने पिता को लेकर डीन से मिलने आयी।
डीन ने पूछा— 'बताएँ, क्या मैटर है।'
उसके पिता ने बड़ी विनम्रता से कहा— 'इसे एक्जाम फॉर्म भरना है। क्या ऐसा अब संभव है?'
डीन ने उसी समय रजिस्ट्रार और सीओई से फोन पर बात की और उन्हें बताया कि यद्यपि बहुत देर हो चुकी है, फिर भी छात्र के भविष्य को देखते हुए उसे आज फॉर्म जमा करने की अनुमति दी जाती है।
उसके पिता ने आर्थिक तंगी का हवाला देते हुए डीन महोदय से लेट फॉर्म सबमिशन फ़ाईन माफ़ करने के लिए आग्रह किया। उन्हें एक रिक्वेस्ट लेटर भी दिया। रिक्वेस्ट लेटर रजिस्ट्रार साब को भेजा गया। उन्होंने पचास प्रतिशत फाइन माफ़ कर दी। तदनुसार छात्रा का एक्जाम फॉर्म जमा कर लिया गया।
डीन ने चलते वक्त उसके पिता से पूछा— 'सच-सच बताएँ कि फॉर्म भरने में इतनी देर क्यों हुई।'
उसके पिता ने जवाब दिया— 'पाठ्यक्रम कोर्डिनेटर ने छात्रा की मदद करने से इंकार कर दिया था।'
'कैसी मदद?', डीन ने उत्सुकता-वश जानना चाहा।
'पास करने की मदद', मनोरमा स्वयं बोल पड़ी।
डीन अपना सिर पकड़ कर बैठ गए। शायद वे मदद का अर्थ समझने की कोशिश कर रहे थे।
अवनीश सिंह चौहान
जन्मतिथि : 4 जून, 1979
पिता : श्री प्रहलाद सिंह चौहान
माता : श्रीमती उमा चौहान
पत्नी : नीरज चौहान
शिक्षा : देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर (म.प्र.) से अंग्रेजी में एम.फिल. व पीएच-डी.
प्रकाशित कृतियाँ : अंग्रेजी में— ‘स्वामी विवेकानन्द : सिलेक्ट स्पीचेज’, 2004 (द्वितीय सं. 2012), ‘विलियम शेक्सपियर : किंग लियर’, 2005 (आईएसबीएन सं. 2016), ‘स्पीचेज ऑफ स्वामी विवेकानन्द एण्ड सुभाषचन्द्र बोस : ए कॅम्परेटिव स्टडी’, 2006, ‘फंक्शनल स्किल्स इन लैंग्वेज एण्ड लिट्रेचर’, 2007, ‘फंक्शनल इंग्लिश’, 2012, ‘राइटिंग स्किल्स’, 2012, ‘द फिक्शनल वर्ल्ड ऑफ अरुण जोशी : पैराडाइम शिफ्ट इन वैल्यूज’, 2016
पद्यानुवाद : ‘बर्न्स विदिन’ (हिंदी कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद), 2015
नवगीत संग्रह : ‘टुकड़ा कागज का’ (तीन संस्करण : 2013, 2014, 2024), ‘एक अकेला पहिया’, 2024
संपादित कृतियाँ : अंग्रेजी में— ‘इंडियन पोएट्री इन इंग्लिश— पेट्रिकोर : ए क्रिटीक ऑफ सीएल खत्री'ज पोएट्री’, 2020 (सह-सं)। हिंदी में— ‘बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता’, 2013, 'नवगीत वाङ्मय', 2021 (सं)
साक्षात्कार संग्रह : ‘नवगीत : संवादों के सारांश’ (साक्षात्कार संग्रह), 2023
विशेष : 'समकालीन नवगीत संचयन'— भाग 1, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, 2023 में रचनाएँ संकलित
संपादन: 'पूर्वाभास' (www.poorvabhas.in) तथा 'क्रिएशन एण्ड क्रिटिसिज्म' (www.creationandcriticism.com)
सम्मान : 'प्रथम कविता कोश सम्मान', 2011, 'बुक ऑफ द ईयर अवार्ड— 2011', 2012, 'सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार', 2013, 'नवांकुर पुरस्कार', 2014, 'हरिवंशराय बच्चन युवा गीतकार सम्मान', 2014, 'साहित्य गौरव सम्मान', 2015, 'दिनेश सिंह स्मृति सम्मान', 2018 आदि से अलंकृत
सम्प्रति : आचार्य व अध्यक्ष, अंग्रेजी विभाग तथा प्राचार्य, बीआईयू कॉलेज ऑफ ह्यूमनिटीज एण्ड जर्नलिज्म, बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, बरेली (उ.प्र.), ईमेल— abnishsinghchauhan@gmail.com, व्हाट्सएप्प— +91-9456011560
Three Short Stories in Hindi by Abnish Singh Chauhan
बहुत सुंदर ♥️😍
जवाब देंहटाएंकहानी में छुपा संदेश बहुत प्रेरणादायक है और समाज को सोचने पर मजबूर करता है।
आपने जिस तरह से एक साधारण घटना को गहरे अर्थों से जोड़ दिया, वह अद्भुत है।
कहानी का विषय बहुत रोचक और प्रासंगिक है। आपने इसे बड़े ही प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया है।
जवाब देंहटाएंइतने छोटे से प्रारूप में इतनी गहरी बात कह जाना आपकी लेखन क्षमता को दर्शाता है। 👌👌🙏🙏♥️😍😍
- शिवांशु अग्निहोत्री, शाहजहाँपुर
Admirable and inspiring
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कहानिया है। आज के हालात पर प्रकाश डालती है।
जवाब देंहटाएं-डॉ मधुबाला सक्सेना
बहुत सुन्दर दादा, पर लघुकथा में कहानीगत गुणों से बचना चाहिए। ऐसा मुझे लगता है, सादर निवेदित 🌷🙏
जवाब देंहटाएं- विनय विक्रम सिंह
Khaani (BHAVISHYA) me admission ke samay kuch bache udaas kiu the
जवाब देंहटाएंएडमिशन की प्रक्रिया में कुछ छात्रों को एडमिशन मिल जाता है और कुछ एडमिशन पाने से रह जाते हैं, आप समझ सकते हैं.
हटाएंOne more genre to your credit. 👏👏
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