कविप्रवर कुमार मुकुल जी से मेरी पहली मुलाक़ात बीकानेर हाउस, नई दिल्ली में हुई थी। वरिष्ठ रचनाकार आदरणीय अनिल जनविजय जी के साथ । ५ अगस्त २०११ को। वही पर सबसे पहले मुकुल जी ने अपनी कवितायें- 'ग्यारह सितम्बर', 'अंतरिक्ष में विचार', 'प्रेम के बारे में' सुनाईं थी । अनिल जी ने जब मेरा उनसे परिचय कराया तब कहा भी था कि मुकुल जी बहुत अच्छे कवि हैं; रचनाएँ सुनकर यह बात प्रमाणित भी हो गई। जब हम लोग जयपुर पहुंचे तब प्रथम कविता कोश सम्मान समारोह से पहले वाली रात में वरिष्ठ कवि आदरणीय नरेश सक्सेना जी, पूनम तुषामाड़ और मैं पुनः श्रोता बने मुकुल जी के। जब मुकुल जी ने अपनी 'आज' कविता सुनाई तो सक्सेना जी ने कहा कि इस कविता के कथ्य में ताज़गी है; अति सुन्दर; ऐसे ही लिखते रहियेगा। यह सब सुनकर मुझे भी अच्छा लगा। आज कई महीनों बाद मुकुल जी का कविता संग्रह पढ़ रहा था तब मन हुआ कि अपने पाठकों से इस विशिष्ट कवि की रचनाओं को साझा किया जाय। मुकुल जी का जन्म हुआ १९६५ में आरा, भोजपुर (बिहार) के संदेश थाने के तीर्थकौल गांव में। शिक्षा: एम.ए. (राजनीति विज्ञान) । १९८९ में अमान वूमेन्स कालेज फुलवारी शरीफ पटना में अध्यापन से आरंभ कर १९९४ के बाद अब तक दर्जन भर पत्र-पत्रिकाओं- अमर उजाला, पाटलिपुत्र टाइम्स, प्रभात खबर आदि में संवाददाता, उपसंपादक और संपादकीय प्रभारी व फीचर संपादक के रूप में कार्य। आपकी कुछ प्रमुख कृतियाँ: समुद्र के आंसू (1987), सभ्यता और जीवन (1989), परिदृश्य के भीतर (2000), ग्यारह सितंबर और अन्य कविताएं (2006)। कविता की आलोचना पर 'कविता का नीलम आकाश' नाम से एक किताब प्रकाश्य। देश की तमाम हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, समीक्षा और आलेखों का नियमित प्रकाशन। संपादन: 'संप्रति पथ' नामक साहित्यिक पत्रिका का दो सालों तक संपादन। वर्तमान में 'मनोवेद' त्रैमासिक पत्रिका के कार्यकारी संपादक। मोबा. 09213143392 । ई-मेल- kumarmukul07@gmail.com। आपकी पाँच कविताएँ यहाँ प्रस्तुत हैं:-
यह चित्र गूगल से साभार |
अशोक राजपथ, सिकंदर लेन
शाहजहाँ पथ
कभी मुल्क होता था
जिन सम्राटों- शहंशाहों के नाम
आज
जोगा रहे हैं वो
एक-एक सड़क ...
२. ख़ुशी
दृश्यों के विस्तार में
सिमटी रहती है
सपाट जल-तल के नीचे
बस एक कंकड़ी
और किल्लोल लहरों का
छू लेता है तट
फिर
वही एकालाप
लम्बा-सफ़ेद-स्याह ...
३. लोकायत
शरीर
तू है
तो आत्मा की
जय जय है
जो तू न हो तो
कोई कैसे कह सकता है
कि आत्मा
क्या शै है ...
४. हर चलती चीज
चेक करता हूं
तो मेल में
एक शिखंडी [ एन्वयमस ] मैसेज मिलता है -
कानून के हाथ लंबे होते हैं ...
अब क्या करेंगे आप ...
क्या करूंगा मैं
भला क्या कर सकता है एक रचनाकार
उजबुजाकर जूते फेंकने के सिवा
हां जूता तो फेंक ही सकता है वह
अब वह निशाने पर लगे या नहीं लगे
पर जब वह चल जाता है
तो खुद को बचा ले जाने की
सारी कवायदों के बावजूद
दुनिया के इकलौते कानूनाधिपति का चेहरा
गायब हो जाता है
और जूता चला जाता है
डॉलर में बदलता हुआ
इस पूंजीप्रसूत तंत्र की
यही तो खासियत है
कि हर चलती चीज
यहां डॉलर में बदल जाती है
अब कानून के हाथ
कितने भी लंबे हो
पर जीवन बेहाथ चलता है
बेहाथ चलता है जीवन ...
५. जो हलाल नहीं होता
मेरे सामने बैठा
मोटे कद का नाटा आदमी
एक लोकतांत्रिक अखबार का
रघुवंशी संपादक है
पहले यह समाजवादी था
पर सोवियत संघ के पतन के बाद
आम आदमी का दुख
इससे देखा नहीं गया
और यह मनुष्यतावादी हो गया
घोटाले में पैसा लेने वाले संपादकों में
इसका नाम आने से रह गया है
यह खुशी इसे और मोटा कर देगी
इसी चिंता में
परेशान है यह
क्योंकि बढ़ता वजन इसे
फिल्मी हीरोइनों की तरह
हलकान करता है
और टेबल पर रखे शीशे में देखता
बराबर वह
अपनी मांग संवारता दिखता है
राज्य के संपादकों में
सबसे समझदार है यह
क्योंकि वही है
जो अक्सर अपना संपादकीय खुद लिखता है
मतलब
बाकी सब अंधे हैं
जिनमें वह
राजा होने की
कोशिश करता है
राजा,
इसीलिए
गौर से देखेंगे
तो वह शेर की तरह
चेहरे से मुस्कुराता दिखता है
पर भीतर से
गुर्राता रहता है
पहले
उसके नाम में
शेर के दो पर्यायवाची थे
समाजवाद के दौर में
एक मुखर पर्यायवाची को
इसने शहीद कर दिया
पर जबसे वह मानवधतावादी हुआ है
शहीद की आत्मा
पुनर्जन्म के लिए
कुलबुलाने लगी है
जिसकी शांति के लिए उसने
अपने गोत्र के
शेर के दो पर्याय वाले मातहत को
अपना सहयोगी बना लिया है
यह अखबार
इसका साम्राज्य है
जिसमें एक मीठे पानी का झरना है
इसमें इसके नागरिकों का पानी पीना मना है
गर कोई मेमना
(यहां का हर नागरिक मेमना है)
झरने से पानी पीने की हिमाकत करता है
तो मुहाने पर बैठे शेर की आंखों में
उसके पूर्वजों का खून उतर आता है
और मेमना अक्सर हलाल हो जाता है
जो हलाल नहीं हुआ
समझो, वह दलाल हो जाता है
दलाल
कई हैं इस दफ्तर में
जिनकी कुर्सी
आगे से कुछ झुकी होती है
जिस पर दलाल
बैठा तो सीधा नज़र आता है
पर वस्तुत: वह
टिका होता है
ज़रा सी असावधानी
और दलाल
कुर्सी से नीचे...
मेरे सामने बैठा
जवाब देंहटाएंमोटे कद का नाटा आदमी
एक लोकतांत्रिक अखबार का
रघुवंशी संपादक है
पहले यह समाजवादी था
पर सोवियत संघ के पतन के बाद
आम आदमी का दुख
इससे देखा नहीं गया
और यह मनुष्यतावादी हो गया
बेहतरीन प्रस्तुति
शरीर
जवाब देंहटाएंतू है
तो आत्मा की
जय जय है
जो तू न हो तो
कोई कैसे कह सकता है
कि आत्मा
क्या शै है ...
सच है आत्मा का अस्तित्व शरीर से ही है ... पूरक हैं दोनों इक दूजे के ...
सभी कवितायें बहुत ही प्रभावी ... सामाजिक सरोकार लिए ... शुक्रिया इस परिचय का ...
उम्दा रचनाऎं !!
जवाब देंहटाएंमुकुल जी का परिचय और उनकी कवितायेँ पढ़कर आनंद की अनुभूति हुई... इस प्रस्तुति के लिए आपको धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआदरणीय मुकुल जी से अपने मित्र बिनोद भाई के साथ गणेश नगर में पहली बार मिला था | उनकी रचनाएं मेरे लिए प्रेरणाश्रोत रहीं हैं | मैं जब भी किसी रचना में दुविधा में पड़ता हूँ, मुकुल जी का ब्लॉग पढने लगता हूँ और असीम उर्जा से भर जाता हूँ | यहाँ पूर्वाभास में प्रस्तुत पाँचों कवितायें बेहतरीन हैं | कितना ज्वलंत सच है कि:
जवाब देंहटाएंइस पूंजीप्रसूत तंत्र की
यही तो खासियत है
कि हर चलती चीज
यहां डॉलर में बदल जाती है
हमसे ये बाँटने के लिए आभार
सुशील
सुंदर व अर्थपूर्ण कविताएँ ..... बधाई !
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंMein
dekhta hoon
aakash mein
chamakte
asankhye, an-ginat sitaare
apnee hee
tim-timahat mein magan
maano
kaali chadar per
moti jade hon
tab
mein
tumhaari taraf
ghoomta hoon,
teri aankhon mein
jhankta hoon
aur
soch mein
pad jaata hoon
ki 'US-NE'
kis parkar
is sab kaa
saman-vay
kiya hoga.....
ek jodi aankh
aur
asankhye
tim-timaate
sitaare
mein
fir ghoomta hoon,
aashcharya ke
saagar mein
doob jaata hoon
aur sochta hoon
ki
'WOH'
jise hum
sarav kalaa sampooran
sarav-gun sampann
maante hain
jis-ne apni srishtee ko
sunder banaane ke liye
aakash mein
asankheye
jag-magaate
sitaaron ki
rachnaa kee
kis parkaar....kyun...
itnee badi
bhool 'WOH'
kar baitha
aur
tumhaari
aankho mein
jyoti daalnee
bhool gaya
aur tumhen
andhaa banaa diya
anarth....ghor anarth
mein
fir ghoomta hoon
aur apne antarman mein
jhaankta hoon
sochta hoon
is
vi-sangatee ke prati
kya hum
kuch naheen........
kuch bhee naheen....
kar sakte....
yeh shareer to
nashwar hai
naa sahee abhee
marno-praant to
netra (aankhein) daan kar
ek naheen
do andhon ko
jyoti pradaan kar
'US-KI' bhool ka
sudhaar kar sakte hain
aao
netra daan ka
sankalp lein
सुन्दर कविताएं .....
जवाब देंहटाएं.............सुन्दर कविता ......
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