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शनिवार, 1 सितंबर 2012

दुष्यंत और उनकी छः कविताएँ — अवनीश सिंह चौहान

डॉ. दुष्यंत

"बतौर दुष्यंत भी वजूद बचा रहे तो गनीमत है| अलग-अलग शहरों में अलग-अलग लिबास पहनकर भटकता रहा हूँ| श्री गंगानगर की पैदाइश, फिर जयपुर आ गया| 1994 से यहाँ हूँ| ...इतिहास में पीएच.डी, पांच साल पढ़ाया, शोध किया और दस वर्ष से अधिक पत्रिकारिता में|" अपने बारे में डॉ. दुष्यंत द्वारा कहे गए इन पाँच वाक्यों की विस्तृत व्याख्या की जा सकती है और इनसे ही उनके व्यक्तित्व के बारे में काफी कुछ जाना जा सकता है।

भारत पाक सीमा पर केसरीसिंहपुर कस्बे (श्री गंगानगर, राजस्थान) में 13 मई 1977 को एक किसान परिवार में जन्मे डॉ. दुष्यंत एक बेहतरीन शायर-कवि-कहानीकार, अनुवादक एवं संवेदनशील पत्रकार हैं। इनके पास शब्दों की खेती करने का हुनर तो है ही, सादगी और साफगोई में भी यह शख्श किसी से कम नहीं है। संवाद को जीवन के लिये अपरिहार्य मानते हुए- "खुद से करना मुकालमा ऐ दोस्त/ कल भी था, आज भी जरूरी है।'' यह रचनाकार जहाँ राजस्थानी जीवन-तरंगों को बिखेरता "रेतराग" (उठे हैं रेतराग, राजस्थानी कविता संग्रह, 2005) गाता है वहीं प्रेम में असफल होने पर भी प्रेम (प्रेम का अन्य, कविता संग्रह, 2012) की सफल रचनाएँ लिखता है। इसका मतलब यह नहीं कि वह अपने आपको बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करना चाहता है, मतलब सिर्फ इतना कि वह जो है सो है। 

एक जगह तो वह अपनी शुरुवाती रचनाओं को "कच्चा" भी कह देता है, जबकि ये रचनाएँ अनुवादित होकर समकालीन भारतीय साहित्य जैसी बड़ी पत्रिकाओं में छप चुकी हैं। दुष्यंत की रचनाओं का अंग्रेजी, कन्नड़, पंजाबी, बांग्ला आदि भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। आपकी राजस्थानी कविताओं का हिन्दी अनुवाद मदन गोपाल लढ़ा और नीरज दईया ने किया है। आपका एक कहानी संग्रह और एक उपन्यास प्रकाशन की राह देख रहा है। पत्रकारिता और पटकथा लेखन के बुनियादी संस्कार डॉ दुष्यंत को आलोक तोमर से मिले और उनकी सरपरस्ती में 'एस-वन' चैनल' और 'सीनियर इंडिया' पत्रिका में काम करने के बाद इन दिनों जयपुर में 'डेली न्यूज़' अख़बार की संडे मैगजीन के प्रभारी हैं। वेब पत्रिकाओं 'कविताकोश', 'कृत्या', 'अनुभूति' आदि में भी कविताएँ प्रकाशित। 'शब्दक्रम' पत्रिका के सम्पादक। सम्मान: प्रथम कविता कोश सम्मान सहित कई अन्य सम्मान प्राप्त। संपर्क -43-17-5, स्वर्णपथ, मानसरोवर, जयपुर, राजस्थान, भारत; ई-मेल- dr.dushyant@gmail.com। यहाँ पर आपकी छः कविताएँ प्रस्तुत है:-

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार
१. रेतराग

कोसों पसरे मरुस्थल में
जब गूँजती है
किसी ग्वाले की टिचकार

रेत के धोरों से
उठती है रेतराग

और भर लेती है
समूचे आकाश को
अपनी बाहों में।

२. अचानक 

बैठे हों जब
किसी लॊन में
हरी दूब पर
अनायास ही चली जाती है हथेली
सर पर

तो अंगुलियां पगडंडी बनाकर
घुस जाती है बालों में
किंतु अहसास नहीं होता 
उस गर्माहट का
न ही वह नरम लहजा

और में डूब जाता हूं गहरा
तुम्हारी यादों के समुद्र में।

३. बोध

जब मिली धरती
आकाश से

जब बने बादल 
जब निपजे
खेत में धान के मोती

जब जन्मा शिशु
माँ की कोख से

तो मुझे हुआ बोध
अपने होने का।

४. प्रेम

मैने नहीं की पूजा
उस परमपिता की
न ही किया सुमिरन

किंतु जब तुमने
अपने भगवान से
मांग लिया मुझे

मैं आठों पहर का पुजारी हो गया।

5. मेरा-तुम्हारा

सांझा अपना इतिहास
सांझा अपना वर्तमान

तुम्हारे दुख में शामिल मेरा दुख
तुम्हारे सुख में शामिल मेरा सुख
जैसे मेरे सुख में शामिल तुम्हारा सुख
मेरे दुख में शामिल तुम्हारा दुख

यह धरती 
यह आकाश
पानी
वन
जानवर
हवा

जितने तुम्हारे
उतने ही मेरे
सांझे सपने जैसा
जो आता है आंखों में

कभी तुम्हारी
कभी मेरी।

६.  तुम्हारा होना 

तुम्हारा होना था मित्र
तुम्हारे हुए
हो कर हो गए पाषाण हम दोनों


पत्थरों की उम्र हो सकती हैं कई सदियां, 
सहस्त्राब्दियां भी, कई प्रकाश वर्ष 
स्यात कभी

आओ लुढक जाएं हम कुछ कदम, 
किसी ओर मेरे पाषाण मित्र ! 

Dr Dushyant ki Kavitayen

5 टिप्‍पणियां:

  1. डॉ. दुष्यंत जी की रचनाएँ निसंदेह प्रभावित करती हैं.

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  2. परमेश्वर फूंकवाल2 सितंबर 2012 को 4:34 pm बजे

    बहुत सुन्दर चित्र प्रस्तुत करती हैं यह रचनाएँ. एक से बढ़कर एक.

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  3. डॉ. दुष्यंत की चित्रात्मक शब्दावली वाली , अर्थगर्भित, लय खोजती ये ह्रदय को स्पंदित करती कवितायें प्रभावित करती हैं.बधाई.

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  4. मुझे पहली और तीसरी, ये दो कविताएँ बेहद अच्छी लगीं। इन कविताओं में रचे गए बिम्ब बड़े अच्छे हैं और आकर्षित करते हैं।

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