पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

बुधवार, 26 अगस्त 2015

ज्योत्सना शर्मा और उनके कुछ दोहे — अवनीश सिंह चौहान

डॉ ज्योत्सना शर्मा

डॉ. ज्योत्स्ना शर्मा का जन्म बिजनौर (उ.प्र.) में हुआ। शिक्षा : संस्कृत में स्नातकोत्तर उपाधि, पी-एच. डी.। प्रकाशन : ओस नहाई भोर तथा यादों के पाखी’(हाइकु-संग्रह), अलसाई चाँदनी (सेदोका–संग्रह) एवं उजास साथ रखना (चोका-संग्रह)। विविध पत्र-पत्रिकाओं एवं ब्लॉग्स में हाइकु, सेदोका, ताँका, चोका ,गीत, माहिया, दोहा, कुंडलियाँ, घनाक्षरी, ग़ज़ल, बाल कविताएँ, समीक्षा, लेख, क्षणिका आदि का अनवरत प्रकाशन। ब्लॉग : jyotirmaykalash.blogspot.in। सम्प्रति : कुछ वर्ष शिक्षण, अब स्वतन्त्र लेखन। सम्पर्क : एच-604 ,प्रमुख हिल्स, छरवाडा रोड, वापी, जिला- वलसाड, गुजरात (भारत) - 396191 । ई-मेल: jyotsna.asharma@yahoo.co.in, sharmajyotsna766@gmail.com

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार
नए स्वप्न ले नयन में, अधरों पर मुस्कान।
समय सखा फिर आ गया, धर नूतन परिधान।।

मानव-मन पाकर खिले, सदाचार की धूप।
सुख-सौरभ महके सदा, पाए रूप अनूप।।

सुबह सुनहरी सी सजे, सिंदूरी है शाम।
सुख-दुख में समभाव का, सूरज दे पैगाम।।

संग हँसे, रोयें सदा, नहीं मिलन की रीत।
प्रभु मेरी तुमसे हुई, ज्यों नैनन की प्रीत।।

सुख की छाया है कभी, कभी दुखों की धूप।
देख भी लो नियति-नटी,पल-पल बदले रूप।।

गए वक़्त की सुन रहा, आह व्यथाएँ कौन।
दादा-दादी की हुईं, आज कथाएँ मौन।।

सींच-सींच नित स्नेह से, देता चमन सँवार।
थोड़ा वास-सुवास पर, उसका भी अधिकार।।

देना नन्हें हाथ में, खुशियों का संसार।
नींव न ऐसी हो, बने, नफ़रत की दीवार।।

अनाचार का अंत हो, सत्पथ का निर्माण।
सदा वत्सला शारदे, कलम रचे कल्याण।।

भारत में हे भारती, सुख बरसे सब ओर।
कटे अमंगल की निशा, सजे सुहानी भोर।।

लिखना है तुझको यहाँ, खुद ही अपना भाग।
सरस-सृजन की जोत तू, कलुष-दहन की आग।।

शब्दों में आराधना, अर्थ मिला बाज़ार।
अकथ-कथा है पीर की, घर में भी लाचार।।

शीश चुनरिया सीख की, मन में मधुरिम गीत।
बाबुल तेरी लाडली ,कभी न भूले रीत।।

इस बेमकसद शोर में, कलम रही जो मौन।
तेरे –मेरे दर्द को, और कहेगा कौन।।

भरे-भरे से नयन हैं, मुरझाए अरमान।
मुख से, कहो न भारती, कहाँ गई मुस्कान।।

रिश्ते कल पूछा किए, हमसे एक सवाल।
खुद ही सोचो बैठकर,क्यों है ऐसा हाल?

सागर, सुख दुख की लहर, ये सारा संसार।
केवल आशा ही हमें, ले जाएगी पार।।

संग हँसें रोंयें सदा, नहीं मिलन की रीत।
प्रभु मेरी तुमसे हुई, ज्यों नैनन की प्रीत।।

माटी महके बूँद से, मन महके मृदु बोल।
खिड़की एक उजास की, खोल सके तो खोल।।

मानव-मन पाकर खिले, सदाचार की धूप
सुख-सौरभ महके सदा,पाए रूप अनूप।।

झूले,गीत, बहार सब, आम नीम की छाँव।
हमसे सपनों में मिला, वो पहले का गाँव।।

तम की कारा से निकल, किरण बनेगी धूप।
महकेगी पुष्पित धरा, दमकेगा फिर रूप।।

कच्ची माटी, लीपना, तुलसी वन्दनवार।
सौंधी-सौंधी गंध से, महक उठे घर-द्वार।।


Hindi Couplets of Dr Jyotsana Sharma

8 टिप्‍पणियां:

  1. दोहे अच्छे लगे। सुश्री डॉ ज्योत्सना शर्मा को बधाई। अवनीश भाई, आपका एवं पूर्वाभास का आभार।

    जवाब देंहटाएं
  2. protsaahan hetu bahut - bahut aaabhaar aadaraniy Kumar Ravindra ji ,aapaki sarahana naye lekhan kii prerana de gaii !

    aadaraniy Avanish ji ke prati bhi hruday se aabhaari hoon .

    saadar
    jyotsna sharma

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. डॉ ज्योत्सना के चुनिंदा दोहे प्रस्तुति हेतु धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  5. sundar dohon ke shilp se saje sundar manobhaon ki prastuti ke liye bahut bahut badhai!..

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रियाएँ हमारा संबल: