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मंगलवार, 7 जून 2016

जय चक्रवर्ती और उनके पाँच नवगीत — अवनीश सिंह चौहान

जय चक्रवर्ती

दिल दे तो इस मिज़ाज का परवरदिगार दे
जो रंज की घड़ी भी ख़ुशी से गुज़ार दे (दाग़ देहलवी)
रंज की घड़ी में भी मुस्कराहट बिखेरने वाले नवगीत कवि जय चक्रवर्ती का जन्म 15 नवम्बर 1958 को कन्नौज जनपद (उ.प्र.) के कीरतपुर गाँव में हुआ। हिन्दी साहित्य में एम.ए. और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद आप आई टी आई लि. (रायबरेली) में राजभाषा अधिकारी के पद पर कार्य करने लगे। आपकी  रचनाएँ 1980  से देश की प्रमुख साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में छप रही हैं। प्रकाशित कृतियां: थोड़ा लिखा समझना ज़्यादा (नवगीत संग्रह), सन्दर्भों की आग  (दोहा संग्रह)प्रकाशन : सप्तपदी, नई सदी के प्रतिनिधि दोहाकार, दोहासनद, दोहे तेरे नाम दे आदि प्रतिष्ठित दोहा संकलनों एवं ज़मीन के लोग, शब्दपदी, शब्दायन, नवगीत नई दस्तकें, गीत वसुधा, धार पर हम- दो, नवगीत के नये प्रतिमान आदि महत्वपूर्ण नवगीत संकलनों के सहयोगी रचनाकार। सम्मान: रेणु स्मृति सम्मान (रायबरेली), कबीर सम्मान (कबीर स्मृति मंच, प्रतापगढ़), डॉ किशोर काबरा काव्य पुरस्कार (हिन्दी साहित्य परिषद्, अहमदाबाद), स्व. भगवती प्रसाद पाठक सम्मान (कादम्बरी, जबलपुर) सहित कई अन्य सम्मानों से अलंकृत। संपर्क: एम. 1/149- जवाहर बिहार, रायबरेली- 229010 (उ.प्र.), मोब.- 09839665691। आपके पाँच नवगीत यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं:-
१५ नवम्बर १९५८ को कन्नौज जनपद (उ.प्र.) के कीरतपुर गाँव में जन्मे जय चक्रवर्ती जी हिन्दी साहित्य में एम.ए. और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद आई टी आई लि. (रायबरेली) में राजभाषा अधिकारी के पद पर कार्य करने लगे। उनकी रचनाएँ १९८० से से देश की प्रमुख साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में छपती आ रही हैं। सन्दर्भों की आग, सप्तपदी, नई सदी के प्रतिनिधि दोहाकार, दोहासनद, दोहे तेरे नाम दे आदि प्रतिष्ठित संकलनों में उनके दोहे और शब्दपदी, ज़मीन के लोग, नवगीत नई दस्तकें जैसे महत्वपूर्ण संकलनों में गीत/नवगीत प्राकाशित हो चुके हैं। आपको अब तक रेणु स्मृति सम्मान (रायबरेली), कबीर सम्मान (कबीर स्मृति मंच, प्रतापगढ़), डॉ किशोर काबरा काव्य पुरस्कार (हिन्दी साहित्य परिषद्, अहमदाबाद), स्व. भगवती प्रसाद पाठक सम्मान (कादम्बरी, जबलपुर) आदि डेढ़ दर्जन सम्मान-पुरस्कार प्रदान किये जा चुके हैं। संपर्क- एम. १/ १४९, जवाहर बिहार, रायबरेली- २२९०१० (उ.प्र.), मोब.- 09839665691 ।

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१५ नवम्बर १९५८ को कन्नौज जनपद (उ.प्र.) के कीरतपुर गाँव में जन्मे जय चक्रवर्ती जी हिन्दी साहित्य में एम.ए. और मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद आई टी आई लि. (रायबरेली) में राजभाषा अधिकारी के पद पर कार्य करने लगे। उनकी रचनाएँ १९८० से से देश की प्रमुख साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में छपती आ रही हैं। सन्दर्भों की आग, सप्तपदी, नई सदी के प्रतिनिधि दोहाकार, दोहासनद, दोहे तेरे नाम दे आदि प्रतिष्ठित संकलनों में उनके दोहे और शब्दपदी, ज़मीन के लोग, नवगीत नई दस्तकें जैसे महत्वपूर्ण संकलनों में गीत/नवगीत प्राकाशित हो चुके हैं। आपको अब तक रेणु स्मृति सम्मान (रायबरेली), कबीर सम्मान (कबीर स्मृति मंच, प्रतापगढ़), डॉ किशोर काबरा काव्य पुरस्कार (हिन्दी साहित्य परिषद्, अहमदाबाद), स्व. भगवती प्रसाद पाठक सम्मान (कादम्बरी, जबलपुर) आदि डेढ़ दर्जन सम्मान-पुरस्कार प्रदान किये जा चुके हैं। संपर्क- एम. १/ १४९, जवाहर बिहार, रायबरेली- २२९०१० (उ.प्र.), मोब.- 09839665691 ।

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1. रहे जब तक पिता

रहे जब तक
पिता
घर जैसा रहा घर.


एक चौका, एक चूल्हा
एक आँगन, एक छत
एक जैसे मन सभी के –
मुँह अलग पर एक मत

एक डोरी से
बंधे थे-
धरा-अंबर.
उत्सवों जैसा सदा था
उत्सवों का आगमन
दमकती थी द्वार पर
उल्लास की उजली किरन

स्वर अभावों का
कभी-
ठहरा न पल-भर.

 
शीश पर वटवृक्ष –सी
छाया हमेशा थी सघन
शीत,वर्षा,घाम सबमे-
थी घुली स्नेहिल छुवन

डर अँधेरों का
हमेशा-
रहा डर कर.


2. तुम भी बदलो पापा

बेटा बोला –
बदल गई है दुनिया
तुम भी बदलो पापा.

भारत को भूलो ,
‘इंडिया’ से नाता जोड़ो
पियो ‘पेप्सी-कोक’
छाछ–लस्सी को छोड़ो

‘ब्लैक डॉग’ के सँग
डिस्को-डीजे की धुन पर
उछलो पापा.


खत्म गाँव का करो झमेला,
खेत-पात बेचो
चलो राजधानी, महलों की –
जगर-मगर देखो

बूढ़ी भाषा,
जड़-संस्कारों से अब
बाहर निकलो पापा.


मिलो व्हाट्सएप, ट्विटर -
फेसबुक पर मित्रों से
जीवन के सब दुख-सुख 

शेयर करो चित्रों से

मेल-मोहब्बत,
ख़तो-किताबत अब
बक्से मे रख लो पापा.

3. मेरे गाँव मे


खुल गया है बंधु !
शॉपिंग मॉल
मेरे गाँव मे.
 

लगी सजने कोक ,पेप्सी
ब्रेड,बर्गर और
पिज्जा की दुकानें
आँख मे पसरे हुये हैं
स्वप्न मायावी–प्रगति
के छत्र तानें

आधुनिकता का बिछा है
जाल
मेरे गाँव मे.


हँस रहे हैं
पत्थरों के वन
सिवानों और खेतों के वदन पर
ढूँढती दर-दर –
सुबह से शाम गौरैया
वही घर, वही छप्पर
 

हैं हताहत –
कुएं –पोखर –ताल
मेरे गाँव मे.


उत्सवों की पीठ पर
बैठे हुए हैं
बुफ़े, डीजे और डिस्को
स्नेह-स्वागत, प्यार या
मनुहार वाले स्वर
यहाँ अब याद किसको !

मौन है अब
गाँव की चौपाल
मेरे गाँव मे.


4. काम आता ही नहीं कुछ

है न जानें ज़िंदगी का
कौन-सा ये मोड़!


आँख मे हैं अहर्निश
दंगाइयों –सी क्रूर–चिंतायेँ
बोझ ज़िम्मेदारियों का कठिन
सिर पर, तंग सीमाएं
 

काम आता ही नहीं कुछ
गुणा, वाकी, जोड़.


चल रहा है साथ ऐसे तो
निरंतर एक कोलाहल
नहीं आता है कहीं से किन्तु
कोई स्वर -सरस स्नेहिल

गर्व था जिन पर,गए सब
मीत वे ही छोड़.


सृष्टि जो मैंने रची, उसमें
स्वयं को खोजता हूँ मैं
कहाँ भूला पथ, हुई क्या चूक
खुद से पूछता हूँ मैं

निकल पाता काश ! मैं
इन सरहदों को तोड़.


5. आप इनको क्या समझते हैं

दीखते हैं संत ,
पर सुल्तान हैं ये
आप इनको क्या समझते हैं?
 

अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित
विमानों पर नित विचरते
स्वर्ण –मंडित आश्रमों मे
‘भक्त-जन‘ की पीर हरते

धर्म-ध्वज की –
स्वयं भू पहचान हैं ये
आप इनको क्या समझते हैं?

इन्हें छू पाये नियम -
कानून कोई यह असंभव
जो भिड़ा इनसे कभी
है सुनिश्चित उसका पराभव

आज-कल के दौर के
भगवान हैं ये
आप इनको क्या समझते हैं?

कुर्सियाँ अनगिनत सुबहो-शाम
इनको सर झुकातीं
टोपियाँ आशीष पाकर
हर भँवर से मुक्ति पातीं

राज सत्ता के-
सगे मेहमान हैं ये
आप इनको क्या समझते हैं?
         

Jai Chakrawarti from Raebareli, U.P.

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