पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

गुरुवार, 30 सितंबर 2021

अंतरजाल पर 'गीत-पहल' — राजा अवस्थी

 


किसी भी तरह की कला अथवा साहित्य में प्रमुख रूप से परम्परा में दो रूप मिलते हैं। एक 'देखत' रुप और दूसरा 'सुनत ' रूप। वस्तुतः देखना ही पढ़ना है और सुनना भी पढ़ना ही है। देखने और सुनने के लिए कोई वस्तु या रूप चाहिए, जिसे देखा, कहा और सुना जा सके। उस वस्तु को साहित्य विद्या के इन रूपों में लाने का काम साहित्यकार करता है। उल्लेखनीय और महत्वपूर्ण यह है कि इस साहित्य विद्या में राजनीति, अर्थनीति, दण्ड नीति, प्रकृति, भूगोल आदि जीवन के सभी क्षेत्रों के विषय में कहा गया है। तो, जीवन के विशाल-विराट परिदृश्य के विषय में कहे गये को सुरक्षित रखने के लिए ही लिखने की कला को अस्तित्व मिला। अब इस लिखे हुए को कहाँ-कहाँ सुरक्षित रखा जा सकता है, जहाँ से पाठक आसानी से उसका उपयोग कर सके। भित्ति लेखन से लेकर धातु और भोजपत्रों से होते हुए आज अपने लिखे हुए को कागज पर सुरक्षित रखा जा रहा है। इस कागज को पुस्तक का रूप देकर बड़े-बड़े ग्रन्थों का रूप देकर दूर-दूर तक पहुँचाया जा रहा है। यह खराब होने पर दूसरा संस्करण भी छपवाया जाता है। यानी कि बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध ने लिखने-पढ़ने और साहित्य संरक्षण व प्रसार के तरीके में क्रान्तिकारी परिवर्तन ला दिया। कम्प्यूटर और अंतरजाल (इन्टरनेट) के आविष्कार ने साहित्य को सुरक्षित रखने के साथ उसकी पहुँच को असीमित और बहुत तेज कर दिया। इतना ही नहीं, यह आर्थिक दृष्टि से भी बहुत सस्ता हो गया है। आज हर पाठक अपनी पसंद और जरूरत का साहित्य चाहे जब और चाहे जहाँ पढ़ सकता है। पढ़ता ही है। तकनीक के द्वारा प्रदत्त इस सुविधा को साहित्य और सम्पूर्ण वैश्विक समाज के हित में उपयोग करने में साहित्यकार भी क्यों पीछे रहता, वह भी बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से ही इस सुविधा का भरपूर उपयोग करने के उपक्रम में लगा हुआ है। 

इस आभासी दुनिया का वास्तविक संसार असीमित है। इसकी व्यापकता व पहुँच भी इस विराट संसार में असीमित है। इस संसार में भिन्न-भिन्न तरह के असीमित ज्ञान के साथ साहित्य की सभी विधाओं में किया जाने वाला सृजन भी काफी मिलता है और इसमें लगातार वृद्धि होती जा रही है। इस आभासी दुनिया के साहित्य संसार में नवगीत कविता ने भी अच्छी खासी जगह पर अपना आधिपत्य जमा रखा है। नवगीत-कविता की यह दुनिया लगातार बढ़ती-फैलती जा रही है। यहाँ नवगीत-कविता के कवियों, लेखकों को न सिर्फ शेष दुनिया तक पहुँचने का अवसर मिला है, बल्कि काव्य-प्रेमी पाठकों को भी वास्तविक कविता के आस्वादन का अवसर सुलभ हुआ है। छपी हुई सामग्री का मूल्य आम पाठक की पहुँच से बाहर होने और पुस्तकों की अनुपलब्धता से जो पाठक साहित्य का आस्वाद नहीं ले पाते थे, उन्हें इस आभासी दुनिया ने सभी तरह का साहित्य बहुत सरलता से सुलभ करा दिया है। नवगीत कविता तक भी पाठकों की पहुँच आसान हुई है और बढ़ी है। नवगीत कविता को आभासी दुनिया में उपलब्ध कराने के लिए फेसबुक, व्हाट्सएप्प, ब्लाॅग, आर्कुट, यूट्यूब आदि पर, जहाँ व्यक्तिगत साहित्य प्रस्तुत करने का काम हुआ है, वहीं समूची नवगीत कविता परम्परा में उपलब्ध साहित्य को आभासी संसार में सुलभ कराने के लिए कुछ साहित्यकार सक्रिय हैं। उनका यह कार्य उल्लेखनीय व रेखांकित करने योग्य है। आज इनके ही सद्प्रयासों से नवगीत कविता का विपुल साहित्य अंतरजाल पर उपलब्ध है। आभासीय संसार में नवगीत कविता संसार की निरन्तर वृद्धि कुछ विशिष्ट नामित मंचों के माध्यम से की जा रही है। ये सभी मंच यूट्यूब, ब्लॉग, ई-पत्रिका, वेब-पत्रिका, वेबसाइट, फेसबुक, फेसबुक समूह, व्हाट्सएप्प समूह आदि के रूप में कार्य कर रहे हैं।

हिन्दी कविता को इन्टरनेट पर लाने के लिए जो लोग सक्रिय रहे, उनमें जो नाम उभरकर सामने आते हैं, उनमें पूर्णिमा वर्मन, अनिल जनविजय, ललित कुमार, जयप्रकाश मानस, अवनीश सिंह चौहान, रवि रतलामी, सरन घई आदि प्रमुख हैं। किन्तु कविता और मूलरूप से नवगीत कविता पर केंद्रित काम प्रमुख रूप से अवनीश सिंह चौहान और पूर्णिमा वर्मन ने किया; पूर्णिमा वर्मन कविता के अन्य-अन्य प्रारूपों के साथ गद्य की विधाओं पर भी काम करती रही हैं। यद्यपि ये इन्टरनेट पर हिन्दी कविता को एक व्यवस्थित रूप में सँजोने वालों में प्रथम पंक्ति की साहित्यकार हैं, किन्तु पूरी तरह नवगीत कविता पर केंद्रित होकर इन्टरनेट पर काम करने वाले साहित्यकारों-संपादकों में अवनीश सिंह चौहान का नाम महत्वपूर्ण है। इनके काम में जहाँ 'पूर्वाभास' (www.poorvabhas.in) इनका लगातार सक्रिय उपक्रम है, वहीं 'गीत-पहल' (https://geetpahal.webs.com/) एक बड़ी और महत्वपूर्ण कोशिश की परिणति के रूप में  इन्टरनेट पर सदैव उल्लेखनीय सामग्री से भरी और देश-विदेश में खूब पढ़ी जाने वाली हिन्दी नवगीत की सबसे पुरानी पत्रिका के रूप में उपस्थित है। 

'गीत-पहल' का महत्व इसलिए भी अधिक है कि इन्टरनेट पर नवगीत कविता पर इतनी अधिक और महत्वपूर्ण सामग्री पहली बार उपलब्ध कराने का काम 'गीत-पहल' ने ही किया था। इस काम में 'गीत-पहल' के संपादक अवनीश सिंह चौहान को अबाध लगन के साथ बहुत श्रम भी करना पड़ा। ये नवगीत कवि दिनेश सिंह के साथ उनके संपादन में निकल रही नवगीत कविता पर केंद्रित पत्रिका— 'नये-पुराने' में सहयोग कर रहे थे। दिनेश सिंह के अधिक अस्वस्थ हो जाने के कारण 'नये-पुराने' के अंतिम दो अंकों का संपादन से लेकर प्रकाशन तक का लगभग पूरा काम इन्हें ही करना पड़ा। इस काम को करते हुए प्रिंट मीडिया की मुश्किलों और सीमाओं को ये समझ रहे थे। ये मुश्किलें और सीमायें आर्थिक तो थीं ही, मुद्रित साहित्य की पहुँच का दायरा सीमित होना भी किसी नये विकल्प की माँग कर रहा था। इन्टरनेट अस्तित्व में था। अवनीश सिंह चौहान को इन्टरनेट पर साहित्य सँजोकर उपलब्ध कराने के लिए काम करना ज्यादा आसान और जरूरी भी लगा। ये अंग्रेजी साहित्य के विद्यार्थी और प्राध्यापक होने के साथ अंग्रेजी के लेखक भी हैं। अवनीश जी मूलतः साहित्य के ही विद्यार्थी हैं। कम्प्यूटर और इन्टरनेट सम्बन्धी तकनीकी ज्ञान इनके पास नहीं था। उसके लिये इन्हें अलग से सीखने की जरूरत थी, इन्होंने सीखा भी और इस तरह 'गीत-पहल' पर काम शुरू हो गया। अंततः 24 अक्टूबर 2010 को 'गीत-पहल' का विमोचन डॉ बुद्धिनाथ मिश्र, डॉ. महेश दिवाकर और डॉ शचींद्र भटनागर के कर-कमलों से मुरादाबाद (उत्तर प्रदेश) में सम्पन्न हुआ। 

'गीत-पहल' की यात्रा डाॅ. अवनीश की इस दिशा में यात्रा के संघर्ष-भरे उपक्रम की कहानी तो है ही, यह इन्टरनेट पर किसी पत्रिका के एक अंक में उल्लेखनीय सामग्री देने के मामले में 'मील का पत्थर' भी है। साहित्यिक पत्रकारिता में डाॅ.अवनीश सिंह चौहान आज एक बड़ा और बहुत प्रतिभाशाली नाम है। इस प्रतिभा की एक बड़ी झलक हमें 'गीत-पहल' में देखने को मिलती है। ब्राउज़र पर गीत-पहल अंकित करते ही बहुत ही आकर्षक और रंगीन कलेवर में 'गीत-पहल' सामने आ जाता है। इसकी कुल सामग्री सम्पादकीय, विशिष्ट रचनाकार, रचनाएँ, संस्मरण, साक्षात्कार, समीक्षा, मत-मतान्तर, नये-पुराने से, साहित्यिक हलचल आदि नौ खण्डों में वर्गीकृत करके पीडीएफ मोड में प्रकाशित-प्रदर्शित की गई है। 'गीत-पहल' के उद्देश्य के विषय में वेबसाइट पर कहा भी गया है कि "गीत-पहल का एक मात्र उद्देश्य हिन्दी गीतों एवं नवगीतों और उनसे सम्बन्धित सामग्री को इन्टरनेट पर एक स्थान पर उपलब्ध कराना है, ताकि संसार भर के पाठक-विद्वान इसका लाभ उठा सकें। इस प्रकार से गीत-पहल हिन्दी काव्य को विश्वभर में प्रचारित एवं प्रसारित करने का एक प्रयास है।"

गीत-पहल में विशिष्ट रचनाकार खण्ड में डाॅ शिव बहादुर सिंह भदौरिया, डाॅ राजेन्द्र गौतम, अशोक अंजुम, दिनेश सिंह, माहेश्वर तिवारी, वीरेंद्र आस्तिक व पूर्णिमा वर्मन की नवगीत कविताएँ शामिल की गयी हैं। 'रचनाएँ' खण्ड में अनूप अशेष, अरुणा दुबे, अवध बिहारी श्रीवास्तव, अश्वघोष, आनंद तिवारी, इष्ट देव सांकृत्यायन, इशाक अश्क, उमाशंकर, ऋषिवंश, डाॅ ओम प्रकाश सिंह, कुमार रवींद्र, कैलाश गौतम, कौशलेंद्र, गुलाब सिंह, चंद्रसेन विराट, जहीर कुरैशी, तरुण प्रकाश, तारादत्त निर्विरोध, दिनेश सिंह, नईम, नचिकेता, नारायण लाल परमार, निर्मल शुक्ल, नीलम श्रीवास्तव, बुद्धिनाथ मिश्र, भारत भूषण, मधुकर अष्ठाना, मधुसूदन साहा, मयंक श्रीवास्तव, मनोज जैन 'मधुर', माहेश्वर तिवारी, यश मालवीय, यशोधरा राठौर, रामकिशोर दाहिया, राम सेंगर, वसु मालवीय, विनय भदौरिया, विनोद श्रीवास्तव, वीरेंद्र आस्तिक, शांति सुमन, शीलेंद्र कुमार सिंह चौहान, शिवबहादुर सिंह भदौरिया, सत्यनारायण, सुधांशु उपाध्याय, हृदयेश, त्रिलोक सिंह ठकुरेला, ज्ञानवती सक्सेना, ज्ञानेंद्र चौहान, श्री कृष्ण शर्मा, श्री रंग आदि 50 से अधिक नवगीतकवियों की नवगीत कवितायें शामिल की गयी हैं। 'संस्मरण' खंड में कैलाश गौतम और बुद्धिनाथ मिश्र के संस्मरण शामिल किये गये हैं। जगदीश पीयूष ने 'झरल आम अब झरल पताई गौतम जी' शीर्षक से कैलाश गौतम पर और ऋचा पाठक ने 'बूढ़ी माँ का लाड़ला बेटा' शीर्षक से डाॅ. बुद्धिनाथ मिश्र पर संस्मरण लिखा है। ये दोनों नवगीत कवि अपनी नवगीत कविताओं के साथ इस दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं कि मंच पर नवगीत कविता को बनाये रखने में एक समय इनकी बड़ी भूमिका थी। 'साक्षात्कार' खंड में अवनीश सिंह चौहान की सत्यनारायण से बातचीत एवं डॉ. विष्णु विराट से डॉ. महेश दिवाकर की तथा डॉ. ओम प्रकाश सिंह से डॉ. महेश दिवाकर की बातचीत शामिल हैं। इस तरह यहाँ तीन बहुत महत्वपूर्ण साक्षात्कार शामिल किए गए हैं। 'गीत-पहल' के 'समीक्षाएँ' खंड में चार महत्वपूर्ण समीक्षाएँ शामिल की गयी हैं : 1. 'वरिष्ठ नवगीतकार डॉ शिव बहादुर सिंह भदौरिया की रचनाधर्मिता 'नदी का बहना मुझमें हो' के संदर्भ में — अवनीश सिंह चौहान, 2. कैलाश गौतम के कविता संग्रह पर प्रियंका चौहान की लिखी समीक्षा— 'जोड़ा ताल बुलाता है', 3. दिनेश सिंह के नवगीत संग्रह- 'टेढ़े-मेढ़े ढाई आखर' पर 'प्रणय धर्म का गायन : परम्परा से उत्तर आधुनिकता तक' — अवनीश सिंह चौहान, 4. 'प्रख्यात गीतकार दिनेश सिंह की रचनाधर्मिता : 'समर करते हुए के संदर्भ में' — अवनीश सिंह चौहान। इस तरह इस खण्ड में पाँच महत्वपूर्ण समीक्षा आलेख प्रदर्शित किये गये हैं। 'मत मतान्तर' खण्ड में डॉ वेदप्रकाश 'अमिताभ' का आलेख— 'गीत में 'घर' और 'गाँव': अपनी जड़ों की तलाश' शामिल है। इसके अलावा 'गीत-पहल' में कुछ अतिरिक्त उल्लेखनीय कहे जाने लायक भी कुछ है और वह यह कि नवगीत कविता की महत्वपूर्ण पत्रिका— 'नये-पुराने', जिसने अपने 6 अंकों में ही नवगीत के संदर्भ में बड़ा काम कर दिया, के सभी अंकों की संपादकीय को सहेजा गया है। इस तरह यह अवनीश जी की संपादकीय दृष्टि को दिखाने वाला काम है। 

'गीत-पहल' नवगीत कविता के लिये एक अच्छी पहल थी। इसके लिये डाॅ अवनीश सिंह चौहान तो बधाई और साधुवाद के पात्र हैं ही, उनके साथ जो एक पूरा 'समूह' भविष्य में कुछ और अच्छा कार्य करने के लिए जुड़ा था, जिसके संरक्षक मंडल में— सत्यनारायण, माहेश्वर तिवारी एवं गुलाब सिंह, संपादक मंडल में— आनन्द कुमार गौरव, रमाकांत और योगेन्द्र वर्मा 'व्योम' तथा संपादकीय परामर्श में— दिनेश सिंह, वेदप्रकाश 'अमिताभ' व  बुद्धिनाथ मिश्र हैं, भी उतना ही बधाई और साधुवाद का पात्र है। 'गीत-पहल' के इस एक मात्र अंक को देखें, तो लगता है कि इसमें आगे और काम होना चाहिये था, किन्तु यही ऊर्जा और योजना संभवतः 'पूर्वाभास' के रूप में गतिमान है— यद्यपि 'पूर्वाभास' का प्रारूप 'गीत-पहल' के प्रारूप से काफी कुछ अलग है।  


लेखक : राजा अवस्थी हिंदी भाषा-साहित्य के सुप्रतिष्ठित साहित्यकार हैं। संपर्क : गाटरघाट रोड, आजाद चौक, कटनी-483501 (मध्यप्रदेश), मो. 9131675401, ईमेल : raja.awasthi52@gmail.com.
Article on 'Geet-pahal' E-magazine by Raja Awasthi

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