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शनिवार, 1 जुलाई 2023

अंहिंस : 21वाँ अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन भूटान में संपन्न


रायपुर/ दिल्ली । मनुष्य  इस नित्य स्वरूप ब्रह्माण्ड की उपज है । वह स्वयं में ब्रह्माण्ड ही है । जगत  में व्याप्त समस्त शक्तियाँ, उदारताएँ,  उसके हाथ में हैं । सोचने का विषय है वे कौन से कारण हैं कौन-सी राजनीति है, कौन-सी विचारधारा है, कौन-सा परिवेश, जिसने मनुष्य को मनुष्य से दूर कर दिया है । अंहिंस परिवार द्वारा आयोजित यह अंतराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन मनुष्य को मनुष्य से परिचित कराने की व्यायाम शाला है, जिसमें सभी अपनी इच्छा से सुविधा में प्रेम से सद्भाव से और उदारता से भाग लेते हैं । परस्पर सहयोग और प्यार ही एक मात्र  नियम है । 21 वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन, सिलीगुड़ी-भूटान की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध रचनाकार और उत्तराखंड सरकार में उच्च शिक्षा विभाग की पूर्व निदेशक डॉ. सविता मोहन ने आगे कहा कि -  सरकारी संस्थाओं द्वारा संचालित सम्मेलन जहाँ गठजोड़ से, सरकारी धन के अपव्यय का कारण होते हैं, वहीं हमारा यह सम्मेलन परस्पर हृदय को हृदय की बात बताने का सम्मेलन है ।  हम मिलते नहीं - जुड़ते हैं, जीवन में कभी नहीं अलग होने के लिए और यही अंहिंस परिवार का वास्तविक परिचय है । यह किसी गौरवशाली परंपरा से कतई कम नहीं जो अंहिंस बिना सरकारी धन या अनुदान के विगत 21 वर्षों से देश से बाहर हिंदी के उत्थान के लिए सक्रिय है । 

पश्चिम बंगाल में स्नेह समारोह : 103 हिंदी लेखकों का आत्मीय अभिनंदन

हिंदी संस्कृति के वास्तविक सरोकार की तलाश

भूटान सम्मेलन में सम्मिलित होने देश भर से पहुँचे रचनाकारों और हिंदीसेवियों के सम्मान में 4 जून 2023 की सुहानी शाम भूटान-भारत सीमा पर सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) के चेकपोस्ट स्थित होटल के सभागार में 'स्नेह समारोह' आयोजित किया गया । सिलीगुड़ी की सक्रिय साहित्यिक संस्थाओं - हिंदी पत्रिका 'आपका तिस्ता हिमालय', अकादमिक प्रतिष्ठान 'उत्तर बंग हिन्दी ग्रंथागार' एवं ऑनलाइन न्यूज पोर्टल 'द सन एक्सप्रेस' के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित स्नेह समारोह में 103 से अधिक रचनाकारों, संपादकों व हिंदी-शिक्षकों को प्रतीक चिन्ह, उत्तरीय, श्रीफल एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। 

अंहिंस के अंतराष्ट्रीय समन्वयक डॉ. जयप्रकाश मानस ने विगत 20 वर्षों से निरंतर विदेशी धरती पर संयोजित किये जा रहे अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि – “एक भारतीय मनुष्य – दुनिया के भूंडलीकरण को क्या इस रूप में देख सकता है – जैसे वह हमारी बहुत पुरातन आकांक्षा को पूरा करती हो ? उस आकांक्षा को जिसमें वसुधैव कुटुम्बकम् की चरम मानवीय भावना शामिल है । कहीं वसुधैव कुटुम्बकम् हमारी कोई कोरी कल्पना तो नहीं, कहीं वसुधैव कुटुम्बकम् हमारी वायवी अभिलाषा तो नहीं ! भूमंडलीकरण की खतरनाक अवधारणा से विश्व बाज़ार, व्यापार, आवारा पूंजी को माइनस करके देख सकें तो कदाचित वह भारतीय मनीषा के लिए निहायत नई घटना भी तो नहीं । हम देखते चले आये हैं - कोई मनुष्य अकेला द्वीप बनकर नहीं रहता । वह स्वयं को सदा शेष से जुड़ने का स्वप्न देखता है। वह औरों के भीतर संपूर्णता की तलाश करते हुए ही अपने अधूरेपन से मुक्ति प्राप्त कर सकता है ।  यही हिंदी की असली चिन्ता है । यही हिंदी संस्कृति के वास्तविक सरोकार है ? यही से हमारी हिंदी संस्कृति का भविष्य निर्भर करता है ।” 

स्नेह समारोह सिलीगुड़ी में हिंदी के विभिन्न स्वरूपों वाले क्षेत्रों में सक्रिय रचनाकारों को परस्पर जोड़ने की महत्वपूर्ण और सोद्देश्य परंपरा में हिंदी की उत्कृष्ट हिंदी सेवा के लिए पूर्वोत्तर भारत की एकमात्र वैचारिक पत्रिका और लगभग डेढ़ दशक से अनवरत् प्रकाशित ‘आपका तिस्ता हिमालय’ के यशस्वी संपादक और लेखक डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह को अहिंदीभाषी अंचल में हिंदी साहित्य व पत्रकारिता की सतत् साधना हेतु ‘पं. माधव राव सप्रे पत्रकारिता सम्मान-2023’ से विभूषित किया गया । इसके अलावा पश्चिम बंगाल के 3 वरिष्ठ आलोचक, कवि और लेखिका – डॉ. देवेन्द्र नाथ शुक्ल, डॉ. सविता मिश्र तथा करन सिंह जैन को अंहिंस परिवार द्वारा ‘हिंदी सेवी सम्मान-2023’ से सम्मानित किया गया । इस अवसर पर पश्चिम बंगाल के जाने माने लेखक, कवि और लघुकथाकार डॉ. भीखी प्रसाद वीरेन्द्र सहित बड़ी संख्या में स्थानीय रचनाकार, संस्कृतिकर्मी औऱ गणमान्य नागरिक उपस्थित थे । 

सिलीगुड़ी में पहली बार 100 से अधिक साहित्यकारों का संगम

स्नेह समारोह के मुख्य स्थानीय संयोजक, संपादक व बुद्धिजीवी डॉ. राजेन्द्र सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि – “सिलीगुड़ी सूर्यादय की सनातन भूमि है । यह संन्यासी विद्रोह की क्रांतिकारी भूमि है। यह संभवतः पहली बार हो रहा है कि यहाँ सौ से भी अधिक संख्या में हिंदी के रचनाकार एक साथ पधारे हैं और सिलीगुड़ी को आतिथ्य का अवसर मिल रहा है । भारत की जो सामासिक संस्कृति है, उसकी जीवंतता का एक दृष्टांत हैं – अंहिंस परवार । इस ऐतिहासिक अवसर पर मेरा एक सवाल है, उस पर आप गहराई से विचार करें । हमारे सृजन का उद्देश्य क्या है, हम किनके लिए सृजन करते हैं ? मेरा मानना है कि धरती पर जितने लोग हैं,वे सभी किसी न किसी सृजन में लगे हुए हैं । जाहिर है उनके द्वारा उत्पादित वस्तु का इस्तेमाल भी है, लेकिन हम जो उत्पादन कर रहे हैं, उसकी उपयोगिता क्या है । सामाजिक विसंगतियों के ख़िलाफ़, धार्मिक उन्माद के ख़िलाफ़ और नस्लीय-विभाजन के ख़िलाफ़ हम कितना लिख रहे हैं, यह बात हमारे चिंतन में शामिल है या नहीं । समय, समाज और संघर्ष का जो वर्तमान परिदृश्य है, उसे हम कितना उभार पा रहे हैं – इस पर आप अवश्य विचार करें ।” 

गौतम बुद्ध की जिज्ञासा, कबीर की घुमक्कड़ी और बाबा नागार्जुन की फक्कडी

मुख्य सम्मेलन – पारो में

21 वें अंहिंस के स्वागताध्यक्ष तथा बुद्ध-दर्शन के अध्येता लेखक आनंद प्रकाश गुप्ता ने विगत 2 दशकों से हिंदी के संवर्धन के लिए स्वयंसेवी आधार पर सक्रिय संस्था अंहिंस से परिचित कराते हुए कहा कि – “अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन एक ऐसा परिवार है, जिसके सदस्य भले ही लेखन और विचारधारा के स्तर पर परस्पर सहमत नहीं, किन्तु हिंदी साहित्य और संस्कृति के वैश्विक विस्तार के लिहाज़ से ठीक ऐसे संगठित हैं, जैसे कोई रक्त संबंधी हों । पिछले 19-20 सालों से अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन की रचनात्मकता और विश्वसनीयता का प्रश्नांकित रहस्य भी यही है। अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन मूलतः स्वाश्रयी, स्वावलंबी, स्वाध्यायी और स्वतंत्र चेतना के अनुयायियों का ऐसा संगठन है जो गौतम बुद्ध की जिज्ञासा, कबीर की घुमक्कड़ी, राहूल सांस्कृत्यायन की यायावरी और बाबा नागार्जुन की फक्कडी पर यदकिंचित आस्था रखते हैं । अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ के पाठों का व्यवहारिक अर्थ इन्हीं रास्तों से तलाशने का एक अति लघु प्रयास है ।” 

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि बिना किसी केंद्रीय या राज्य सरकार के सहयोग, विश्व भर में सृजनरत हिंदी औऱ भारतीय भाषाओं के सक्रिय और प्रवासी रचनाकारों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए इससे पूर्व रायपुर, बैंकाक, मारीशस, पटाया, ताशकंद, संयुक्त अरब अमीरात, दुबई, कंबोडिया, वियतनाम, चीन, नेपाल, इडोनेशिया (बाली), गुवाहाटी (असम), राजस्थान, रूस, ग्रीस, म्यांमार में 20-20 अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनों का आयोजन संपन्न हो चुका है । 

ज़ोंगखा की ज़मीन पर हिंदी की 31 किताबों का लोकार्पण

21 वें अंहिंस सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में हिंदी की 31 कृतियों और पत्रिकाओं के नये अंक का विमोचन हुआ, इसमें शामिल हैं – सद्धर्म की पाठशाला और The Ultimate Liberation (आनंद प्रकाश गुप्ता), हिंदीतर प्रदेशों एवं विदेशों में हिंदी (जवाहर गंगवार), मिस्र की यात्रा, राजपूत-यौधेय लौधेय तथा यौधेय और प्रतिहार राजपूत (डॉ. रामकृष्ण राजपूत), कालजयी कम्पिल (डॉ. रत्ना सिंह), प्रकृति का उपहार-राष्ट्राकृति म्यांमार (विद्या प्रकाश कुरील), सीपी में समन्दर, छलाँग लगाती स्त्रिया और पंजाबी अनुवाद (डॉ. वंदना गुप्ता), ऐसे न बुलाओ मुझे, चलो आज कुछ बात कर लें औऱ कुछ रहने भी दो अनकही (ओडिया से हिंदी अनुदित कविता संग्रह – राधू मिश्र), वीमेन आईडी (राजश्री झा), पल-पल के जिनगानी, सुनता के राग तथा छत्तीसगढ़ के प्रयोगधर्मी और अन्वेषी साहित्यकार (छत्तीसगढ़ी – चेतन भारती), काव्य कलिका (वीणापाणि मिश्र), जय जगन्नाथ (नम्रता चड्ढ़ा), आम्ह मा र कहाणी पेड़ी (ओडिया – सौदामिनी सामंतराय), प्रकृति (सुधा पटनायक), स्वप्न राज्य में नन्हें विज्ञानी (बसीरन बीबी), अमर प्रेम (रीता मिश्र), प्रशांत की लोककथाएँ और न्यूजीलैंड की हिंदी यात्रा (रोहित कुमार हैप्पी – न्यूजीलैंड) तथा राजनीति का धरम-करम : धरम-करम की राजनीति (डॉ. जयप्रकाश मानस) । जिन हिंदी पत्र-पत्रिकाओ के नये अंक का विमोचन किया गया है, उनमें समवेत सृजन (अरुंधती भोई), रचना उत्सव (रतिभान त्रिपाठी), तथागत संदेश (डॉ. रमेश सुखदेवे), आपका तिस्ता हिमालय (डॉ. राजेन्द्र प्रसाद सिंह) आदि प्रमुख हैं । 

रचनात्मक योगदान के लिए 14 रचनाकारों का अंलकरण

21 वें वार्षिक अलंकरण समारोह में डॉ. रेनू शुक्ला और डॉ. रत्ना सिंह (सिंधु रथ स्मृति सम्मान-11,000 रूपये), ऱीता मिश्र और मंजूला त्रिपाठी (सलेकचंद जैन स्मृति सम्मान-11,000 रूपये), जवाहर गंगवार और चेतन भारती (दाऊ कल्याण सिंह स्मृति सम्मान-11,000 रूपये), डॉ. मनोहर लाल श्रीमाली औऱ बसीरन बीबी (डॉ. सच्चिदानंद त्रिपाठी स्मृति सम्मान-11,000 रूपये), डॉ. अलेख चंद्र पढ़िहारी, आईएएस और राधू मिश्र (डॉ. श्यामलाल निर्मोही स्मृति सम्मान-11,000 रूपये), विद्याप्रकाश कुरील (कर्नल विप्लव त्रिपाठी स्मृति सम्मान-5000 रूपये), युवा तबला वादक हीरालाल साहू (डॉ. ब्रजवल्लभ मिश्र स्मृति सम्मान-5000 रूपये) तथा अरुंधती भोई को (सागर बीच रिसोर्ट कोवलम् यात्रा सम्मान) से पुरस्कृत किया गया । विशेष तौर पर उत्कृष्ट लेखन हेतु 11, 111 रूपये का दाऊ कल्याण सिंह स्मृति सम्मान से डॉ. सविता मोहन को नवाज़ा गया । 

इसके अलावा ख्यात पुरातत्वविद डॉ. रामकृष्ण राजपूत (पद्मसंभव गुरु रिन्पोचे स्मृति सम्मान), उपन्यासकार डॉ. हरिसुमन बिष्ट को (पद्मभूषण झाबरमल्ल शर्मा स्मृति सम्मान), डॉ. मंगला रानी, रतिभान त्रिपाठी, किरण बाला जीनगर, और उर्मिला सिंह को (ट्रू मीडिया सम्मान) को सम्मानित किया गया । 

न्यूजीलैंड और आकलैंड की सस्थाओं द्वारा विशेष सम्मान

21 वें सम्मेलन में जाने-माने खेल पत्रकार और हिंदी कमेंटेटेर श्री जसवंत कुमार क्लाडियस नई दुनिया के पूर्व संपादक और लेखक श्री रवि भोई को पत्रिका के संपादक द्वय क्रमशः श्री रोहित कुमार हैप्पी तथा प्रीता व्यास की ओर से ‘भारत दर्शन प्रतिष्ठा सम्मान, न्यूजीलैंड’, तथा ‘अंतरराष्ट्रीय पहचान सम्मान, आकलैंड’ से अंलकृत किया गया । 

21 वें सम्मेलन भूटान में विमर्श का केंद्रीय विषय था - ‘राजनीति का धरम-करम : धरम-करम की राजनीति’, जिसमें अतिथि वक्ता के रूप में सहभागी रहे - भूटान के प्रसिद्ध धर्म गुरु, लेखक, कवि व विचारक और सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता की नीति के विशेषज्ञ डॉ. खेनपो फुंतशोक ताशी, पत्रकार, संपादक, सांसद तथा राष्ट्रीय असेंबली भूटान के पूर्व स्पीकर डॉ. दाशो पास्सांग दोरजी और बांग्लादेश से जाने-माने टेक्नोक्रेट डॉ. संतोष कुमार पंडा । 

इस विमर्श सत्र में विशेष तौर पर शिक्षाविद डॉ. रेखा पांडेय, न्यायाधीश राजेन्द्र कुमार सिंह, उत्तराखंड भाषा संस्थान के पूर्व निदेश डॉ. सविता मोहन, पूर्व विधायक (उत्तरप्रदेश) उर्मिला सिंह, चिकित्सक और समाजसेवी डॉ. पद्मिनी सोनवनी, अधिवक्ता जवाहर सिंह गंगवार, पत्रकार रवि भोई, जिला पंचायत अध्यक्ष (धमतरी) कांति सोनवानी ने अपना शोध आलेखों का वाचन किया । विषय प्रवेश कराते हुए दो मुख्य आलेखों का वाचन किया - पटना की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. मंगलारानी एवं गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार की प्रोफ़ेसर (इतिहास) डॉ. रेणु शुक्ला ने । 

अंतरराष्ट्रीय रचनापाठ में 7 भाषाओं का कविता पाठ

अंतरराष्ट्रीय रचना पाठ सत्र में भूटानी भाषा सहित गुज़राती, हिदी ओडिया, असमिया, तमिल, छत्तीसगढ़ी, बांग्ला, उत्तराखंडी, राजस्थानी सहित कई जनपदीय भाषाओं की उत्कृष्ट कविता तथा उसके अनुवाद का वाचन किया गया है। कविता पाठ करने वाले रचनाकारों में प्रमुख हैं – राधू मिश्र, नीरज नैथानी, किरण बाला जीनगर, चेतन भारती, विद्या प्रकाश कुरील, मंजुला त्रिपाठी, डॉ. मनोहर लाल श्रीमाली, कुंतला दत्ता, डॉ. हरिसुमन बिष्ट, डॉ.पुष्पा जोशी, जगमोहन आजाद, मृत्युंजय मोहन्ती, डॉ. ज्योत्स्ना रानी पंडा, रीता मिश्र, डॉ. अंतर्यामी प्रधान, डॉ. संजुक्ता मिश्रा, सुधा पटनायक, श्री राधू मिश्रा, नम्रता चड्ढ़ा, डॉ. वंदना गुप्ता, गजेंद्रसिंह जयसिंह राज, डॉ. मोहन बैरागी, दामू वी जगमोहन, युक्ता राजश्री, सुभाष त्रिपाठी, मुमताज आदि । 

कवि जयदेव के गीत गोविंद पर ओडिसी

अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के पंचम सत्र ‘सांस्कृतिका’ में भूटान तथा भारतीय संगीत, लोक नृत्य, गायन व वादन की विशेष प्रस्तुतियाँ दी गईं जिसमें नृत्यांगन डॉ. स्निग्धा स्वाईं द्वारा कवि जयदेव के गीत गोविंद पर ओडिसी, सुधा पटनायक द्वारा गीत-गोविंद पर शास्त्रीय नृत्य तथा युवा संगीतकार हीरालाल साहू द्वारा तबले पर त्रिताल की भाव-भीनी प्रस्तुति प्रमुख हैं । इसके अलावा छत्तीसगढ़ी, उत्तराखंडी, ओडिया, असमी, राजस्थानी, केरलीय, गुजराती तथा मिजोरमी लोकनृत्य की प्रस्तुति पर भूटान और भारत के दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठे । 

3 देश 13 राज्य के 103 रचनाकारों की भागीदारी

21 वें सम्मेलन भूटान में बांग्लादेश और भारत के प्रमुख 13 राज्य के 103 रचनाकारों की उल्लेखनीय भागीदारी रही जिनमें आंध्रप्रदेश/तेलंगाना से श्री विद्या प्रकाश कुरील, वीना कुरील और विशेषता पार्थ, राजस्थान से डॉ. मनोहर लाल श्रीमाली और किरणबाला जीनगर असम से कुंतला दत्ता उतराखंड से डॉ. सविता मोहन, डॉ. रेखा पाण्डेय डॉ. रेणु शुक्ला, श्री नीरज नैथानी, माधुरी नैथानी, पश्चिम बंगाल से डॉ. वंदना गुप्ता और हरीश चंद्र गुप्ता मिजोरम से डॉ. संजय कुमार और मंजुला कुमारी बिहार से  डॉ. मंगला रानी उत्तरप्रदेश से डॉ. रामकृष्ण राजपूत, उर्मिला सिंह, जवाहर सिंह गंगवार, गीता सिंह, राजेन्द्र कुमार सिंह, डॉ. रत्ना सिंह, रूद्र प्रताप सिंह, स्वप्नेश मणि पटेल, डॉ. धारिणी गंगवार, अक्षिता, आरोही, रतिभान त्रिपाठी और अमित जैन, ओडिसा से डॉ. गोवर्धन साहू, मृत्युंजय मोहन्ती,डॉ. ज्योत्स्ना रानी पंडा, डॉ. संतोष कुमार पंडा,  डॉ. नित्यानंद सामंतराय, सौदामिनी सामंतराय,  मंजुला त्रिपाठी,  रीता मिश्र,  डॉ. स्निग्धारानी स्वाईं,   डॉ. अंतर्यामी प्रधान,  सुभाष पात्र, इदिरा पात्र, बसीरन बीबी, डॉ. संजुक्ता मिश्रा,  सुधा पटनायक, डॉ. अलेख चंद्र पढ़िहारी,  राधू मिश्रा, नम्रता चड्ढ़ा और वीणापाणि मिश्र, गुजरात से डॉ. गजेन्द्रसिंह जयसिंह राज, केरल से शिशुपालन रविन्द्रन, मध्यप्रदेश से डॉ. मोहन बैरागी छत्तीसगढ़ से डॉ. पद्मिनी सोनवानी,  राजकुमारी सोनवानी, मंजुलता, कांति, धर्मिन, मंजुबाला गनवीर, भूपेन्द्र कुमार, चेतना ताम्हने, देवबती गनवीर, हर्षलता, दामू वी जगमोहन, निर्मला मोहन, रवि भोई, अरुंधती, हितेश, विशाल, जसवंत क्लाडियस,  शशि बी. क्लाडियस, डॉ. सुरेश कुमार शुक्ला, अखिलेश आमदे, स्वतंत्र कौशल, संतरिन कौशल, कपिल देशहलरा, मोनिका, कृष्ण कुमार अनुरागी, हीरालाल साहू, गीता साहू, सुभाष त्रिपाठी, आशा त्रिपाठी, ललिता त्रिपाठी, आनंद प्रकाश गुप्ता, सुमन गुप्ता, डॉ. कल्पना सुखदेवे, डॉ. रमेश सुखदेवे, चेतन भारती, राजश्री झा, मुमताज और कल्पना रथ दिल्ली/नोएड़ा से डॉ. पुष्पा जोशी, जगमोहन आजाद, डॉ. नमिता चतुर्वेदी, डॉ. हरिसुमन बिष्ट,कमला विष्ट, श्री पूरन सिंह, उमा बिष्ट, नीतेश मलिक, राज पटेल, शिवानी जैन, उपासना गोयल, पिंकी जैन और कुणाल जैन आदि प्रमुख हैं । 

अनेक संस्थाओं का सहयोग

4 जून से 12 जून तक हुए इस 21 वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन को सफल बनाने में देश-विदेश की जिन सांस्कृतिक संस्थाओं और पत्रिकाओं ने प्रायोजन सहयोग किया उनमें प्रमुख हैं – सृजन-सम्मान छत्तीसगढ़, डॉ. सच्चिदानंद त्रिपाठी स्मृति संस्थान कटक, आपका तीस्ता हिमालय सिलीगुड़ी, उत्तर बंग हिंदी ग्रंथागार सिलीगुड़ी, द सन एक्सप्रेस, भारत दर्शन न्यूजीलैंड, पहचान आंकलैंड, ट्रू मीडिया दिल्ली, रचना उत्सव प्रयाग, तथागत संदेश रायपुर, सलेकचंद जैन स्मृति संस्थान दिल्ली, डॉ. ब्रजवल्लभ मिश्र स्मृति संस्थान पुणे, सिंधुदेवी रथ स्मृति संस्थान रायगढ़, दाउ कल्याण सिंह सोनवानी स्मृति संस्था धमतरी, कर्नल विप्लव त्रिपाठी स्मृति संस्थान रायगढ़, सागर बीच रिसोर्ट कोवलम केरल। 



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