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गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

'एक बूँद हम' : बूंद में समाहित गीत गंगा — किशन तिवारी

मनोज जैन 'मधुर कृत “एक बूंद हम” का
लोकार्पण करते वरिष्ठ साहित्यकार

गीत सहजता से उपजता है यह समस्त पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक संस्कारो और उनसे प्रदत्त पीड़ाओं को सहकर फलता-फूलता और पल्लवित होता रहता है, जितनी गहराई से कवि भावनाओ को अनुभूत करता है और अन्तरमन की गहराइयों में उसकी लय ढूंढ कर जब उसे गुनगुनाता है तब वह गीत सभी को ऐसा लगता है, कि मानो यह उसका अपना गीत है। गीत खेत-खलिहान, नदी, तालाब, पर्वत, फूल-पत्तो में ओसारे में बंधी गाय, मजदूर के श्रम, पारिवारिक प्रेम और विघटन, नायिका के श्रृंगार में हर जगह अपनी एक भाषा, अपना अनोखापन अपनी सरसता खोज कर झरने की तरह फूट पड़ता है, और समग्र वातावरण को आनंदित कर देता हैं।

गीत रमते शंख वीणा बांसुरी शहनाइयों में
गीत अन्र्तचेतना की जा बसे गहराइयों में

मनोज जैन ‘मधुर’ माटी से जन्मे गीतकार है, जिन्होंने सपने देखे उनको बिखरते देखा, श्रम किया, सामाजिक सत्रासों से गुजरते हुऐ, आशा का दीप कभी बुझने नहीं दिया, लोक संस्कृति से जुड़े होने के कारण उनके कथ्य में उनके भावों में, उनकी लय में एक खनक सी गूंजती है, जो पाठक को श्रोताओं को बांधती है, और अभिभूत करती है। मनोज की गीत के प्रति अपार निष्ठा है जो उन्हें गीतों से जोड़ती है -

गीत की लय में परम सुख खोज लेता हूँ
स्वर्ग से सुख का धरा पर में विजेता हूँ
गीत मेरे तप्त मन को छांव देते हैं

प्रत्येक मनुष्य के जीवन विस्तार के लिऐ सपनो का होना आवश्यक है। जब तक वह सपने नहीं देखेगा उसके जीवन का विकास विस्तार बाधित हो जायेगा। मनोज भी अपने सपनों को संजोकर रखना चाहते हैं -
जीवन भर सपने सिरहाने रख कर सोये हैं।

मनोज इस कठिन दौर में सपने तो देखते हे किन्तु उन्हें साकार करने हेतु सिर्फ कल्पनाओं के सहारे नहीं हैं वे श्रम का दामन नहीं छोड़ते। इस विषय में स्पष्ट अभिमत है - "समय चुनौती देगा मुझको आकर लड़ने की/ तभी मिलेगी नई दिशाऐं आगे बढ़ने की।' मनोज के गीत बड़बोले नहीं है उनमें एक सादगी और स्वयं को कहीं बहुत ऊँंचे स्थापित करने की मनोभावना नजर नहीं आती मगर एक आत्म विश्वास अवश्य उनके गीतों में बराबर झलकता है जो उन्हें छोटा नहीं होने देता है बल्कि उन्हें एक मजबूती प्रदान करता हैं- 'मंजिल खुद तेरे कदमों को आकर चूमेगी/ कर्म मथानी से सपनों को रोज बिलोया कर।'

'एक बूँद हम' के गीत मानवीयता के संवाहक है, मनुष्य के हित में किये जा रहे प्रत्येक संघर्ष में वे उसके साथ नजर आते है और साथ ही प्रतिरोधात्मक शक्ति के साथ मनुष्य के खिलाफ अथवा मानवता के विरोध में किये जा रहे दुसाहसों और षड्यन्त्रों के सम्मुख सीना ताने खड़े नजर आते हैं- 'कब हमें मिलती यहां कीमत पसीने की/ हो गई आदत घुटन के बीच जीने की/ कम उमर में पक गये है खोपड़ी के बाल।'वर्तमान समय में बढ़ते बजारवाद बढ़ती आम आदमी की पीड़ा से कवि अनभिज्ञ नहीं हो सकता, कवि आम आदमी की पीड़ा में सहभागित है। उनके गीत इस पीड़ा को इस तरह अभिव्यक्ति देते हैं- 'नींदो में भी विज्ञापन का प्रेत उभरता हैं।'

कवि की राजनैतिक चेतना आम आदमी की पीड़ा और जनतंत्र के प्रति अपनी अडिग आस्था को फलीभूत होते देखना चाहती है। और यही विश्वास मनोज की इन पंक्तियों को जन्म देता है।

तुम्हारे हाथ में सरकार सौंपी थी समझ अपना
मुझे डर है न थम जाये कहीं गणतंत्र का पहिया।

मनोज जैन की यह पंक्तियां सिर्फ पाठको के लिए प्रेरणा स्त्रोत नहीं है बल्कि इन पंक्तियों से वे स्वयं को भी तराशने का प्रयत्न करते है और करते रहेंगे -

तट पर मत कर शोर
जलधि में उतर
डूबकर मोती ला

समग्रता से मनोज जैन मधुर का गीत संग्रह ‘‘एक बूंद हम’’ अपनी गागर में सागर समोये हुऐ है, जो उनकी भविष्य की सम्भावनाओं को एक विस्तृत आकाश प्रदान करता है जहां वे इस गीत की गंगा को गंगोत्री से गंगासागर तक ले जाने के भागीरथ प्रयास में लगे हुऐ है। गीत के प्रति उनका यह भाव आधुनिक साहित्य में गीत को सम्बल प्रदान करेगा।
                                                                                   
                             किशन तिवारी
पता - 34-सेक्टर 9ए साकेत नगर
भोपाल, 462024
मो. 09425604488


'Ek Boond Ham' kee Sameeksha by Kishan Tiwari

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