चर्चित रचनाकार रजनी मोरवाल का जन्म 1 जुलाई 1967 को आबूरोड़ (राजस्थान) में हुआ था। शिक्षा: बी.ए.(हिन्दी), बी.कॉम, एम.कॉम, बी.एड.। प्रकाशित कृतियाँ: (1) काव्य-संग्रह- “सेमल के गाँव से” (2) गीत-संग्रह- “धूप उतर आई” (3) गीत-संग्रह- “अँजुरी भर प्रीति”। प्रकाशन: विभिन्न प्रतिष्टित पत्र-पत्रिकाओं में गीत, नवगीत, कविता, लघुकथा, लेख आदि का निरन्तर प्रकाशन। प्रसारण: जयपुर एवं अहमदाबाद दूरदर्शन से गीत प्रसारित एवं जयपुर, उदयपुर तथा अहमदाबाद आकाशवाणी से गीत प्रसारित। सम्मान: वाग्देवी पुरस्कार, रामचेत वर्मा गौरव पुरस्कार, हिन्दी साहित्य परिषद, गुजरात द्वारा आयोजित काव्य प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्ति स्वरूप रजत पदक एवं प्रशस्ति-पत्र से महामहिम श्रीमती (डॉ.) कमला बेनीवाल, राज्यपाल, गुजरात द्वारा हिन्दी पर्व पर पुरस्कृत, अस्मिता साहित्य सम्मान आदि। आपने विभिन्न राष्ट्रीय कवि-सम्मेलनों, मुशायरों एवं कवि-गोष्टियों में गीत-गान एवं गज़ल-पठन तथा कवि-शिविरों में पत्र-वाचन किया है। संप्रति: केन्द्रीय विद्यालय में शिक्षिका के पद पर कार्यरत। सम्पर्क: सी- 204, संगाथ प्लेटीना, साबरमती-गाँधीनगर हाईवे, मोटेरा, अहमदबाद -380 005। दूरभाष: 079-27700729, मोबा.09824160612.
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देह खाली पोंगरी
औ' ज़िन्दगी बाँसों भरा वन
साँस की लय-तान छेड़े
बाँसुरी बन जाय तन-मन
साधना का सुर सजाकर
छंद गीतों में पिरों लूँ,
प्राण की धूनी रमाकर
चित्त अनहद में डुबो लूँ,
भक्तिमय संसार हो
हर साँझ फिर गूँजे भजन
पर्वतों - सी वेदनाएँ
व्योम तक फैली हुई हैं,
सागरों - सी कामनाएँ
तीर पर मैली हुई हैं,
देह की चादर समेटूँ
मुक्त कर सारे प्रबंधन
मोहमय संसार सारा
लोभ रेतीला बवंडर,
रूप का व्यापार सारा
ज्वार चढ़ता ज्यों समंदर,
पाँव में घुँघरू सजा लूँ
ज़िन्दगी हो जाए नर्तन
साँस थमती जा रही है
उम्र के पिछले पहर में,
देह धँसती जा रही है
स्वार्थ के गहरे ज़हर में,
धुप-बाती अब लगा लूँ
बाँसुरी बन जाए प्रवचन।
2. बदलती संस्कृति
अधरों पर झूठी मुस्कानें,
आँखों में तन्हाई है
जाने उड़कर कौन दिशा से,
यह संस्कृति घर आई है
हृदय हुए हैं रिक्त मेघ से
संवेदन सूने- सूने,
सस्ती महिमा ओढ़े बैठे
भाव चढ़े दूने- दूने
विज्ञापित चेहरों के पीछे,
झाँक रही सच्चाई है
मूँछ तान कर सीना ठोके
बगुले भगत सयाने हैं,
श्वेत वस्त्र धारण करके भी
लगते चोर पुराने हैं
नेताओं की सौदेबाजी,
वोट कहाँ ले पाई है?
बाज़ारू सम्मान हुए हैं
पुरस्कार मानो चंदा,
मोल-भाव हो जाता पहले
मकड़जाल – सा है फंदा
रुपयों ले गोरखधंधे में
रिश्तों की भरपाई है।
रिश्तों की भरपाई है।
3. आँधियाँ बदलाव की
मौन टूटी आह लेकर
बस्तियों में सो रहा है
ये तनावों के बगीचे
बीज रिश्तों के सड़े हैं,
क्या करें उम्मीद फल की
पेड़ जब सूखे पड़े हैं?
बेरुखी का खेत सन्नाटे
निरंतर बो रहा है
झर गई ख़ुशियाँ छिटककर
शाख ने काँटे सजाए,
रिक्त्तता की फुनगियों पर
सुर हवाओं ने बजाए,
शोक में डूबा हुआ हर घर
परेशां हो रहा है
गाँव की मिट्टी बिछुड़कर
आ रही है अब शहर में,
आँधियाँ बदलाव की अब
छा रही है हर पहर में,
गीत पनघट पर अकेला
सिसकियों में रो रहा है।
Hindi Poems of Rajni Moraval
Hindi Poems of Rajni Moraval
अति सुन्दर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद वसुन्धरा जी ,साथ ही सम्पादक महोदय जी को आभार |
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंलाजवाब गीत हैं सभी ... आपका आभार रजनी जी के गीत साझा करने के लिए ...
जवाब देंहटाएंरजनी मोरवाल जी को तीन रंगों में, तीन सुन्दर गीतों के लिए बधाई. जहाँ एक गीत आध्यात्मिक भावभूमि पर है वहीं दूसरे दो गीत मनुष्य के दूरंगेपन एवम् रिश्तों के बीच उगी नागफनी व बढ़ती खटास के बीच सिसकते सम्बन्धों पर केन्द्रित हैं. तीनों.गीत अच्छे हैं. साधु .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद श्री नसावा जी और अवस्थी जी.........आभार |
जवाब देंहटाएंjindgi baso bhara van ..achcha geet hai
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