पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

बुधवार, 7 मई 2014

विनम्र श्रद्धांजली : दिवाकर वर्मा और उनके पाँच नवगीत — अवनीश सिंह चौहान

दिवाकर वर्मा
(25 दिसंबर 1941 - 1 मई 2014 )

आपातकाल के दौरान ग्वालियर केन्द्रीय काराग्रह में रहे मीसाबंदी दिवाकर जी को शायद ही हम कभी भूल पायें | उनकी उन्मुक्त हंसी, हरफनमौला व्यक्तित्व, हर छोटे बड़े के साथ आत्मीयतापूर्ण व्यवहार, सादगी, सरलता सबको अपना बना लेती | दिनांक 01 मई 2014 को दिवाकर जी ने अपनी जीवन यात्रा पूर्ण की | एक सामान्य स्वयंसेवक कितना असामान्य होता है, इसे दिग्दर्शित करता है दिवाकर जी का जीवन वृत्त -पौष शुक्ल सप्तमी संवत १९९८ दिनांक २५ दिसंबर १९४१ को सूकर क्षेत्र सोरों जी में जन्मे दिवाकर वर्मा अपने माता पिता की इकलौती संतान होने के कारण लाड प्यार से पले ! हाई स्कूल तक सोरों में फिर इंटर वृन्दावन से तथा स्नातक परिक्षा मथुरा से उत्तीर्ण की ! मथुरा में रिश्ते के एक बड़े भाई कालेज में प्रोफेसर थे ! शिक्षा पूर्ण होने के बाद सागर जिले के खुरई में संस्कृत शिक्षक बने ! फिर भुसावल में रेलवे की ए.एस.एम. ट्रेनिंग ९ माह की, किन्तु इंस्ट्रक्टर से झंझट हो जाने के कारण बीच में ही छोडकर बापस आ गए ! इसी दौरान विवाह संपन्न हो गया ! विवाह के बाद खुरई मंडी कमेटी में एकाउन्टेंट बने पर ७-८ महीने में ही यह नौकरी भी छोड़ दी ! पोलिटेक्निक खुरई में भी ८-१० माह ही टिके ! किन्तु ए.जी. ऑफिस में लंबे समय तक सेवा में रहे ! जून ६५ से जुलाई ६७ तक भोपाल तथा उसके बाद ग्वालियर ! 

सन १९७४ में भारतीय मजदूर संघ से जुड कर विभागीय जिम्मेदारी संभाली ! आपातकाल के दौरान मीसावंदी रहते पूर्णकालिक बनने का विचार पुष्ट हुआ ! अतः ग्वालियर से पुनः भोपाल ट्रांसफर कराया ! ७९ में भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश मंत्री तथा बाद में प्रदेश उपाध्यक्ष रहे ! ८५ के बाद दायित्व मुक्त और २००१ में सेवानिवृत्त हुए ! ९८ से साहित्य सृजन शुरू हुआ तथा २००२ में साहित्य परिषद से जुड राष्ट्रीय मंत्री बने ! वर्त्तमान में भी प्रदेश उपाध्यक्ष ! साथ ही निराला सृजन पीठ के निदेशक भी ! आपकी अब तक कुल ८ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं ! ४ गीत संग्रह, १ गजल संग्रह, १ नाटक, १ दोहा संग्रह तथा १ मुक्त छंद कविता संग्रह ! २ गीत संग्रह तथा १ निबंध संग्रह भी शीघ्र प्रकाशित होने जा रहा है !

संस्मरण
• तराणेकर जी की सादगी का प्रभाव अद्भुत था ! एक थैले में रखी डायरी तथा कलम ही उनकी पूंजी थी ! दो धोती तथा दो कुडते उनकी संपत्ति ! कई बार तो एक ही धोती रहती जिसे रोज सुबह धोकर सुखा लेते और धारण कर लेते ! ग्वालियर हाई कोर्ट के सामने स्थित कार्यालय की छत पर अनेक लोगो ने उन्हें गीली साफी लपेटे धोती के एक सिरे को कुछ ऊंचाई पर बांधकर दूसरे सिरे को पकडकर हिलाते और इस प्रकार उसे जल्दी सुखाते देखा है ! कोई आ जाता तो उसी कार्य को करते करते चर्चा भी हो जाती !

• किन्तु व्यक्ति की पहचान करने में अद्भुत पारखी थे तराणेकर जी ! मजदूर संघ के दो कार्यकर्ता – रवीन्द्र झंग और प्रकाश राठौर ! झंग की कार्य पद्धति सहज सरल तो प्रकाश तेज तर्राट और महत्वाकांक्षी ! रवीन्द्र झंग रतलाम से पी.डव्लू.डी. ओवरसियर की अपनी नौकरी छोड़कर केवल मजदूर संघ का कार्य करने की खातिर सिमको की छोटी नौकरी कर रहे थे ! जब किसी ने प्रकाश राठौर को अधिक अधिकार देने की सिफारिश की तो तराणेकर जी ने झंग जी की असंदिग्ध निष्ठा व प्रामाणिकता के महत्व को रेखांकित किया! 

• केवल वे ही थे जो ग्वालियर के शेजवलकर जी जैसे राजनेताओं पर भी दबाब बनाने में सक्षम थे ! सार्वजनिक जीवन के कुछ सूत्र भी उन्होंने दिवाकर जी को दिए ! बिना नहाये कुछ नहीं खाना तथा चाय नहीं पीना, इन आदतों को संगठन कार्य के प्रतिकूल बताते हुए बदलवाया 

आपके पांच गीत यहाँ प्रस्तुत हैं 

1. आदमी...बौना हुआ है

प्रगति की लंबी छलाँगें मारकर भी
आदमी क्यों इस क़दर बौना हुआ है?

बो रहा काँटे
भले चुभते रहें वे,
पीढ़ियों के
पाँव में गड़ते रहें वे,

रोशनी को छीनकर बाँटें अंधेरा,
राह में अंधा हर एक कोना हुआ है।

मेड़ ही
अब खेत को खाने लगी है
और बदली
आग बरसाने लगी है,

अब पहरुए ही खड़े हैं लूटने को,
मौसमों पर, हाँ, कोई टोना हुआ है।

क्षितिज के
उस पार जाने की ललक में,
नित
कुलाँचें ही भिड़ाता है फलक में,

एक बनने को चला था डेढ़, पर वह
हो गया सीमित कि अब पौना हुआ है।

2. चिठिया बाँच रहा चंदरमा

चिठिया
बाँच रहा चंदरमा
शरद जुन्हैया की।

जोग लिखि श्रीपत्री घर में
कुशल-क्षेम भारी,
आँगन के बूढ़े पीपल पर
चली आज आरी,
रामजनी कर रहीं चिरौरी
किशन-कन्‍हैया की।

चौक-सातिया, बरहा-बाँगन
हो गये असगुनिया,
नहियर-सासुर खुसर-फुसर है
आशंकित मुनियाँ,
बाप-मताई जात कर रहे
देवी मैया की।

गली-मोड़ खुल गयीं कलारीं,
झूमें गलियारे,
ब्‍याज-त्‍याज में बिके खेत
हल बैठे मन मारे,
कोरट सुरसा बनी
आस अब राम-रमैया की।

पिअराये भुट्टे, इतराये
मकई के दाने .. ..
हाट-बाट में लुटी फसल,
कुछ मण्डी कुछ थाने,
साँसें उखडीं उखड़ गयी हैं
कील पन्हैया की।

शेष सभी कुशलात
देश-परदेश दीन-दुनिया,
लिये आँकड़ों की मशाल
यह बता रहे गुनिया,
जगमग रोज दिवाली
जिनकी गली अथैया की।

3. चेहरे से सिद्धार्थ

अर्थातों में
बातें करना
उनकी शैली है।

बात एक पर अर्थ कई
शब्‍दों के जाल बुनें,
कितनी उलटबासियाँ
कितनी उलझी हुई धुनें,
मीठी-मीठी
कनबतियाँ भी
एक पहेली है।

है अनंत-विस्‍तार
मित्र की मीठी बातों का,
किंतु कवच के नीचे
दर्शन गहरी घातों का,
चेहरे से सिद्धार्थ
और मन
निपट बहेली है।

अर्थ और व्याकरण
भले हो दुनिया से न्यारा,
छाछ जड़ों में बोना उनका
पर भाईचारा,
उनकी यह
अठखेली
कैसे-कैसे झेली है।

4. नदी नाव संजोग

नदी नाव
संजोग भेंटना
तुम से आज हुआ।

पान-फूल
अँजुरि में लेकर मन में वृंदावन,
आँख जुड़ाए गैल तकें गलियारे
घर आँगन,
बाट पाहुने की जोहे ज्‍यों
गंगाराम सुआ।

अक्‍सर लगते
सूनसान चौखट-देहरी तुम बिन,
गहरे सन्‍नाटे में डूबे थे मेरे
पल-छिन,
तुम आए जैसे अम्‍बर से
झर-झर झरी दुआ।

पोर-पोर
फगुनाई महकी रस-कचनार खिले,
महुआ-सी गमकी पुरवाई तुम जो
आज मिले,
दर्पण ने दर्पण को जैसे
सहसा आज छुआ।

5. रामजी मालिक

हो रहे
शब्दार्थ बेमानी
प्रहलियों के रामजी मालिक।

उग रहे जलकुंभियों के जूथ
ढँक लिया शैवाल ने सरवर,
मकड़ियों ने बुन लिये जाले
फँस रहे निर्दोष क्षर-अक्षर,
सड़ रहा है
ताल का पानी
मछलियों के रामजी मालिक।

देह फूलों की हुई घायल
वक्‍त के नाखून तीखे हैं,
इस सदी का है करिश्मा यह
बाग में निष्प्राण चीखें हैं,
हो रहा
बदरंग-रंग धानी
ति‍तलियों के रामजी मालिक।

क्षितिज पर तूफान के लक्षण
गगन ने आँखें तरेरी हैं,
रौंदने भू पर रुपा जीवन
छेड़ता वह युद्धभेरी है,
बिजलियों ने
जंग है ठानी
बदलियों के रामजी मालिक।

Diwakar Verma, Bhopal, M.P.

4 टिप्‍पणियां:

  1. विगत वर्ष 01 जून 2013 को खंडवा के शासकीय कन्या महाविद्यालय में "निराला स्मृति प्रसंग " नमक कार्यक्रम आपके ही द्वारा आजोजित किया गया था। मुझे भी उन्होने वक्ता के रूप में आमंत्रित किया था। हम लोग एक ही होटल में ठहरे थे। सुबह-शाम घंटों उनके कक्ष में चर्चा होती रही। बहुत ही सहज और मृदुभाषी होने के साथ-साथ बहुत ही लो प्रोफ़ाइल थे। मेरी जनभूमि मथुरा होने से भी बहुत सी पुरानी बातें होती रहीं।
    दिन भर मंच पर भी एक दो सत्रों में साथ मुझे बैठने का सौभाग्य मिला। किन्तु ऐसा क्या पता था कि यह अंतिम भेंट है। मेरी उनको हार्दिक श्रद्धांजलि।

    जवाब देंहटाएं
  2. भीगी पलकों के साथ भावभीनी श्रद्धांजलि । ___/\___

    नमन

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रियाएँ हमारा संबल: