पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

सोमवार, 28 नवंबर 2016

आपस सम्मान समारोह


फैजाबाद: लोक अपनी भाषा का निर्माता खुद होता है। रचना को समय के सन्दर्भ से देखना चाहिए। त्रिलोचन धूल से सने हुए पारम्परिक शब्दों को प्राथमिकता देकर शब्दों के प्रति सजग दृष्टि और गहराई में उतर कर काव्य में छटा भरते हैं। अनपढ़ अशिक्षितों में बैठकर भाषा की समझ और शक्ति को समझना उनकी शक्ति थी इसीलिए देशज शब्दों में कथ्य और शिल्प की विभाजन रेखा नहीं खीचीं जा सकती। भंगिमा और चेष्टाओं से वे लोक को पकड़ते थे। यही कारण है कि त्रिलोचन कविता में निष्क्रय नहीं होते। निराला और त्रिलोचन की ताजगी तो हमेशा बनी रहेगी त्रिलोचन विश्वलोक के किसान कवि है। उक्त विचार कमल नयन पाण्डेय ने आपस सम्मान समारोह में त्रिलोचन की कविता विषय पर व्याख्यान में व्यक्त किये। कार्यक्रम का आयोजन आचार्य विश्वनाथ पाठक शोध संस्थान ने किया। 

इसके पहले कार्यक्रम का प्रारम्भ दीप प्रज्वलन और आचार्य विश्वनाथ पाठक की बहुचर्चित कृति सर्वमंगला के पाठ से हुआ। संस्थान के निदेशक डाॅ विंध्यमणि ने सभी का स्वागत किया। भारतीय प्रेस परिषद् के पूर्व सदस्य शीतला सिंह और कमलनयन पाण्डेय ने गोण्डा जनपद के साहित्यकार डाॅ सूर्यपाल सिंह को आचार्य विश्वनाथ पाठक स्मृति आपस सम्मान प्रदान किया। इसके अन्तर्गत अंगवस्त्र, स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र और इक्यावन सौ रूपये की धनराशि प्रदान की गई। लाल बहादुर शास्त्री पी जी कालेज गोण्डा के डाॅ शैलेन्द्र नाथ मिश्र ने सूर्यपाल सिंह के रचनाकर्म पर प्रकाश डाला। शीतला सिंह ने कहा कि सूर्यपाल जी जीवन और जमीन के साहित्यकार है। मामूली व्यक्ति के प्रति उनकी प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण है। 

अध्यक्षता करते हुए साकेत महाविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष डाॅ जनार्दन उपाध्याय ने कहा कि सूर्यपाल जी का सम्मान इस संस्था के सम्मान की प्रतिबद्धता को मजबूत करता है। इस अवसर पर डाॅ अनुराग मिश्र, कृष्ण प्रताप सिंह, विजय रंजन, डाॅ सुमति दूबे, डाॅ ओंकार त्रिपाठी, डाॅ पार्थसारथी पाण्डेय, डाॅ मनीष माथुर, आशाराम जागरथ, देव प्रसाद पाण्डेय, डाॅ नीलमणि सिंह, पवन कुमार सिंह, उमाशंकर श्रीवास्तव, सुनीता सिंह, डाॅ नरेन्द्र पाण्डेय, शिवमूर्ति चन्द्रेश, डाॅ के पी दुबे, यज्ञराम मिश्र यज्ञेस, रामकेवल सिंह, डाॅ महेन्द्र प्रताप वर्मा, डाॅ शिवेन्द्र सिंह आदि के साथ-साथ अनेक साहित्य सेवी उपस्थित रहे। अंत में संस्थान के निदेशक डाॅ विंध्यमणि ने सभी आगन्तुकों के प्रति आभार ज्ञापित किया।

Faizabad, U.P.

गुरुवार, 24 नवंबर 2016

अहमदाबाद इंटरनेशनल लिटरेचर फेस्टिवल का भव्य आयोजन

​​उमाशंकर यादव, योगेश गढ़वी, रघुवीर चौधरी, मधुर भंडारकर,
सुमन्त बत्रा एवं जेफ़ वेन (बाएं से दाएं)


योगेश गढवी 
अहमदाबाद (नवम्बर 12-13 2016): अहमदाबाद मैनेजमेंट असोसिएशन के विशाल सभागार में अहमदाबाद इंटरनेशनल लिटरेचर फेस्टिवल का भव्य आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ सुविख्यात गुजराती साहित्यकार रघुवीर चौधरी, संगीत नाट्य अकादमी के चेयरमेन योगेश गढ़वी, बॉलीवुड से फिल्म निर्देशक मधुर भंडारकर, ब्रिटिश डेप्युटी हाई कमिश्नर जेफ़ वेन, कुमायूँ फेस्टिवल के निदेशक सुमन्त बत्रा एवं एआईएलएफ के निदेशक उमाशंकर यादव ने दीप प्रज्जवलन के साथ किया। 

अहमदाबाद अंतरराष्ट्रीय साहित्योत्सव में पधारे साहित्य, संगीत, कला, सिनेमा, मीडिया, शिक्षा और सांस्कृतिक संस्थानों के विद्वानों, सुधीजनों, श्रोताओं को संबोधित करते हुए रघुवीर चौधरी ने एआईएलएफ के सफल आयोजन हेतु आयोजक मण्डल को शुभकामनाएँ दीं और कहा कि साहित्य और समाज का अटूट रिश्ता है, जिसे बनाये रखने के लिए इस तरह के साहित्य समारोह आयोजित किये जाने की बड़ी आवश्यकता है। योगेश गढ़वी ने अपने निराले अंदाज में साबरमती के तट पर मन-मस्तिष्क को निर्मल एवं ज्ञानरंजित करने वाले इस साहित्यिक कुम्भ के आयोजन को विशिष्ट मानते हुए कहा कि आज फिर अहमदाबाद का भाग्य जागृत हुआ है और आज फिर गांधी की धरती पर इतिहास रचा जायेगा। मधुर भंडारकर ने भारत में विभिन्न भाषाओँ में रचे जा रहे साहित्य के अनुवाद की जरूरत को महसूसते हुए कहा कि फिल्मों ने भाषायी दूरियों को कम किया है और दुनियाभर के लोगों तक अपनी बात पहुंचायी है। कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत करते हुए सुमंत बत्रा ने कहा कि आज दुनिया में सबसे अधिक जरूरत 'सॉफ्ट स्किल्स' की है, जिसको हम साहित्य और कला के माध्यम से विकसित कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि आज जीवन में मूल्यों का ह्रास बड़ी तेजी से हो रहा है इसलिए विश्व साहित्य को वर्तमान सन्दर्भों में जानना-समझना बहुत जरूरी है। कार्यक्रम निदेशक उमाशंकर यादव ने कहा कि एआईएलए 2016 का मुख्य उद्देश्य साहित्य, सिनेमा और मीडिया के अंतर्भेदी रिश्तों की पड़ताल करना तो है ही, साहित्य को जन-जन तक पहुँचाना भी है। उन्होंने अहमदाबाद में देश-विदेश से पधारे साठ से अधिक साहित्यकारों, मीडियाकर्मियों, अभिनेताओं, निर्माता-निर्देशकों और बुद्धिजीवियों सहित शहर के साहित्य रसिकों का तहेदिल से स्वागत किया और उनकी भूरि-भूरि प्रसंशा की। 

ध्वनित और मधुर भंडारकर 
पहले दिन नौ सत्र परिसंवाद के लिए रखे गए। प्रथम परिसंवाद 'कैप्टीवेटिंग स्टोरीलाइंस' में फ़िल्मी दुनिया के जाने-माने निर्माता-निर्देशक मधुर भंडारकर का साक्षात्कार अमदाबाद के सुपरिचित रेडियो जॉकी ध्वनित के साथ हुआ। मधुर जी ने बताया कि उन्होंने बचपन में ही स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी और रोजी-रोटी के लिए मुम्बई चले आये। मुम्बई पहुंचकर उन्होंने किताबें पढ़ना जारी रखा। उन्हें फिल्म देखने का भी बहुत शौक था और इसलिए उनके इस शौक ने उन्हें शिक्षित और सुसंस्कृत कर लक्ष्य तक पहुँचने में बड़ी मदद की। उन्होंने ने बताया कि अपने शुरुआती दौर में वह मुम्बई में वीडियो लाइब्रेरी चलाते थे। साईकिल से वीडियो घर-घर पहुँचाना, खासकर फ़िल्मी दुनिया के लोगों तक, और उन फिल्मों पर विचार-विमर्श करने से उनमें फिल्म बनाने की इच्छा जागृत हुई और कालांतर में वह फिल्म निर्देशक बन गए। उनके इस साक्षात्कार ने आईएमए के विशाल सभागार को न केवल स्पंदित किया बल्कि इससे श्रोताओं को उनके सवालों के जवाब भी मिले। कई जिज्ञासुओं ने मधुर जी से उनके फ़िल्मी सफर से सम्बंधित प्रश्न पूछे, तो कई अन्य उनके व्यक्तिगत जीवन को जानने-समझने में भी सफल हुए। 

प्रदीप मलिक, तुहिन सिन्हा, किरण मनराल, अजय उमत,
ब्रजेश कुमार सिंह एवं अनुरिता राठौर
द्वितीय परिसंवाद का विषय 'मीडिया-ड्रिवन स्टोरीज़' रहा। इस परिसंवाद के पैनल में मीडिया जगत के चर्चित सितारे अजय उमत, ब्रजेश कुमार सिंह, अनुरिता राठौर, किरण मनराल और तुहिन सिन्हा थे; जबकि मॉडरेटर की भूमिका में प्रदीप मलिक ने रोचक प्रश्नों के माध्यम से चर्चा को गंभीरता प्रदान की। जर्नलिज़्म की प्रासंगिकता और उसके महत्व को रेखांकित करते हुए वार्ताकारों ने बताया कि चूँकि जर्नलिज़्म इतिहास का प्रथम प्रारूप है इसलिए इस क्षेत्र के लोगों बहुत ही सावधानीपूर्वक कार्य करना चाहिए। 

निगम दवे, अवनीश चौहान, रघुवीर चौधरी,
संदीप नाथ एवं ऊषा नारायणन 
तृतीय सत्र - 'लुकिंग फॉर लिट्रेचर' ने श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। इस सत्र के पैनल में सुविख्यात साहित्यकार रघुवीर चौधरी, निर्माता-निर्देशक एवं गीतकार संदीप नाथ, कवि, आलोचक एवं संपादक अवनीश सिंह चौहान एवं चर्चित लेखिका ऊषा नारायणन ने मॉडरेटर प्रोफ़ेसर निगम दवे द्वारा परिसंवाद से सम्बंधित तथ्यों पर खुले मन से अपने विचार रखे।रघुवीर चौधरी ने कहा कि साहित्य को जीने वाले साहित्य को रचने में सफल तो हो सकते हैं, किन्तु सही मायनों में उन्हें सफल तभी कहा जा सकता है जब पाठक उनके विचारों को आत्मसात करें। संदीप नाथ ने बॉलीवुड से जुड़े अपने अनुभवों को युवान भाई-बहिनों के साथ साझा किया; जबकि अवनीश चौहान ने कहा कि साहित्य साधना है और जिसकी साधना जितनी अधिक होगी, उसकी लेखनी में जीवन का सच उतना ही अधिक होगा। 

इसी दिन कार्यक्रम के अगले चरण में छः अन्य सत्रों, यथा- 'बुक लॉन्च : लेट्स रेस, डैडी!' (लेखक - सोहम शुक्ला, रघुवीर चौधरी द्वारा लोकार्पित); 'पोएट्री फॉर एवरीवन' (पैनलिस्ट्स- कुमुद वर्मा, नितिन सोनी, संतोष बकाया, तुषार शुक्ला। मॉडरेटर- यासीन अनवर); ''रिविजिटिंग मिथॉलजि एंड इट्स रेलवन्स टुडे' (पैनलिस्ट्स- अनुजा चन्द्रमौली, सुहैल माथुर, विनोद जोशी, उषा नारायणन, माधुरी शर्मा। मॉडरेटर- विश्वेश देसाई); 'बुक लॉन्च : शब्दोच्छव'; 'पोएट्री रिसाइटेशन' (पोएट - प्रदीप खंडवाला); 'गुजराती लिट्रेचर' (पैनलिस्ट्स- चिनु मोदी, शोभित देसाई, अनिल चावड़ा, संकेत जोशी। मॉडरेटर- भूषण मेहता); 'शॉर्ट स्टोरीज़' (पैनलिस्ट्स- सुमंत बत्रा, अरुण कौल, किरण मनराल। मॉडरेटर- कोरलदास गुप्ता); 'गुजराती फोक टेल्स' (पैनलिस्ट्स- योगेश गढ़वी से मौलिक चौहान की बातचीत); 'बुक लॉन्च : रवि मनोरम की पुस्तक का पीयूष मिश्रा द्वारा लोकार्पण; एवं 'वर्ल्ड लिट्रेचर' (पैनलिस्ट्स- आर्थर डफ, फेब्रिस मैनगेन, तुहिन सिन्हा, विल्पा पटेल। मॉडरेटर - नीता खुराना), में साहित्य और समाज पर व्यापक चर्चा हुई। श्रोताओं/ भावकों से खचाखच भरे सभागार में साहित्यकारों/ विद्वतजनों द्वारा बेबाकी से जीवन में मूल्यों की महत्ता को साहित्य के माध्यम से पुनर्रेखांकित किया गया और उनके द्वारा बड़े मनोयोग से जिज्ञासुओं के प्रश्नोत्तर दिए गए। 

द्वितीय दिवस 

विकास यादव, रश्मि गोयल एवं मनीष पटेल 
अगले दिन रविवार को भी अहमदाबाद इंटरनेशनल लिट्रेचर फेस्टिवल में साहित्य, सिनेमा, संस्कृति पर गंभीर चर्चा हुई। श्रोताओं से खचाखच भरे सभागार में जब परिसंवाद प्रारम्भ हुआ तो सम्पूर्ण वातावरण शब्द-पुष्पों से सुशोभित हो उठा। वार्ताकार ही नहीं, बल्कि शब्द-रसिक भी चर्चा-परिचर्चा में ऐसे तल्लीन हुए कि कब समय बीत गया, पता ही नहीं चला। इस दिन का प्रथम सत्र 'लिटरेचर एंड सिनेमा' पर केंद्रित रहा। पैनलिस्ट्स थे युवा फिल्म निर्माता-निर्देशक अभिषेक जैन, गीतकार, निर्माता-निर्देशक संदीप नाथ, निर्माता-निर्देशक सुमाना मुखर्जी एवं थियेटर पर्सनालिटी एवं लेखक पियूष भट्ट। मॉडरेटर- मिसेज़ अर्थ इंटरनेशनल माधुरी शर्मा। 

सुमाना मुखर्जी, पीयूष भट्ट, संदीप नाथ
एवं अभिषेक जैन
 
सत्र का शुभारम्भ सिनेमा में साहित्य की भूमिका से हुआ। वार्ताकारों ने एक स्वर में उदघाटित किया कि साहित्य की सिनेमा में सदैव विशेष भूमिका रही है। इसलिए सिनेमा को साहित्य से अलग कर नहीं देखा जाना चाहिए। पियूष भट्ट ने कहा कि सिनेमा स्क्रीन के माध्यम से साहित्य को आम और खासजन तक पहुंचता है। इसको थोड़ा और स्पष्ट करते हुए संदीप नाथ ने कहा कि सिनेमा एक श्रव्य-दृश्य प्रणाली है जिसके लिए साहित्य का होना बहुत जरूरी है। अभिषेक जैन ने माना कि फिल्म का निर्माण 'स्क्रिप्ट' लिखने से प्रारम्भ होता है, जोकि अपने आप में साहित्य ही है। जब मॉडरेटर ने वार्ताकारों से उनके प्रोजेक्टों के बारे में पूछा तो सुमाना मुखर्जी ने टैगोर के साहित्य पर, अभिषेक जैन ने 'रॉन्ग साइड राजू' और संदीप नाथ ने 'डीएनए में गाँधी' की फिल्म निर्माण प्रक्रिया से सम्बंधित अपने विचार रखे। 

उमाशंकर यादव, पियूष मिश्रा एवं अनुरिता राठौर 
द्वितीय सत्र में बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी गीतकार एवं अभिनेता पियूष मिश्रा से वरिष्ठ पत्रकार अनुरिता राठौर एवं आइकॉन सॉल्यूशन के अनुभवी निदेशक उमाशंकर यादव ने 'द पॉवर ऑफ़ वर्ड्स' विषय पर बातचीत की। मिश्रा जी ने बडी ईमानदारी से फिल्म इंडस्ट्री के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला और स्वीकार किया कि फ़िल्मी दुनिया में संतुलन बनाकर रहने में ही भलाई है। उन्होंने इस अवसर पर श्रोताओं के आग्रह पर अपने काव्य संग्रह 'कुछ इश्क किया कुछ काम किया' से कुछ रचनाओं का पाठ किया और अपने चर्चित गीत 'ओ हुस्ना' को सस्वर भी प्रस्तुत किया। उनसे हुई बातचीत सारगर्भित और आह्लादकारी थी। 

दूसरे दिन के अन्य सत्र- 'शीन इन देअर टीन' (पैनलिस्ट्स- लालिमा यादव, संजय अग्रवाल, विश्वेश देसाई। मॉडरेटर- प्रिया व्यास); 'लिटररी एजेंट्स: हू ऑल नीड देम?' (पैनलिस्ट्स- चिंतन सेठ, अनिल चावड़ा, आरती मोटिआनी, सुहैल माथुर। मॉडरेटर- योगी त्रिवेदी); ऑन्ट्रप्रनरशिप एंड क्रिएटिविटी' (पैनलिस्ट्स- आशा मण्डपा, मेहराब ईरानी, रवि मनोरम, सुमित अग्रवाल। मॉडरेटर- जिगना शाह); 'प्रतिलिपि डॉट कॉम : ऑनलाइन इज ओन लाइन' (पैनलिस्ट्स- अवनीश सिंह चौहान, फाल्गुनी वसावदा, मनोज जेना, संकेत जोशी। मॉडरेटर- सहृदयी मोदी); 'सोशल ऑन्ट्रप्रनरशिप' (सृजन पाल सिंह से जतिन कटारिया की बातचीत); 'रोमैंस इन बुक्स' (रक्षा भराडिया, नितिन सोनी, सुदीप नागरकर, रवि बेदी। मॉडरेटर- लालिमा यादव), भी रोचक और महत्वपूर्ण रहे। इन सत्रों के वक्ताओं ने गहरी समझ एवं सूझ-बूझ का दिग्दर्शन कराया और श्रोताओं की शंकाओं का समाधान किया। कुलमिलाकर, इस दो दिवसीय साहित्योत्सव के सभी सत्र भाषा एवं साहित्य के प्रेमियों के लिए हितकारी, उत्साहवर्धक एवं ज्ञानवर्धक रहे। 

इस चर्चा-परिचर्चा के अतिरिक्त मुख्य सभागार से सटे हुए कक्षों में कुछ कार्यशालाओं/पाठशालाओं की भी व्यवस्था की गयी थी, जिनमें 'द आर्ट ऑफ़ लैटर राइटिंग' (मीनू जसदानवाला); 'पोएट्री राइटिंग एवं हाइकु राइटिंग' (तूलिका एवं वत्सल शाह); 'पेरेन-टीन्स वर्कशॉप' (डॉ निश्चल भट्ट); 'हाउ टु ऐड 5000 प्रोडक्टिव आवर्स टु योर लाइफ' (संजय कुमार अग्रवाल); 'अखा नु अमदावाद (जय मकवाना); 'टिंगल-ए-कविता' (फरीबुर्ज ईरानी); ''शब्दोच्छव' (पिंकी व्यास); 'इम्प्रूव पोएट्री' (पोवेरा); 'ओपन कैनवास' (झरोखा- पीडीपीयू); 'राइटिंग फॉर ब्लॉग्स' (रंजनी शास्त्री) आदि प्रमुख हैं। इन कार्यशालाओं से प्रतिभागियों के व्यक्तित्व विकास के साथ साहित्यिक अभिरुचि और सृजन की क्षमता का विकास भी हुआ। 

पिंकी व्यास के नेतृत्व में साहित्यसेवक 
इस साहित्योत्सव का विधिवत एवं सफलतापूर्वक आयोजन अहमदाबाद के लिए एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है, जिसके लिए आयोजक मंडल के प्रतिभासम्पन्न एवं कर्मठ सदष्यों- रश्मि गोयल, पिंकी व्यास, मनीष पटेल, फरीबुर्ज ईरानी, भूषण मेहता, विकास यादव, फेस्टिवल क्युरेटर अनुरिता राठौर एवं ऊर्जावान निदेशक उमाशंकर यादव सहित कुशल मंच संचालकों - निविद देसाई, सिमरन छावड़ा, नितिन पिल्लई, नीरजा वसावदा, कवीन पांचाल, आयेशाह जरीवाला, राज चुंडावत और कंकना रॉय आदि की जितनी प्रसंशा की जाय कम है। इस टीम ने अपने प्रथम प्रयास में वह कर दिखाया जो कई बार कई वर्षों के अनुभवों और अथक प्रयासों से संभव हो पाता है। 
रजिस्ट्रेशन काउंटर पर उमाशंकर यादव एवं अन्य 

इस अंतरराष्ट्रीय साहित्योत्सव का समापन के अवसर पर फेस्टिवल निदेशक उमाशंकर यादव ने सम्मानित श्रोताओं, भद्र नागिरिकों, सुधी विद्वानों, लेखकों, चिंतकों एवं विचारकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि 'एआईएलफ 2016 एक ऐसा मंच है जहाँ साहित्य, सिनेमा और मीडिया की परिधि में व्यक्ति को व्यक्ति से, समूह को समूह से वैचारिक आदान-प्रदान करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। मुझे लगता है कि इस तरह के साहित्यिक कार्यक्रम निश्चित ही साहित्य और समाज को एक दूसरे के निकट लाएंगे और जन-मन की इच्छाओं, अपेक्षाओं एवं अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने में अपना विशिष्ट योगदान देंगे।'

थियेटर पर्सनालिटी पीयूष भट्ट, अवनीश सिंह चौहान, बॉलीवुड के गीतकार, निर्देशक संदीप नाथ,
कार्यक्रम संयोजक अनुरिता राठौर, मिसेज़ अर्थ इंटरनेशनल माधुरी शर्मा,
कार्यक्रम निदेशक उमाशंकर यादव, सुमंत जी,
फिल्म मेकर सुमाना मुखर्जी एवं संजय कुमार अग्रवाल।
http://www.ailf.co.in/


Ahmedabad International Literature Festival 2016 (AILF2016)

मंगलवार, 22 नवंबर 2016

नहीं रहे विवेकी राय

विवेकी राय

हिंदी और भोजपुरी के प्रख्यात साहित्यकार डॉ विवेकी राय का मंगलवार सुबह वाराणसी में निधन हो गया। 93 वर्षीय डॉ. राय ने मंगलवार को तड़के पौने पांच बजे अंतिम सांस ली थी। सांस लेने में तकलीफ के कारण उनका बीते कुछ दिनों से वाराणसी के निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था। विवेकी राय जी का जन्म : 19 नवंबर 1924, भरौली, बलिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। विधाएँ : उपन्यास, कविता, कहानी, निबंध, रेखाचित्र, संस्मरण, रिपोर्ताज, डायरी, समीक्षा। मुख्य कृतियाँ: उपन्यास : बबूल, पुरुष पुराण, लोक ऋण, बनगंगी मुक्त है, श्वेत पत्र, सोनामाटी, समर शेष है, मंगल भवन, नमामि ग्रामम्, अमंगल हारी, देहरी के पार तथा अन्य कविता संग्रह : अर्गला, राजनीगंधा, गायत्री, दीक्षा, लौटकर देखना आदि। कहानी संग्रह : जीवन परिधि, नई कोयल, गूंगा जहाज बेटे की बिक्री, कालातीत, चित्रकूट के घाट पर। सम्मान: प्रेमचंद पुरस्कार, साहित्य भूषण पुरस्कार, आचार्य शिवपूजन सहाय सम्मान, शरदचंद जोशी सम्मान, पंडित राहुल सांकृत्यायन सम्मान, यश भारती। परम श्रद्धेय विवेकी राय को पूर्वाभास की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि !

विवेकी राय का व्यंग्य : घनचक्कर

कचहरी में बैठकर वह लगभग रो दिया था। ऐसा मामूली कार्य भी वह नहीं कर सकता? छोटे-छोटे आदमियों से असफल सिफारिश की खिन्‍नता लिए वह शाम को स्‍टेशन की ओर टहलता गया।

तभी आते-जाते लोगों के बीच दिखायी पड़ा तहसील-स्‍तर का नया ग्राम-नेता - दुबला, लंबा, मूँछें सफाचट, गेहुँआ रंग। ढीला-ढाला लंबा कुरता सफेद खादी का, कुरते की बाँहें काफी बड़ी, अर्थात् कलाई पर से लगभग एक बित्ता मुड़ी हुई, मुख पर टँगी धूर्त अहमन्‍यता, नकली तेजस्विता और ओढ़ी भद्रता। उसका झोला पीछे आता सस्‍ते गल्‍ले का एक ग्रामीण दुकानदार ढो रहा था। ग्राम-नेता की उँगलियों में बिना जलाई सिगरेट थी, वह वास्‍तव में दियासलाई की ताक में था और कुछ लंबा होने के कारण दूर-दूर की झाँकी ले रहा था। वह स्‍टेशन की ओर इस प्रकार बढ़ रहा था मानो किसी उद्घाटन में फीता काटना है। वी.आई.पी. मार्का चाल क्‍या सीखनी पड़ती है? - नहीं, स्‍वयं आ जाती है।

नेता की चिड़ीमार उड़ती निगाहों में वह फँस गया। '...तो ठीक है, शायद कुछ काम बने... आपके रहते यह अदना-सा काम नहीं हो रहा है!'

'आपका वह काम हो गया है!' उसने अत्‍यंत निर्लिप्‍त-निर्भाव सादी शब्‍दावली में उत्तर दिया, 'मुझे मालूम है। आप ग्‍यारह बजे कचहरी में मिलिए, फाइल निकलवाकर दिखा दूँगा। ...और कोई हुक्‍म?'

विमल मारे खुशी के सन्‍न! हाथ जोड़ मुस्‍कराते और इस प्रकार हार्दिक कृतज्ञता ज्ञापित करते-करते नया नेता जब चेहरे पर पूर्ववत् निर्भाव गांभीर्य सँभाले हाथ जोड़ एक ओर बढ़ गया तब अचानक झटका लगा - 'साला सारी कचहरी को दिखाना चाहता है कि एक भले आदमी को चेला बनाकर पीछे-पीछे घुमा रहा है! ...फिर तुरंत बादल छँट गए। बेकार ही वह हीनत्‍व-भाव धारण कर अपने को सता रहा है। संभव है, काम हो गया हो और सवाल उसके पता लगाने का हो। ...लेकिन यही तो मोर्चा है! एक-से-एक विराट्-बीहड़ खोह-कंदरा की भाँति यह दफ्तर, वह दफ्तर, टेबुल, क्‍लर्क और फाइल! ...तो इसके लिए एक्‍सपर्ट चाहिए जो कास्मिक चूहे की भाँति एक क्षण में कागज की सारी अँधेरी परतों में रेंगकर बाधाओं के फीतों को कुतर दे और सही-सही टोह ले ले। ...यह कितना सुखद है कि इस देश में बहुजन-हिताय नेता हैं। नया ग्राम-नेता नित्‍य सुबह की ट्रेन से आगे-पीछे दस जनों को लटकाए आता है और दिन जिला परिषद् में, चकबंदी दफ्तर, कचहरी और चायखाने में गुजारकर, जनता का काम कर वापस चला जाता है!'

दूसरे दिन ठीक ग्‍यारह बजे विमल कचहरी पहुँच गया। चायखाने में बहुत भीड़ थी और बेलाग बातें चल रही थीं। 'ओह, यह चायखाने का हल्‍ला तो अमृत है जो अगणित लोगों को जिला रहा है!' उसने सोचा। जनहित के तपियों के इस अड्डे की चप्‍पलों से कुचली धूप में, दियासलाई की अधजली तीलियों, सेव-दालमोठ के टुकड़ों और अधजली बीड़ियों आदि से भरी धूल में एक प्रकार की पवित्रता है। यज्ञधूम की भाँति उठते कोयले के धुएँ की कड़वाहट को वहाँ सिगरेट का धुँआ पचा डालता है। राजनीतिक चर्चा-चर्वणाओं के टॉनिक से जिनकी तंदरुस्‍ती बेहया (सदाबहार) की भाँति सदा हरी-भरी रहती है ऐसे टिनोपाली और टेरीकाटी नादेहंद बकवासियों से भरी चायखाने की बेंचों के आसपास उस समय इमरजेंसी-पूर्व का आधुनिक विधानसभाई 'अनुशासन' पूरे जोर पर था और कुछ देर के लिए वह भूल गया कि उसे किसी की तलाश है। न जाने कैसे-कैसे आश्रमों में पहुँचकर मन हलका और एकाग्र हो जाता है और देश के बारे में कुछ क्‍या, बहुत कुछ सोचने की इच्‍छा होने लगती है।

कचहरी में न जाने कहाँ-कहाँ से आए लंबे-लंबे लोग दिखायी पड़ते हैं। ये अगर कुरते-धोती में हैं और कुरता संयोग से तंबू-काट है तो भ्रम में पड़ जाना स्‍वाभाविक है। ऐसे ही भ्रम में विमल चायखाने से उठकर जिला परिषद् में गया, पर उसका अभीष्‍ट नेता नहीं था। उसी जाति का वह एक दूसरा जीव था, जिसके साथ नत्‍थी एक नाटे कद के नंगे-पाँव किसान का कोई केस खराब होने-होने को हो गया था और वह लंबा उसे भावी सफलता की नई आचार-संहिता समझा रहा था। तभी विमल का ग्राम-नेता आ गया। उसने नमस्‍ते की तो नेता ने जैसे सिर से मक्‍खी उड़ा दी। इससे ऐसा लगा कि घिरे हुए लोगों के बीच उसकी कोई गंभीर बात चल रही है। अब वे सब लोग एक कमरे में घुसे और खाली पड़ी टेबुल के चारों ओर लदर-फदर जम गए। 'आपका काम अभी हो जाता है,' - एक उड़ती निगाह विमल पर फेंककर नेता ने कहा और फिर निरपेक्ष गंभीरता ओढ़कर कार्यरत हो गया। ...अब उसके आगे एक रजिस्‍टर फैला था जिसमें तमाम दुनिया भर की अँगूठा-निशानी और टेढ़े-मेढ़े हस्‍ताक्षर थे। वह एक सस्‍ते गल्‍ले का लाइसेंसी ग्रामीण दुकानदार था जो राशन-वितरण-पंजिका दिखाकर उसे समझा रहा था कि तमाम माल हमने वितरित कर दिये, ब्‍लैक कहाँ से हुआ? फिर कहता है, 'यदि कुछ गलती-सही हुई भी हो तो मैं आपसे बाहर कहाँ हूँ?' पास बैठे एक यूरिया के बोरे-जैसे कसे, नाटे, खादीधारी शरीरवाले नई खेती के गुदगर किसान की 'पॉकिट' में हाथ डालकर हँसते हुए नेता कुछ निकालता है तो सिगरेट की डिब्‍बी, बस के टिकट और 'आश्‍चर्य मलहम' की डिबिया के साथ निकल आता है दो रुपये का मैला, लाल नोट। 'पट्ठा असली मालमत्ता छिपाकर रखता है।' कहता हुआ नेता अब एक अन्‍य व्‍यक्ति की ओर, जो देखते ही लगता है कि स्‍कूल मास्‍टर है और ट्रांसफर के चक्‍कर में निरीह बना पीछे लगा है, झुकता है, 'लो, जाकर कहीं से दो रुपये का बढ़िया केला ले आओ।'

अब विमल के कार्य की बारी आई। नेता उधर बैठे चंट किस्‍म के, दाढ़ी-बढ़े, अधेड़ मुकदमेबाज किसान की ओर घूमता है, 'हे, देखो, उस सिपाही को पहचानते हो? ...क्‍या नाम है? हाँ, वह थाने में डाक लाता है... हाँ-हाँ, उसी को, देखो कहीं होगा, फौरन बुलाओ तो, आपका काम बैठे-बैठे हो जाएगा।' नेता ने विमल की ओर देखा, तृप्ति और कृतज्ञता से वह भर गया, फिर उधर मुड़ा, 'हाँ-हाँ, तुम्‍हारा भी खयाल है। अच्‍छा, लो केला आ गया। खाते जाओ। उधर से लौटो तो चाय का प्रबंध करो।'

उसी समय व्‍यापारी नेता के पास आ उसके कानों में कुछ फुसफुसाने लगा जिसे सुनकर वह भड़क उठा। तभी एक मोटा आदमी दरवाजे पर प्रकट हुआ, जिसकी लाल होकर फिर काली पड़ी दंतावलियाँ गहरे तांबूल-रस में डूबी थीं और उसे देखते ही हाथ का समूचा केला लिए नेता उसके सामने जा खड़ा हुआ, 'लीजिए!' पान थूककर केले के साथ न्‍याय करते वह मोटा जो कुछ कह रहा था वह विमल की समझ के बाहर था। दोनों कहीं जाने के लिए उधर बढ़े तो थोड़ी दूर जाकर नेता ने घूमकर कहा, 'आइए श्रीमानजी, आपका काम भी उधर है।' अब विमल उनके पीछे था, अहाते के बाहर आकर उसने देखा कि वह आदमी जो सिपाही बुलाने गया था, सड़क पर खाली पड़ी एक पान की दुकान में सोया है और अब कुर्सी से उठकर सफाई दे रहा है, 'खोजते-खोजते हैरान हो गया। सिपाही दिखाई नहीं पड़ा। यहाँ बैठा हूँ कि शायद इधर से निकले...'

'तो ठीक है, नजर रखो। मिले तो कलक्‍टर साहब के यहाँ भेजो,' नेता ने उससे कहा और कुछ मिनटों में वे लोग जहाँ पहुँचे वह चकबंदी अधिकारी का इजलास था। वहाँ कुछ लोगों से चार-चार चोंचे लड़ा नेता अब सीधे उधरवाले चायखाने पर पहुँचा और बैठे-ठाले दहेज-प्रथा पर बहस करते कुछ जवान वकीलों के बीच धँस गया। विमल को लगा, यहाँ बैठना भी एक सुख है। कितने, कहाँ-कहाँ के, फुर्सत में अथवा हड़बड़ाए, मौजमस्‍ती में अथवा उद्विग्‍न लोग इस चित्रकूट-घाट के संतों के बीच उपस्थित हैं।

चाय-समोसे की खटक से विमल का ध्‍यान भंग हुआ। उसे आश्‍चर्य हुआ कि चायखाने के काउंटर पर वही सस्‍ते गल्‍लेवाला दुकानदार भुगतान के लिए खड़ा होकर चाय पीनेवालों की गिनती कर रहा है! यह कहाँ से आ गया? 'अच्‍छा, चलिए श्रीमान् अब आपका काम हो।' नेता उठकर चला तो उसके पीछे-पीछे अब विमल तथा पाँच-छ: जने और घिसट रहे थे। 'यहाँ कोई भी काम बहुत मुश्किल से होता है,' पान के दो बीड़े, जिसे साथवाले किसान सज्‍जन लपककर कहीं से लाये थे, मुँह में दबाते हुए नए ग्राम-नेता ने अत्‍यंत ऊँची दार्शनिक मुद्रा में कहा और तब तक परगना-हाकिम का इजलास आ गया। नेता पेशकार के सामने खड़ा हुआ। 'ठीक है, लंबी तारीख रहे तो ठीक है!' जैसी दो-एक बातों के बाद नेता बाहर निकला, फिर कचहरी के पिंजड़ों, कठघरों, गलियारों और इजलासी डिब्‍बों में घंटों मतलब-बेमतलब पूरी 'आरतों की पलटन' को रेंगाता, फिकरों के टुकड़े फेंकता, सारे अहलकारों को निकम्‍मा घोषित करता, 'एक मिनट यहाँ भी...' करता अंत में फिर बैतलवा डाल पर! जिला परिषद् के कमरे में आकर नेता अब पसर गया।

तभी एक और कहीं का ग्राम-नेता आया और उसने सूचना दी कि आज डी.आई.जी. का यहाँ मुआयना है।

इस छोटे-से समाचार को सुनते ही नेता उछल पड़ा। उसकी आँखें चमक उठीं। उसने विमल से कहा, 'श्रीमानजी, सुना आपने? आज तो डी.आई.जी. धमक पड़े हैं। आज इस दौरान तो कुछ नहीं होने को है! जाइए, आराम कीजिए। फिर दो दिन बाद यहीं मुलाकात होगी।'


Viveki Rai

मंगलवार, 8 नवंबर 2016

विनोद कुमार दवे और उनके हाइकु — अवनीश सिंह चौहान

विनोद कुमार दवे

पेशे से अध्यापक युवा रचनाकार विनोद कुमार दवे की रचनाएँ राजस्थान पत्रिका, दैनिक भास्कर, अहा! जिंदगी, कादम्बिनी, बाल भास्कर आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। संपर्क: 206, बड़ी ब्रह्मपुरी, मुकाम पोस्ट- भाटून्द, तहसील- बाली, जिला- पाली, राजस्थान-306707, मोबाइल: 9166280718, ईमेल: davevinod14@gmail.com.

गूगल से साभार
1.

अँधेरी राह
बहन दीपिका है
प्रेम की बाती

2.

प्यार बांटती
चिड़िया-सी बहन
घर चहके

3.

सीप-सी आँखें
अश्क मोती है प्रिय
मत बहाना

4.

सहोदरा हो
न हो सगी बहन
रक्षक बनो

5.

घर की शोभा
बेटी और तुलसी
ना मुरझाना

6.

स्त्री की अस्मिता
भाई-दूज या राखी
रिश्ता निभाना

7.

दीपक तले
अंधेरे का विनाश
कोई तो करे

8.

श्रम का है घी
आशा की दीपशिखा
कर्म रोशनी

9.

विनाश आया
मन-मस्तिष्क पर
रावण छाया

10.

स्वामी भक्ति का
माँ सीता रूप बनी
नारी शक्ति का

11.

रीत मिथ्या है
पति परमेश्वर
तो पत्नी क्या है


12.

सीता है मौन
अपनों के भेष में
रावण कौन

13.

ओ नववर्ष
खुशियों का बादल
बन बरसो

14.

भीनी महक
रातरानी फूल-सा
हमारा इश्क़

15.

जागती रातें
सितारों के गाँव में
उदासी बांटे

16.

मत चिल्लाओ
सरकार कहे है
चुप हो जाओ

17.

कंपाती ठंड
ठिठुरते गरीब
समां अजीब

18.

प्रकृति माँ है
पोषक जगत की
माँ प्रकृति है

19.

पलाश पुष्प
जंगल की ज्वाला है
वन की शोभा

20.

धुंध औ धुआँ
वन काट कहते
ये कैसे हुआ

21.

ये राजनीति
बिना नीति का राज
कैसी है रीति

22.

ताज कुचलो
सिंहासन तोड़ दो
कोई क्रांति हो

23.

बालक प्यारा
बूढ़े माता-पिता का
बने सहारा

24.

साहसी बेटी
अँधेरे में रोशनी
पिता की लाठी

25.

लड़ता जाता
तूफानों में भी दीया
टिमटिमाता

26.

नवीन वर्ष
वक़्त के गुलशन
खूब महको

Vinod Kumar Dave, Raj.

शनिवार, 5 नवंबर 2016

आचार्य विश्वनाथ पाठक की द्वितीय पुण्यतिथि



फैजाबाद। अवधी भाषा के लिए पहला साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त फैजाबादी कवि स्व आचार्य विश्वनाथ पाठक की द्वितीय पुण्यतिथि पर उनके जीवन और साहित्य को याद किया गया।

आपस संस्था के मुख्यालय पर आयोजित कार्यक्रम में आचार्य पाठक के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की गयी और उनकी चर्चित पुस्तक सर्वमंगला के कुछ अंशों का सस्वर पाठ किया गया। इस अवसर पर आपस के निदेशक डाॅ विन्ध्यमणि ने कहा कि आचार्य विश्वनाथ पाठक का साहित्य भारतीय लोक जीवन का महत्वपूर्ण दस्तावेजी साहित्य है। पालि, प्राकृत, अपभ्रश, अवधी का ऐसा विद्वान अब मिलना मुश्किल है। सर्वमंगला और घर कै कथा जैसी कृतिया आज भी भारतीय परिवेश के लिए व्यापक अध्ययन और समीक्षा की मांग करती हैं। कठिन शब्दों की व्युत्पत्ति में उनके जैसा कोई नहीं।

डाॅ हरिश्चन्द्र पाण्डेय ने कहा कि आचार्य पाठक ने साहित्य की लोक पक्ष को अपने जीवन और साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान पर रखा। दिनेशचन्द्र ने घर कै कथा की शब्द चयन योजना के सन्दर्भ में विस्तृत विवेचना प्रस्तुत किया। डाॅ मधु ने कहा कि पाठक जी के जीवन की भाव और क्रिया एक समान थी। उन्होंने अवधी भाषा के माध्यम से सर्वमंगला में वैश्विक समस्याओं का निराकरण प्रस्तुत किया। डाॅ राकेश शर्मा ने पाठक जी द्वारा अनुवादित कृतियों पर प्रकाश डाला और वज्जालग्ग के अवधी छन्दों को सुनाया।

इस अवसर पर अमित कुमार, आलोक गुप्ता, पुरुषोत्तम तिवारी, विनय मिश्र, मनोराम, पंकज सिंह के साथ अनेक साहित्य प्रेमियों ने भाग लिया। अन्त में पुरुषोत्तम कुमार ने आये हुये सभी अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया।


Remembering Acharya Vishwanath Pathak, Faizabad, U.P.