मुरादाबाद के कुछ गज़लकार
ग़ज़ल में-
| मंसूर उस्मानी   
जन्म:  01 मार्च 1954 
कृतियाँ: मैंने कहा , जुस्तुजू, ग़ज़ल की ख़ुशबू 
प्रकाशन : विभिन्न समाचार पत्रों, साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित  
संपर्क:  नजमा हाउस, बारादरी, निकट मजार शरीफ, मुरादाबाद (उ०प्र०), भारत 
सम्पर्कभाष सं०: 09897189671 | पत्थर के ज़माने वाले 
एक गिरते हुए राही को उठाने वाले  
अब वो इंसान कहां पहले ज़माने वाले  
हमसे वाबस्ता है हरदौर की तारीखे-जुनूं 
कहाँ हैं हर दौर को आईना दिखाने वाले  
बहते दरिया की रवानी से उलझना क्या है? 
नक्श पत्थर पे बनाते हैं बनाने वाले 
ख़ार तो ख़ार हैं, फूलों को मसल देते हैं  
आज के लोग हैं पत्थर के ज़माने वाले  
नकहतें तेरी जवानी को दुआ देती हैं 
मौसमे-गुल की तरह बाम पे आने वाले  
हमसे पूछे कोई रातों की हक़ीक़त 'मंसूर' 
हम हैं पलकों पे सितारों को सजाने वाले | 
| ओंकार सिंह 'ओंकार' 
जन्म: 1 मार्च 1950 
कृति:  संसार हमारा है (ग़ज़ल-संग्रह)  प्रकाशन : विभिन्न समाचार पत्रों, साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित संपर्क: 1B/241, बुद्धिविहार, आवास विकास, मुरादाबाद-244001 (उ०प्र०) सम्पर्कभाष सं०: 09997505734 | ज़िंदगी 
इस तरह ज़िन्दगी है सितमगार के लिए  तिनका हो जैसे कोई भी तलवार के लिए महफूज़ आज अपने ही घर में कोई नहीं जो कुछ हिफाज़तें हैं वो सरदार के लिए मजबूरियां ग़रीब की उनसे कहेगा कौन अख़वार भी है आज तो ज़रदार के लिए है भूख अब कहीं, तो हैं लाचारियां कहीं दुनियां की मुश्किलात हैं नादार के लिए जिस्मों से खेलतीं है तो ज़रदार की हवस मुफ़लिस की आबरू है तो बाज़ार के लिए इक जुम्बिशे-निगाह तेरी चारासाज़े-वक़्त होगी हयाते-नौ तेरे बीमार के लिए फ़िरका-परस्तियां तो नहीं हैं सरे-जहां 'ओंकार' एक साहिबे-किरदार के लिए | 
| मीना  नक़वी  
जन्म:  20 मई 1955 
कृतियाँ: सायबान, दर्द पतझड़ का, बादवान, किरचियाँ दर्द की  
प्रकाशन: विभिन्न समाचार पत्रों, साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित  
संपर्क:  मीना नर्सिंग होम, अगवानपुर, मुरादाबाद (उ०प्र०), भारत 
सम्पर्कभाष सं०: 05912511211 | शीशा-ए-दिल 
शीशा-ए-दिल से नहीं आहो फुगाँ से निकलीं  किरचियाँ दर्द की निकलीं तो कहाँ से निकलीं दर बदर फिरने का फिर हो गया ख़तरा लाहक़ चंद परछाइयां जब खाली मकाँ से निकलीं आ गया तीरा शबी में जो हमें तेरा ख़्याल यूँ लगा रौशनियाँ वादी-ए-जाँ से निकलीं तुझ को देखा तो बहारों पे जवानी छाई मुद्दतों बाद तमन्नाएँ खिज़ां से निकलीं जाने क्या कह गई एक सर्द निगाही तेरी सारी ख़ुशफेहमियाँ चाहत के गुमाँ से निकलीं जब सुनी 'मीना' गुलाबों के महकने की ख़बर ख़ुश्बूएँ हंसती हुई शहर-ए-अमाँ से निकलीं | 
| 
कृष्ण कुमार 'नाज़' 
जन्म: 10 जनवरी 1961 
कृतियाँ: इक्कीसवीं सदी के लिए (ग़ज़ल-संग्रह), गुनगुनी धूप (ग़ज़ल-संग्रह), मन की सतह पर (गीत-संग्रह), जीवन के परिदृश्य (नाटक-संग्रह) प्रकाशन : विभिन्न समाचार पत्रों, साहित्यिक पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित संपर्क: सी-130, हिमगिरि कालोनी, काँठ रोड, मुरादाबाद-244 001 उत्तरप्रदेश, भारत सम्पर्कभाष सं०: 09927376877 | वफ़ा भी, प्यार भी, नफ़रत भी, बदगुमानी भी है सबकी तह में हक़ीक़त भी कहानी भी जलो तो यूँ कि हर इक सिम्त रोशनी हो जाय बूझो तो यूँ कि न बाक़ी रहे निशानी भी ये ज़िन्दगी है कि शतरंज की कोई बाज़ी ज़रा-सी चूक से पड़ती है मात खानी भी किसी की जीत का मतलब हुआ किसी की हार बड़ा अजीब तमाशा है ज़िन्दगानी भी उन आंसुओ का समंदर है मेरी आँखों में जिन आंसुओं में है ठहराव भी, रवानी भी दवा की फैंकी हुई ख़ाली शीशियों की तरह है रास्तों की अमानत मेरी कहानी भी महानगर है ये, सब कुछ यहां पे मुमकिन है यहां बुढ़ापे-सी लगती है नौजवानी भी हैं चंद रोज़ के मेहमान हम सभी ऐ 'नाज़' हमीं को करनी है ख़ुद अपनी मेज़बानी भी | 
Moradabad Ke Kuchh Gazalkar- Abnish Singh Chauhan
 
 
मुरादाबाद के कुछ गज़लकारों की सुन्दर गज़लों के लिए बधाई।
जवाब देंहटाएंउन आंसुओ का समंदर है मेरी आँखों में
जवाब देंहटाएंजिन आंसुओं में है ठहराव भी, रवानी भी
Wonderful !
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