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बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

अब तो जागो! - अवनीश सिंह चौहान



अब तो जागो!

कौन देख रहा है
हमारे बहते आँसू
लहूलुहान मन
और तन
जिस पर
करते आये हैं
प्रहार
जाने कितने लोग। 


सदियाँ गुजर गयीं
पीड़ाएँ भोगती रहीं
हमारी पीढ़ियाँ 

और तुम 
चुपचाप 
करते रहे 
अपनी स्वार्थ-सिद्धि। 

हमने
फूल दिए

फल दिए
और दीं
तमाम औषधियाँ
फिर भी
हम रहे
उपेक्षित
पीड़ित
अपने ही घर में
अपनों के ही बीच। 


अब तो जागो,
हे कर्णधारो!
क्योंकि
हम बचेंगे
तो बचेगा
धरा पर
जल और जीवन। 

7 टिप्‍पणियां:

  1. हम बचेंगे
    तो बचेगा
    धरा पर
    जल और जीवन
    बहुत सही कहा आपने...पर्यावरण की रक्षा के लिए हम सबको कटिबद्ध होना चाहिए...पेड़ ही न रहे तो क्या बचेगा? बहुत सुन्दर सार्थक रचना है आपकी...बधाई
    नीरज

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  2. Aapkee kavita dimaag mein hee nahin , dil mein
    bhee utar gayee hai .Achchhee kavita ke liye
    aapko badhaaee .

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  3. Ek Sarthak sandesh hum sub ke leye. Abhi dhayan dene ke jarorat hi, tabhi hum sub jevit rahege .
    Bhaut Badhaaeeeeeeeeee
    Dr.Mayank

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  4. पर्यावरण संरक्षण पर यह एक अच्छी कविता है आपकी .

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  5. सर्वश्री नीरज जी, प्राण जी , मयंक जी, विजय जी, आपकी प्रतिक्रियाओं के लिए हृदय से आभारी हूं. :- अवनीश सिंह चौहान

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  6. Respected Sir, This is the most needed today's as there are tremendous pressure of natural resource. You have done wondereful work to aware to people. For kind information i want to tell you that normal adult human take 16 kg fresh oxygen in a day, In a 112kg, in a year 5840kg, For a persor who lives for 75 yrs 438000kg. 1 kg cost of fresh oxygen is about morethan 50Rs. Dr. Avnish Chauhan

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  7. bahut sundar,saarthak,bhaavanaaon ko kuredti hui kavita ke liye badhaai.

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