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मंगलवार, 16 अक्तूबर 2012

वरिष्ठ गीतकवि एवं आलोचक वीरेंद्र आस्तिक हुए सम्मानित


मुरादाबाद: 14 अक्टूबर, 2012; अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, उ.प्र. (भारत) द्वारा आयोजित साहित्य समारोह में मंच द्वारा हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में विविध उपलब्धियों के लिए तीस विभूतियों को सम्मानित एवं पुरस्कृत किया गया। कार्यक्रम का समारम्भ मुख्य अतिथि डॉ. दीनानाथ सिंह (मुंगेर), कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रख्यात हिन्दी सेवी डॉ. राम अवतार शर्मा, (आगरा), विशिष्ट अतिथि डॉ. तंकमणि अम्मा, (केरल); डॉ. निजामुद्दीन (जम्मू व कश्मीर) और डॉ. अंजना संधीर, (अहमदाबाद) द्वारा सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन करने के साथ हुआ। तत्पश्चात सरस्वती वन्दना प्रस्तुत की।

इस अवसर पर वरिष्ठ गीतकवि एवं आलोचक वीरेंद्र आस्तिक (कानपुर) को अखिल भारतीय साहित्य कला मंच, मुरादाबाद (उ.प्र.) ने उन्हें 'स्व. मधुरताज स्मृति साहित्य-अलंकार-सम्मान- २०१२' से सम्मानित किया। वीरेंद्र आस्तिक जी पिछले ४० वर्षों से गीत एवं समीक्षा लेखन कर रहे हैं। आपका जन्म कानपुर (उ.प्र.) जनपद के एक गाँव रूरवाहार में 15 जुलाई 1947 को हुआ। अब तक आपके पांच गीत-नवगीत संग्रह-परछाईं के पाँव, आनंद ! तेरी हार है, तारीख़ों के हस्ताक्षर, आकाश तो जीने नहीं देता, दिन क्या बुरे थे प्रकाशित हो चुके हैं। धार पर हम (एक और दो) आपके द्वारा संपादित कृतियाँ है। मंच का आभार व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा- "प्रतिवर्ष हिन्दी पखवाड़ा मनाया जाता है जोकि अब एक कर्मकांड में बदल चुका है। क्योंकि उस दिन हम जो भी संकल्प लेते है उसे दूसरे दिन ही भूल जाते हैं। अब हिन्दी दिवस पर न कोई विशेष सक्रियता दिखाई पड़ती है और न ही उसके प्रति कोई प्रतिबद्धता या जवाबदेही। योजनाएँ सिर्फ कागज़ तक ही सीमित रह जाती हैं। हिन्दी का विकास पिछले दो सौ वर्षों से हो रहा है; प्राकृत भाषा के बाद अपभ्रंस काल से हो रहा है। आज हिन्दी भाषा एक जरूरत के रूप में पूरे विश्व में बोली तथा लिखी-पढी जा रही है। सिद्धांत को व्यवहार से ही परखा जा सकता है। हिन्दी ने अपने व्यवहार से सिद्धांत को बहुत पीछे छोड़ दिया है। सिद्धांत टूट चूका है किन्तु संवैधानिक स्तर पर हिन्दी भाषा को बार-बार घेरने का प्रयास किया जा रहा है ताकि वह राष्ट्रभाषा न बन सके। दरअसल हिन्दी भाषा के मामले में आज हम वहीं खड़े हैं जहां से चले थे। ऐसी स्थिति में हमारे पास अब एक ही विकल्प बचता है। राष्ट्रभाषा के समर्थन में जिस दिन हिन्दी जाति की करोड़ों-करोड़ों जनता आन्दोलन पर उतर आयेगी, संसद के सामने धरना देगी और आमरण अनशन पर बैठेगी, उसी दिन सच मानिए हिन्दी राष्ट्रभाषा घोषित हो जायेगी।" इस अवसर पर आस्तिक जी ने अपने मधुर कंठ से एक नवगीत भी पढ़ा- "हम ज़मीन पर ही रहते हैं / अम्बर पास चला आता है।"

समारोह में अनेक प्रान्तों के साहित्यकार मौजूद थे। प्रो. रामप्रकाश गोयल (बरेली); डॉ. परमेश्वर गोयल (पूर्णिया); डॉ. प्रभा कपूर, डॉ. पी. के. शुक्ल, डॉ. विनोद कुमार पाण्डेय (मुरादाबाद); डॉ शमा परवीन; डॉ. मनीषा मित्तल; डॉ. अरूण रानी (चाँदपुर); रवीन्द्र मोहन ‘अनगढ़’; रामप्रकाश ‘ओज’, डॉ. मीना कौल (मुरादाबाद); डॉ. दिनेश चमोला (देहरादून), डॉ. ऋजु पंवार (मेरठ); रमेश सोबती (फगवाड़ा);डॉ. विनोद कुमार ‘प्रसून’ (नोयडा); डॉ. सुनील अग्रवाल (चन्दौसी); डॉ. रघुवीरशरण शर्मा (रामपुर); अनिल शर्मा ‘अनिल’ (धामपुर); सत्यपाल सत्यम, समीर मण्डल, डॉ. सुधाकर ‘आशावादी’, सुमनेश ‘सुमन’, कौशल कुमार, श्री अनिल सिसौदिया, (मेरठ); डॉ. आर.सी.शुक्ला, डॉ. दीपक बुदकी, डॉ. गंगेश गुंजन, अशोक ज्योति (नई दिल्ली), डॉ. नीरू कपूर, डॉ. राजीव शर्मा, डॉ. चन्द्रभान सिंह यादव, डॉ. मुकेश कुमार गुप्ता, पुष्पेन्द्र वर्णवाल, माहेश्वर तिवारी, ब्रजभूषण सिंह गौतम ‘अनुराग’, डॉ. मयंक पंवार, डॉ. अभय कुमार, डॉ. स्वाति पंवार, डॉ. अनुराधा पंवार, महेश पाल सिंह राघव, योगेन्द्र पाल सिंह विश्नोई, रामलाल ‘अन्जाना’, वीरेन्द्र ‘बृजवासी’, अशोक विश्नोई, मीना नकवी, राजीव सक्सेना, ओंकार सिंह ओंकार, आनन्द गौरव, कृष्ण कुमार नाज़, चन्द्रशेखर ‘मयूर’, योगेन्द्र ‘व्योम’, जिया जमीर, ओमराज, श्री अतुल जौहरी, शिवशंकर यजुर्वेदी, फक्कड़ मुरादाबादी, विवेक ‘निर्मल’, जितेन्द्र जौली, अवनीश सिंह चैहान आदि साहित्यकार उपस्थित थे। कार्यक्रम के द्वितीय चरण में स्थानीय और बाहर से आये साहित्यकारों की कविगोष्ठी भी आयोजित की गयी। कार्यक्रम का संचालन डॉ अम्बरीष कुमार गर्ग एवं विवेक निर्मल ने संयुक्त रूप में किया। आभार अभिव्यक्ति संस्था के अध्यक्ष कर्मयोगी- साहित्यकार डॉ. महेश दिवाकर जी ने की।

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