पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

मंगलवार, 10 अक्तूबर 2023

फ्लैप : वीरेन्द्र आस्तिक : गीतधर्मिता और जीवनराग — अवनीश सिंह चौहान

कृति : वीरेन्द्र आस्तिक : गीतधर्मिता और जीवनराग
लेखक : डॉ रेशमी पांडा मुखर्जी
प्रकाशन वर्ष : 2023 
पृष्ठ : 160 मूल्य : रु. 400/-
ISBN : 978-1-61301-757-9 
प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह, कानपुर (उ.प्र.)


नवीन शिक्षा पद्धति एवं शैक्षिक अनुसंधान को केंद्र में रखकर कार्य करने वाली डॉ रेशमी पांडा मुखर्जी हिंदी आलोचना की समर्पित लेखिका हैं। पेशे से सह-आचार्य (हिंदी), बंगाली मूल की समझदार एवं संवेदनशील शब्द-यात्री डॉ मुखर्जी ने हिंदी आलोचना की आधुनिक चिंतनधारा को आत्मसात कर विभिन्न साहित्यिक विधाओं का आकलन-मूल्यांकन बड़ी गंभीरता से किया है। डॉ मुखर्जी हिंदी आलोचना के साथ अनुवाद एवं सर्जनात्मक लेखन में भी सक्रिय हैं। इन्होंने अब तक लगभग एक दर्जन पुस्तकों एवं कई दर्जन शोध-पत्र व समीक्षात्मक लेखों का सृजन किया है। इन्होंने राष्ट्रीय स्तर की अनेकशः संगोष्ठियों में सार्थक सहभागिता की है। कोलकाता जैसे बंगाली भाषी व्यस्त शहर में रहकर इनके द्वारा हिंदी भाषा एवं साहित्य के क्षेत्र में निष्पक्षता, तटस्थता एवं पूर्वाग्रह-रहित होकर कार्य करना निश्चय ही श्लाघनीय है।

डॉ मुखर्जी मूल रूप से कवि के चिंतन से जुड़े विभिन्न आयामों को रेखांकित करने वाली शिक्षिका हैं। इसलिए इन्होंने "वीरेन्द्र आस्तिक : गीतधर्मिता और जीवनराग" पुस्तक में कवि  की रसमयी गीत-यात्रा में आये विभिन्न पड़ावों को जानने-समझने की भरपूर कोशिश की है। अपनी इस कोशिश में इन्होंने कवि की जीवन शैली एवं रचना प्रक्रिया को केंद्र में रखकर उसकी काव्यकृतियों का गहन और गंभीर अध्ययन एवं विश्लेषण किया और इस निष्कर्ष पर पहुँची कि कवि का जीवन-दर्शन एवं काव्य-दृष्टि बड़ी व्यापक है, कारण कि इसमें सवेदनात्मक आवेग से परिपूर्ण यथार्थ को प्रकट कर सामंजस्यपूर्ण समाज की स्थापना का लक्ष्य विद्यमान है।



लेखक : 
'वंदे ब्रज वसुंधरा' सूक्ति को आत्मसात कर जीवन जीने वाले वृंदावनवासी डॉ अवनीश सिंह चौहान (जन्म 4 जून, 1979) का नाम वेब पर हिंदी नवगीत की स्थापना करने वालों में शुमार है। वर्तमान में वे बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, बरेली के मानविकी एवं पत्रकारिता महाविद्यालय में प्रोफेसर और प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं।

Virendra Astik: Geetdharmita aur Jivanraag by Dr Reshmi Panda Mukherji

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपकी प्रतिक्रियाएँ हमारा संबल: