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मंगलवार, 19 जुलाई 2011

मनोज कुमार वर्मा 'मनु' और उनकी तीन गज़लें — अवनीश सिंह चौहान

मनोज कुमार वर्मा 'मनु'


किसे लगता है अच्छा किरकिरी आँखों की हो जाना ।
मग़र दुनियां की आँखों में खटकना चाहता हूँ मैं ।।

दुनियां की आँखों में खटकने के लिए न केवल संकल्प और प्रयास की आवश्यकता होती है, बल्कि साहस भी जरूरी होता है। और यह सब कुछ है इस कलमकार के पास- जिसने लिखीं हैं ये पंक्तियाँ; जिससे परिचय कराने जा रहा हूँ आप सब सुधी पाठकों का; जिसकी ग़ज़लों को भी प्रस्तुत करना है यहाँ पर ताकि मुरादाबाद मंडल की समकालीन युवा रचनाधर्मिता से भी परिचय बन सके हम सबका। नाम है मनोज कुमार वर्मा 'मनु'। जन्म हुआ 02 सितम्बर 1974 को। सोने-चांदी का व्यवसाय कर अपनी जीविका चलाने वाला यह रचनाकार जब शब्दों के आभूषण बनाने लगा तो उसकी खनक न केवल मुरादाबाद में सुनी गई, बल्कि देश के अन्य स्थानों पर भी इसे महसूस किया जा रहा है। सो मन बना कि क्यों न हो इस रचनाकार को पूर्वाभास पर प्रस्तुत किया जाय। संपर्क : मौ० भब्बलपुरी, टांडा बादली, ज़िला : रामपुर (उ०प्र०), चलभाष: 098371-32268


चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार
1. सन्नाटा ही सन्नाटा है...

अपना अपना वज़न बात में मैं भी देखूं तू भी देख।
उगता सूरज यहाँ रात में मैं भी देखूं तू  भी देख ।।

ख़ुद से लड़ना बड़ा कठिन है ख़ुद से जीत सके तो बोल ।
फंसा है राजा शहो-मात में मैं भी देखूं तू भी देख ।।

बेटी रही पराई लेकिन उसने घर का मान रखा ।
बेटा रहता खुराफ़ात में मैं भी देखूं तू भी देख ।।

शान है कैसी नूर है कितना मेरे नूरानी रब का ।
शम्श करोड़ों ज़र्रात में मैं भी देखूं तू भी देख ।।

 सन्नाटा ही सन्नाटा है बुलबुल भी चुप दहशत में ।
शहर फंसा है फसादात में मैं भी देखूं तू भी देख ।।

यूँ तो सब जीते मरते हैं पर कुछ ऐसा करें 'मनु' ।
हो पैदा किरदार ज़ात में मैं भी देखूं तू भी देख ।।

2. जो दिलों को जीत पाया...

चाह में उसकी न जाने क्या मुकद्दर हो गया ।
मंजिलों का इक मुसाफिर एक पत्थर हो गया ।।

दर्द जो लेकर किसी का बांटता खुशियाँ रहा ।
एक दरिया से वही इन्सां समंदर हो गया ।।

जीतने को सरहदें जीतीं सिकंदर ने मग़र ।
जो दिलों को जीत पाया वो कलंदर हो गया ।।

मुद्दतों पहलू में पाला चार दिन का ये असर ।
अपना ही दिल जान का अपनी सितमगर हो गया ।।

इक सराय बन गई संसद हमारे मुल्क की ।
मक्तवे रिश्वत यहाँ हर एक दफ्तर हो गया ।।

होसला जिसने नहीं हारा है अपना वो 'मनु' ।
आग में तापे गये कुंदन से बेहतर हो गया ।।

3. आपकी याद चली आई...

आपकी याद चली आई थी कल शाम के बाद ।
और फिर हो गई एक ताज़ा ग़ज़ल शाम के बाद ।।

मेरी बेख़्वाब निग़ाहों की अज़ीयत मत पूछ ।
अपना पहलू मेरे पहलू से बदल शाम के बाद ।।

मसअला मेज पे ये सोचके छोड़ आया हूँ ।
अब न निकला तो निकल आयेगा हल शाम के बाद ।।

तू है सूरज तुझे मालूम कहाँ रात के गम ।
तू किसी रोज़ मेरे घर में निकल शाम के बाद ।।

छोड़ उन ख़ानाबदोषों का तज़्करा कैसा ।
जो तेरा शह्र ही देते हैं बदल शाम के बाद ।।

कोई काँटा भी तो हो सकता है इनमें पिन्हा ।
अपने पैरों से न फूलों को मसल शाम के बाद ।।

Teen Gazalen: Manoj Kumar Varma 'Manu'

2 टिप्‍पणियां:

  1. तीनो ग़ज़लें एक से बढ़ कर एक हैं...साफ़ सादा ज़बान में बहुत गहरे अशआर कहें हैं मनु जी ने...मेरी दाद कबूल करें...

    नीरज

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  2. मनोज कुमार वर्मा 'मनु' जी की तीनो ग़ज़लें यथार्थपरक और बेहतरीन हैं.

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