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शनिवार, 7 जनवरी 2012

महेंद्र भटनागर और उनकी दो रचनाएँ— अवनीश सिंह चौहान

महेंद्र भटनागर

26 जून 1926 को जनमे वरिष्ठ कवि महेंद्र भटनागर सेवानिवृत्ति के बाद ग्वालियर (म.प्र.) में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। प्रगतिशील-जनवादी हिंदी-कविता के सशक्त हस्ताक्षर भटनागर जी ने विपुल साहित्य सृजन किया है । उनका अधिकांश साहित्य ‘महेंद्र भटनागर-समग्र’ के सात खंडों में उपलब्ध है। उनकी अठारह काव्य-कृतियों के संग्रह तीन खंडों में पृथक से भी प्रकाशित हो चुके हैं- ‘महेंद्र भटनागर की कविता-गंगा’। द्विभाषिक कवि- हिंदी और अंग्रेज़ी। अंग्रेज़ी में उनकी ग्यारह काव्य-कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कविताएँ कई भारतीय भाषाओं में अनूदित व पुस्तकाकार प्रकाशित। फ्रेंच में 108 कविताओं के अनुवाद अंग्रेज़ी-प्रारूपों के साथ पुस्तकाकार उपलब्ध हैं। उनको अब तक कई सम्मानों से अलंकृत किया जा चुका है। संपर्क: 110 बलवंतनगर, गांधी रोड, ग्वालियर- 474 002 (म.प्र.)। फ़ोन: 0751- 4092908। ई-मेल: drmahendra02@gmail.com। आपकी दो रचनाएँ यहाँ दी जा रही हैं-

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार

1. री हवा !

री हवा !
गीत गाती आ,
सनसनाती आ ;
डालियाँ झकझोरती
रज को उड़ाती आ !

मोहक गंध से भर
प्राण पुरवैया
दूर उस पर्वत-शिखा से
कूदती आ जा !

ओ हवा !
उन्मादिनी यौवन भरी
नूतन हरी इन पत्तियों को
चूमती आ जा !
गुनगुनाती आ,
मेघ के टुकड़े लुटाती आ !

मत्त बेसुध मन
मत्त बेसुध तन !
खिलखिलाती, रसमयी,
जीवनमयी
उर-तार झंकृत
नृत्य करती आ !

2. जीवन

जीवन हमारा फूल हरसिंगार-सा
जो खिल रहा है आज,
कल झर जायगा !

इसलिए, हर पल विरल
परिपूर्ण हो रस-रंग से,
मधु-प्यार से !
डोलता अविरल रहे हर उर
उमंगों के उमड़ते ज्वार से !
एक दिन, आख़िर,
चमकती हर किरण बुझ जायगी...
और चारों ओर
बस, गहरा अँधेरा छायगा !

मत लगाओ द्वार अधरों के
दमकती दूधिया मुसकान पर,
हो नहीं प्रतिबंध कोई
प्राण-वीणा पर थिरकते
ज़िन्दगी के गान पर !
एक दिन उड़ जायगा सब ;
फिर न वापस आयगा !

Two Hindi Poems of Mahendra Bhatnagar

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