वरिष्ठ नवगीतकार डॉ शिवबहादुर सिंह भदौरिया का पी जी आई, लखनऊ में उपचार के दौरान बुधवार की सुबह निधन हो गया। वे कई दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। डॉ शिव वहादुर सिंह भदौरिया का जन्म १५ जुलाई १९२७ को जनपद रायबरेली (उ.प्र.) के एक छोटे से गाँव धन्नीपुर (लालगंज) के एक किसान परिवार में हुआ था। 'हिंदी उपन्यास सृजन और प्रक्रिया' पर कानपुर विश्व विद्यालय से पी एच डी की उपाधि। पुलिस विभाग की नौकरी छोड़ शिक्षक बने। प्रारंभ में कुछ दिन पुलिस विभाग में अपनी सेवा अर्पित करने के बाद १९६७ से १९७२ तक वैसवारा स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिंदी प्रवक्ता से लेकर विभागाध्यक्ष तक के पद पर कार्य किया। तत्पश्चात प्राचार्य के पद से १९८८ में सेवानिवृत।सन १९४८ से आपने कविता करना प्रारंभ कर दिया था। लालगंज में निवास करते हुए अंतिम समय तक साहित्य साधना में लगे रहे। आप 'नवगीत दशक' तथा 'नवगीत अर्द्धशती' के नवगीतकार रहे तथा अनेक चर्चित व प्रतिष्ठित समवेत कविता संकलनों में आपके गीत तथा कविताएं प्रकाशित हो चुकी हैं। आपके प्रथम गीत संग्रह ‘शिजिंनी’ (1953) की भूमिका में आचार्य नन्द दुलारे वाजपेयी जी ने भदौरियाजी को अमित सम्भावनाओं वाला गीतकार कहा था। और जब ‘धर्मयुग’ में ‘पुरवा जो डोल गयी’ प्रकाशित हुआ तो इस गीत ने गीत विधा को एक क्रांतिकारी परिवर्तन की दिशा प्रदान की। भदौरिया जी मानते थे- ‘मैंने अच्छी तरह समझ लिया कि गीत-काव्य मेरी भावुकता की अभिव्यक्ति का पर्याय नहीं है। यह यथार्थ के प्रति एक प्रौढ़ प्रतिक्रिया की मार्मिक अभिव्यक्ति बन रहा है और इसी नए गीत के साथ अन्त:प्रेरित होकर मैं भी जुड़ गया। गीत की प्रचलित धारणाओं से मुक्ति ही नए गीत को नए आयाम उद्घाटित करने का आधार बन सकती है। जीवन का समग्र साक्षात्कार ही नए गीत को व्यापक काव्य भूमि पर प्रतिष्ठित कर सकता है।’ प्रकाशित कृतियाँ: 'शिन्जनी' (गीत-संग्रह), 'पुरवा जो डोल गई' (गीत-कविता संग्रह), 'ध्रुव स्वामिनी (समीक्षा) ', 'नदी का बहना मुझमें हो' (नवगीत संग्रह), 'लो इतना जो गाया' (नवगीत संग्रह), 'माध्यम और भी' (मुक्तक, हाइकु संग्रह), 'गहरे पानी पैठ' (दोहा संग्रह)। ‘ध्रुवस्वामिनी’ आपका समीक्षात्मक ग्रंथ हैं। ‘राष्ट्रचिंतन’, ‘मानस चन्दन’, ‘ज्योत्सना’ आदि पत्रिकाओं का आपने सम्पादन किया। आप महामहिम राज्यपाल द्वारा जिला परिषद, रायबरेली के नामित सदस्य भी रहे। हाल ही में आपके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर केन्द्रित 'राघव राग' पुस्तक प्रकाशित। आप मेरे परम पूज्य गुरुदेव स्व दिनेश सिंह जी के गुरूजी रहे। नवगीत के इस महान शिल्पी को पूर्वाभास की ओर से विनम्र श्रृद्धांजलि!
1. नदी का बहना मुझमें हो
Art by Vishal Bhuvania |
मेरी कोशिश है कि
नदी का बहना मुझमें हो
तट से सटे कछार घने हों
जगह -जगह पर घाट बनें हों
टीलों पर मंदिर हों जिनमें
स्वर के विविध वितान तनें हों
भीड़
मूर्छनाओं का
उठाना -गिरना मुझमें हो
जो भी प्यास पकड़ ले कगरी
भर ले जाये खाली गगरी
छूकर तीर उदास न लौटें
हिरन कि गाय कि बाघ कि बकरी
मच्छ -मगर
घड़ियाल
सभी का रहना मुझमें हो
मैं न रुकूँ संग्रह के घर में
धार रहे मेरे तेवर में
मेरा बदन काट कर नहरें
ले जाएँ पानी ऊसर में
जहाँ कहीं हो
बंजरपन का
मरना मुझमें हो।
2. इंद्रधनुष यादों ने ताने
इंद्रधनुष
यादों ने ताने
क्या क्या होगा आज न जाने
सिरहाने चुपचाप आ गया
झोंका मिली जुली गंधों का
अनुगूँजों ने चित्र उकेरा
सटे पीठ से अनुबंधन का
खिड़की से
गुलाब टकराया
किसने छेड़ा साज न जाने
आकारों से रेखाओं को
कितना दूर किये देती है
संबंधों के शीश महल को
चकनाचूर किये देती है
अर्थ देह का
बदले देती
किसकी है आवाज न जाने।
पुरवा जो डोल गई
घटा घटा आँगन में
जूड़े-सा खोल गई
बूँदों का लहरा दीवारों को चूम गया
मेरा मन सावन की गलियों में झूम गया
श्याम रंग परियों से अंतर है घिरा हुआ
घर को फिर लौट चला बरसों का फिरा हुआ
मइया के मंदिर में
अम्मा की मानी हुई
डुग डुग डुग डुग डुग
बूँदों का लहरा दीवारों को चूम गया
मेरा मन सावन की गलियों में झूम गया
श्याम रंग परियों से अंतर है घिरा हुआ
घर को फिर लौट चला बरसों का फिरा हुआ
मइया के मंदिर में
अम्मा की मानी हुई
डुग डुग डुग डुग डुग
बधइया फिर बोल गई
बरगा की जड़ें पकड़ चरवाहे झूल रहे
बिरहा की तालों में विरहा सब भूल रहे
अगली सहालग तक ब्याहों का बात टली
बात बहुत छोटी पर बहुतों को बहुत खली
नीम तले चौरा पर
मीर की बार बार
गुड़िया के ब्याह वाली
बरगा की जड़ें पकड़ चरवाहे झूल रहे
बिरहा की तालों में विरहा सब भूल रहे
अगली सहालग तक ब्याहों का बात टली
बात बहुत छोटी पर बहुतों को बहुत खली
नीम तले चौरा पर
मीर की बार बार
गुड़िया के ब्याह वाली
चर्चा रस घोल गई
खनक चुड़ियों की सुनी मेंहदी के पातों ने
कलियों पर रंग फेरा मालिन की बातों ने
धानों के खेतों में गीतों का पहरा है
चिड़ियों की आँखों में ममता का सेहरा है
नदिया से उमक उमक
मझली वह छमक छमक
पानी की चूनर को
खनक चुड़ियों की सुनी मेंहदी के पातों ने
कलियों पर रंग फेरा मालिन की बातों ने
धानों के खेतों में गीतों का पहरा है
चिड़ियों की आँखों में ममता का सेहरा है
नदिया से उमक उमक
मझली वह छमक छमक
पानी की चूनर को
दुनिया से मोल गई
झूले के झूमक हैं शाखों के कामों में
शबनम की फिसलन केले की रानों में
ज्वार और अरहर की हरी हरी सारी है
सनई के फूलों की गोटा किनारी है
गाँवों की रौनक है
मेहनत की बाँहों में
धोबन भी पाटे पर
झूले के झूमक हैं शाखों के कामों में
शबनम की फिसलन केले की रानों में
ज्वार और अरहर की हरी हरी सारी है
सनई के फूलों की गोटा किनारी है
गाँवों की रौनक है
मेहनत की बाँहों में
धोबन भी पाटे पर
हइया हू बोल गई।
डॉ भदौरिया के प्रति:
Dr Shivbahadur Singh Bhadauriyaडॉ भदौरिया के प्रति:
वरिष्ठ गीतकार डॉ. शिवबहादुर सिंह भदौरिया आधुनिक गीत और नवगीत विधा के ऐसे समर्थ हस्ताक्षर हैं, जिन्होंने गीत को अपनी विशिष्ट भाषा एवं शैली के द्वारा नव्यता प्रदान की। उनके गीत उनके विश्वास को दृढ़ता से हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं। ‘नदी का बहना मुझमें हो’ शीर्षक उनका गीत संग्रह समकालीन गीत के नए प्रतिमान स्थापित करता है। वे श्रेष्ठतम मानव थे और उनकी सरलता, सहजता, उदारता और निश्छल हंसी अनायास सबको प्रभावित करने वाली थी। ऐसे समर्थवान गीतकार, समीक्षक, सम्पादक डॉ. भदौरिया का हमारे बीच से जाना साहित्य जगत की अपूरणीय क्षति है। अपने सशक्त कृतित्व के माध्यम से वे अनन्तकाल साहित्यानुरागियों के बीच उपस्थित रहेंगे। - उदय प्रताप सिंह, कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तरप्रदेश हिन्दी संस्थान
सादर श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंभदौरिया जी अपनी संवेदनापूर्ण रचनाधर्मिता के चलते साहित्य में अमर रहेंगे । उनके नवगीतों में जो लोकचेतना है वह उन्हें हमेशा प्रासंगिक और जीवन्त बनाये रखेगी ।ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे!
जवाब देंहटाएंसादर श्रद्धांजलि!
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्धांजलि !
जवाब देंहटाएंविनम्र श्रद्वांजलि के साथ इस आलेख को दिनांक 09.08.2013 को http://blogprasaran.blogspot.in/ पर लिंक किया गया है। कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
जवाब देंहटाएंहार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए आपकी यह प्रस्तुति 'निर्झर टाइम्स' पर लिंक की गई है।
जवाब देंहटाएंhttp://nirjhar.times.blogspot.in पर आपका स्वागत् है,कृपया अवलोकन करें।
सादर