पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ और उनकी नौ ग़ज़लें – अवनीश सिंह चौहान

धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’

चेहरे पर चेहरे चढ़ाये लोगों की शिनाख्त करने में माहिर युवा रचनाकार धर्मेन्द्र कुमार सिंह ‘सज्जन’ की ग़ज़लों में जीवन के तमाम अनसुलझे सवाल अपना आकार लेते दिखाई पड़ जाएंगे। हालाँकि उनका मानना है कि सवाल एक ही है, बस उनका अंदाज़-ए-बयां अलग-अलग होता है। आखिर वह सवाल क्या है? कहीं उनका सवाल इस भौतिक जगत में सच और झूठ के बीच द्वन्द से उपजे दुःख/पीड़ा की ओर संकेत तो नहीं करता? यदि ऐसा है तो उनका यह कहना समीचीन है - 'हर एक शक्ल पे देखो नकाब कितने हैं/ सवाल एक है लेकिन जवाब कितने हैं।' उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में 22 सितंबर, 1979 को जन्मे मन और वचन से सज्जन धर्मेन्द्र जी ने बीटेक प्रथम वर्ष में विद्याध्ययन के दौरान (2002-2004) पहली कविता महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी पर लिखी, जोकि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी के प्रौदयोगिकी संस्थान की पत्रिका में उसी वर्ष प्रकाशित हुई। उसके बाद आपने दस वर्ष तक केवल आठ-दस छुटपुट कविताएँ लिखीं। वर्ष 2009 में इंटरनेट पर 'कविता कोश' और 'नवगीत की पाठशाला' से जुड़ने के बाद लेखन पुनः प्रारम्भ किया। तब से विभिन्न मुद्रित एवं ऑनलाइन पत्र-पत्रिकाओं में गीत, नवगीत, ग़ज़लें, कविताएँ और कहानियों का निरंतर प्रकाशन। प्रकाशित कृतियाँ: ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर (2014)। साझा संकलन: परों को खोलते हुए-1 (2013), ग़ज़ल के फ़लक पर-1 (2014), सारांश समय का (2014)ब्लॉग : ‘ग्रेविटॉन’ (www.dkspoet.in)। सम्मान: कविता कोश योगदानकर्ता सम्मान। संप्रति: एनटीपीसी लिमिटेड की कोलडैम परियोजना में प्रबंधक (सिविल) के पद पर कार्यरत। संपर्क: क्वार्टर नम्बर सी-२, एनटीपीसी टाउनशिप, ग्राम एवं पोस्ट:  जमथल, थाना: बरमाना, जिला: बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश, भारत–174036, चलभाष: 9418004272, ईमेल : dkspoet@gmail.com

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार 
(1)

गगन का स्नेह पाते हैं, हवा का प्यार पाते हैं
परों को खोलकर अपने, जो किस्मत आजमाते हैं

फ़लक पर झूमते हैं, नाचते हैं, गीत गाते हैं
जो उड़ते हैं उन्हें उड़ने के ख़तरे कब डराते हैं

परिंदों की नज़र से एक पल बस देख लो दुनिया
न पूछोगे कभी, उड़कर परिंदे क्या कमाते है

फ़लक पर सब बराबर हैं यहाँ नाज़ुक परिंदे भी
अगर हो सामना अक्सर विमानों को गिराते हैं

जमीं कहती, नई पीढ़ी के पंक्षी भूल मत जाना
परिंदे शाम ढलते घोसलों में लौट आते हैं

(2)

महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है
तभी जाके ग़ज़ल पर ये गुलाबी रंग आया है

अकेला देख जब जब सर्द रातों ने सताया है
तुम्हारा प्यार ही मैंने सदा ओढ़ा बिछाया है

किसी को साथ रखने भर से वो अपना नहीं होता
जो मेरे दिल रहता है हमेशा, वो पराया है

अभी गीला बहुत है दोस्तों कुछ वक्त मत छेड़ो
ज़रा सी देर पहले प्यार में तन मन रँगाया है

कई दिन से उजाला रात भर सोने न देता था
बहुत मजबूर होकर दीप यादों का बुझाया है

तेरी नज़रों से मैं कुछ भी छुपा सकता नहीं हमदम
बदन से रूह तक तेरे लिए सबकुछ नुमाया है

(3)

जाल सहरा पे डाले गए
यूँ समंदर खँगाले गए

रेत में धर पकड़ सीपियाँ
मीन सारी बचा ले गए

जो जमीं ले गए हैं वही
सूर्य, बादल, हवा ले गए

सर उन्हीं के बचे हैं यहाँ
वक्त पर जो झुका ले गए

मैं चला जब तो चलता गया
फूट कर खुद ही छाले गए

खुद को मालिक समझते थे वो
अंत में जो निकाले गए

(4)

ख़ुदा के साथ यहाँ राम हमनिवाला है
ये राजनीति का सबसे बड़ा मसाला है

जो आपके लिये मस्जिद है या शिवाला है
वो मेरे वास्ते मस्ती की पाठशाला है

सभी रकीब हुये खत्म आपके, अब तो
वो आप ही को डसेगा मियाँ, जो पाला है

छुपा के राज़ यकीनन रखा है दिल में कोई
तभी तो आप के मुँह पे जड़ा ये ताला है

लगे जो आपको बासी व गैर की जूठन
वही तो देश के मज़लूम का निवाला है

(5)

मैं तुमसे ऊब न जाऊँ न बार बार मिलो
बनी रहेगी मुहब्बत, कभी कभार मिलो

महज़ हो साथ टहलना तो आर-पार मिलो
अगर हो डूब के मिलना तो बीच धार मिलो

मुझे भी खुद-सा ही तुम बेकरार पाओगे
कभी जो शर्म-ओ-हया कर के तार-तार मिलो

प्रकाश, गंध, छुवन, स्वप्न, दर्द, इश्क़, मिलन
मुझे मिलो तो सनम यूँ क्रमानुसार मिलो

दिमाग, हुस्न कभी साथ रह नहीं सकते
इसी यकीन पे बन के कड़ा प्रहार मिलो

(6)

तेज़ चलना चाहता है तो अकेला चल
दूर जाना चाहता तो ले के मेला चल

खा के मीठा हर जगह से आ रहा है तू
स्वस्थ रहना है तुझे तो खा करेला चल

सूर्य चढ़ने दे जरा, इस काँच के घर में
साँप ख़ुद मर जाएँगें, तू फेंक ढेला, चल

जिन्दगी अनजान राहों से गुजरती है
एक भटकेगा यकीनन हो दुकेला चल

चल रही आकाशगंगा चल रहे तारे
चल रहा जग तू भी अपना ले झमेला, चल

(7)

इक दिन बिकने लग जाएँगे बादल-वादल सब
दरिया-वरिया, पर्वत-सर्वत, जंगल-वंगल सब

पूँजी के नौकर भर हैं ये होटल-वोटल सब
फ़ैशन-वैशन, फ़िल्में-विल्में, चैनल-वैनल सब

महलों की चमचागीरी में जुटे रहें हरदम
डीयम-वीयम, यसपी-वसपी, जनरल-वनरल सब

समय हमारा खाकर मोटे होते जाएँगे
ब्लॉगर-व्लॉगर, याहू-वाहू, गूगल-वूगल सब

कंकरीट का राक्षस धीरे-धीरे खाएगा
बंजर-वंजर, पोखर-वोखर, दलदल-वलदल सब

जो न बिकेंगे पूँजी के हाथों मिट जाएँगे
पाकड़-वाकड़, बरगद-वरगद, पीपल-वीपल सब

आज अगर धरती दे दोगे कल वो माँगेंगे
अम्बर-वम्बर, सूरज-वूरज, मंगल-वंगल सब

(8)

हर एक शक्ल पे देखो नकाब कितने हैं
सवाल एक है लेकिन जवाब कितने हैं

जले गर आग तो उसको सही दिशा भी मिले
गदर कई हैं मगर इंकिलाब कितने हैं

जो मेरी रात को रोशन करे वही मेरा
जमीं पे यूँ तो रुचे माहताब कितने हैं

कुछ एक जुल्फ़ के पीछे कुछ एक आँखों के
तुम्हारे हुस्न से खाना ख़राब कितने हैं

किसी के प्यार की कीमत किसी की यारी की
न जाने आज भी बाकी हिसाब कितने हैं

(9)

जिस्म की रंगत भले ही दूध जैसी है
रूह भी इन पर्वतों की दूध जैसी है

पर्वतों से मिल यकीं होने लगा मुझको
हर नदी की नौजवानी दूध जैसी है

छाछ, मक्खन, घी, दही, रबड़ी छुपे इसमें
पर्वतों की ज़िंदगानी दूध जैसी है

सर्दियाँ जब दूध बरसातीं पहाड़ों में
यूँ लगे सारी ही धरती दूध जैसी है

रोग हो गर तेज़ चलने का तो मत आना
वक्त लेती है पहाड़ी, दूध जैसी है

Gazals By Dharmendra Kumar Singh 'Sajjan'

17 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28-04-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2326 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-04-2016) को "मौसम की बात" (चर्चा अंक-2328) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. सज्जन जी बहुत ही वेहतरीन गज़लें है। मुझे बहुत अच्छी लगीं। विशेष रूप से भाषा शिल्प और भाव वैसे ही है जैसे मुझे अच्छे लगते है।

    जवाब देंहटाएं
  4. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  5. हार्दिक शुभकामनाओं के साथ good post..here is some best hindi site on Biography, Quotes, Motivational, Thought, suvichar www.99hindi.in so check out in hindi..

    जवाब देंहटाएं
  6. excellent article. Keep writing such kind of information on your blog.
    I'm really impressed by your blog.
    Hello there, You have done an incredible job. I’ll certainly Digg it and personally suggest to my friends.
    I am confident they will be benefited from this website.
    Best cheap Offset Smokers

    जवाब देंहटाएं
  7. excellent article. Keep writing such kind of information on your blog.
    I'm really impressed by your blog.
    Hello there, You have done an incredible job. I’ll certainly Digg it and personally suggest to my friends.
    I am confident they will be benefited from this website.
    Best Entrepreneurship Quotes

    जवाब देंहटाएं
  8. Very interesting, good job and thanks for sharing such a good blog. Your article is so convincing that I never stop myself to say something about it. You’re doing a great job. Keep it up.
    Why Not Try This Out

    जवाब देंहटाएं
  9. Amazing Quotes , Its Actually Heart touching. Loved A Lot. Its Nice Blog Nice Contents, Your blog is very impressive, keep posting such useful information. I Am Damn Sure You will Really Love These blog. I Am Also A Blogger At This Site

    जवाब देंहटाएं
  10. I really loved reading your blog. I also found your posts very interesting. In fact, after reading, I had to go show it to my friend and he enjoyed it as well! View Publisher Site

    जवाब देंहटाएं

आपकी प्रतिक्रियाएँ हमारा संबल: