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रविवार, 25 दिसंबर 2016

मनोहर अभय और उनके एक दर्जन दोहे — अवनीश सिंह चौहान

मनोहर अभय

3 अक्टूबर 1937​ को जन्मे वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोहर अभय हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर हैं। शिक्षा: वाणिज्य में पी-एच.डी, एम.कॉम, साहित्यरत्न, एल.टी, आचार्य। कार्यक्षेत्र​ :​ लेखन संपादन एवं प्रशासन। अन्य प्रासंगिक जानकारी: अध्यापन से प्रशासन, हरियाणा राज्यपाल व् मुख्यमंत्री के जनसम्पर्क अधिकारी, अंतर्राष्ट्रीय स्वयं सेवी संस्था आई .पी .पी एफ. लन्दन के भारतीय प्रभाग (एफ.पी. ए.इंडिया) में विभिन्न वरिष्ठ पदों पर कार्य करते हुए संस्था के सर्वोच्च पद (महा सचिव ) से २००४ में अवकाश ग्रहण। दस वर्ष की आयु से लेखन। प्रथम कहानी ​1953 में प्रकाशित। ​1956 में साहित्य संस्था (हिंदी प्रचार सभा, सादर, मथुरा) की स्थापना, हस्तलिखित पत्रिका नव किरण से लेकर संस्था के मुखपत्र हिमप्रस् के अतिरिक्त ग्राम्या, माध्यम,पेन, जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं के साथ बीस पुस्तकों का सम्पादन- प्रकाशन, शोधपत्र. कहानियाँ, कविताएं, हाइकु, दोहे प्रतिष्ठित पत्र- पत्रिकाओं में प्रकाशित। प्रकाशित कृतियाँ : कविता संग्रह- एक चेहरा पच्चीस दरारें, दहशत के बीच, सौ बातों की बात (दोहा संग्रह), श्रीमद् भगवद् गीता की हिन्दी-अंग्रेजी में अर्थ सहित व्याख्या, रामचरित मानस के सुन्दर कांड पर शोध- प्रबंध (करी आए प्रभु काज)। सम्मान व पुरस्कार​ : महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा संत नामदेव पुरस्कार : 2014​ आदि। संपर्क: सम्पर्क : आर.एच-111,गोल्ड़माइन 138-145, सेक्टर -२१ ,नेरुल ,नवी मुम्बई –400706, मोब.09167148096, ई-मेल- manoharlal.sharma@hotmail.com

गूगल से साभार 
चलो धूप तो तेज है राह उगलती ज्वाल
कहीं मेघ की छतरियाँ लेंगी हमें सम्हाल

दुआ करो हँसती रहें ये कलियाँ नवजात
मधुप कोख में मिट रही अब जननी की जात

अजब शहर की जिंदगी दौड़ भाग अलगाव
उलटे लौटे गाँव तो ठन्डे मिले अलाव

धुले हुए कपडे टँगे मैलखोर रंगीन
उलट पुलट देखे जहाँ दाग मिले संगीन

कठपुतली ने देखिए किये खेल बेजोड़
नाच नाचने चल पड़ी धागे धागे तोड़

इक गुनाह हमने किया करते भूल कबूल
विटप रखाए आम के काटे खूब बबूल

दस मंजिल का टावरा खर्चें लाख करोड़
दस प्राणी दस फीट में सिमटे पाँव सिकोड़

ये सँकरी गलियाँ सहें सीलन के आघात
धूप कहाँ तुम ले गए ठिठुरे पड़े प्रभात

बाँध नहीं बंधन नहीँ गई कहाँ जल धार
नदियाँ बोलीं पी गया बोतल का बाज़ार

बामुश्किल ये घर बना हवादार आबाद
आप हिलाए जा रहे इस घर की बुनियाद

निकल पड़ीं हैं तितलियाँ थामें हाथ किताब
कल माँगेंगी बगवां पिछले सभी हिसाब

इस घर का हम क्या करें ताले जड़े हजार
हैं बहार के डाकिए गए लौट हर बार

Dr Manohar Abhay

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