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मंगलवार, 15 अक्तूबर 2019

साक्षात्कार : कुछ फ़िल्में मन और बुद्धि दोनों को पुष्ट करती हैं — अवनीश सिंह चौहान

अवनीश सिंह चौहान 

प्रतिलिपि डॉट कॉम के प्रतिनिधि से अवनीश सिंह चौहान की संक्षिप्त बातचीत   

जन्म : रविवार, 04 जून (1979)
निवास : वृन्दावन, मथुरा, उ.प्र. 

प्रश्न : आप अपने स्वभाव के बारे में बताएँ?

अवनीश सिंह चौहान : मन बड़ा चंचल होता है। कब क्या चाहने लगे, कहने लगे, कहना बहुत मुश्किल है। लिखना-पढ़ना और पढ़ाना मेरे स्वभाव में ढल गया है। लेकिन इसका मतलब यह कदापि नहीं कि जीवन की अन्य  महत्वपूर्ण चीजों ने स्वभाव में अपना आकार नहीं लिया।

प्रश्न : सेवानिवृत्ति के बाद कहाँ रहना पसंद करेंगे (गांव / शहर) और क्यों?

अवनीश सिंह चौहान : सेवानिवृत्ति के बाद जीवन कहाँ गुजरेगा, यह भी कहना मुश्किल है क्योंकि समय की गति गहन होती है।  श्रीमद् भगवत गीता में भी वर्तमान को जीने और उसी में रहने की बात कही गयी है। यहाँ आप कह सकती  हैं कि कुछ तो सोचा होगा मैंने। हाँ, सोचा है कि जहाँ भी रहेंगे शांति और आनंद से रहेंगे, अपने कर्तव्यों का  पालन करते हुए। और यह शांति एवं आनंद सबसे पहले मन का विषय होते हैं, बाद में इन्हें देश-काल,  परिस्थिति आदि से जोड़कर देखा जा सकता है। शायद इसीलिये मैंने अपने एक गीत में लिखा कि : 'एक  तिनका हम / हमारा क्या वज़न / हम पराश्रित वायु के / चंद पल हैं आयु के / एक पल अपना ज़मीं है / दूसरा  पल है गगन' (टुकड़ा कागज़ का)।' और यह जमीन और आसमान मुझे गाँव में भी भरपूर मिला और शहर में भी। मेरा मानना है कि जीवन का सौंदर्य गाँव एवं शहर के सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक सौंदर्य से भी अधिक विशिष्ट होता है, भले  ही उसकी इस विशिष्टता को गांव और शहर ही क्यों न पोषित करते हों।  

प्रश्न : हॉलीवुड अथवा बॉलीवुड में से कौन सी फिल्में देखना पसंद करते हैं, नयी अथवा पुरानी?

अवनीश सिंह चौहान : गीता में पढ़ा है कि बुद्धि मन से अधिक सूक्ष्म है या कहें बुद्धि मन से अधिक बलवान है। यानी दोनों का  अपना महत्व है। इसलिए पसंद और नापसंद का भाव मन और बुद्धि दोनों स्तर पर बनता है। इस दृष्टि से  जो फ़िल्में मन और बुद्धि दोनों को पुष्ट करती हैं, तृप्त और आह्लादित करती हैं, उन्हें देखना सदैव  अच्छा लगता है। फिल्म बॉलीवुड की हो या हॉलीबुड की, इससे बहुत फर्क नहीं पड़ता। फर्क तो नए-पुराने से  भी अधिक नहीं पड़ता, क्योंकि सभी फिल्मों के मुद्दे और उनको अभिव्यक्त करने का तरीका और  कालक्रम अलग-अलग होता है। उनको समझने के लिए आपको फिल्म में दर्शाये गए समय और समाज को  व्यवस्थित रूप से विश्लेषित करना होता है। हाँ, भारतीय पृष्ठभूमि में रचा-बसा होने से बॉलीवुड की  फिल्मों के प्रति आकर्षण अधिक रहता है। 

प्रश्न : एक वाक्य में पिता-पुत्री सम्बंध को परिभाषित करें?

अवनीश सिंह चौहान : '1942 ऐ लव स्टोरी' फिल्म के एक गीत की पंक्तियाँ याद आ रही हैं : 'कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो / क्या  कहना है, क्या सुनना है / मुझको पता है, तुमको पता है।'

प्रश्न : आपके विचार में क्या हर व्यक्ति के जीवन में किसी गुरु का होना अनिवार्य है, क्यों अथवा क्यों नहीं?

अवनीश सिंह चौहान : कहा तो यह जाता है कि मनुष्य जीवन बड़ी मुश्किल से मिलता है, इसलिए जीवन में सदगुरू का होना बहुत  जरूरी है। ज्योतिष भी गुरू ग्रह के मजबूत होने की बात जीवन में सफलताओं से जोड़कर करता है। पर  प्रश्न यह भी है कि किसके जीवन में? शिष्य के लिए सदगुरू का होना जितना जरूरी है, उतना ही गुरू के  लिए सदशिष्य का होना। इसलिए मेरे लिए 'हर व्यक्ति' को सद्शिष्य समझना संभव नहीं, अनिवार्यता का  तो प्रश्न ही नहीं उठता। 

प्रश्न : आपको साहित्य सृजन की प्रेरणा कहाँ से मिली?

अवनीश सिंह चौहान : मुझे लिखने की प्रेरणा अपनी माँ और बड़ी बहन से मिली। जब मैं एम ए का छात्र था तब वे मुझे पत्र लिखा  करती थीं। उनका जवाब लिखते-लिखते मेरे भीतर लेखन का संस्कार जागा। अकादमिक लेखन से मेरा जुड़ाव आदरणीया डॉ मणिक साम्बरे जी के माध्यम से बना। एम फिल करते वक्त। परिणामस्वरूप मेरी अंग्रेजी में आधा दर्जन से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। बाद में पैडी मार्टिन और मेरी शाइन ने  अंग्रेजी में कविता लिखने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरा हिन्दी में सम्पादन एवं गद्य लेखन प्रारम्भ कराने का श्रेय परम श्रद्धेय स्व दिनेश सिंह जी को जाता है। बाद में प्रिय अग्रज योगेंद्र वर्मा 'व्योम' जी ने गीत लिखने के लिए प्रेरित किया और आदरणीय रमाकांत जी ने नवगीत की समझ विकसित करने में बहुत बड़ा सहयोग दिया। अपनी सृजन-यात्रा में आदरणीय वीरेंद्र आस्तिक जी से गीत लिखने की कला सीखी। वेब दुनिया में अनिल जनविजय जी, पूर्णिमा वर्मन जी, जय प्रकाश मानस जी एवं रवि रतलामी जी से मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। आदरणीय शिवबहादुर सिंह भदौरिया जी, विमल जी, गुलाब सिंह जी, राम सेंगर जी, माहेश्वर तिवारी जी, नचिकेता जी, बुद्धिनाथ मिश्र जी, मयंक श्रीवास्तव जी, शचीन्द्र भटनागर जी, कुमार रवीन्द्र जी, निर्मल शुक्ल जी, महेश दिवाकर जी, सुधीर अरोड़ा जी, विनय भदौरिया जी, गंगा प्रसाद शर्मा 'गुणशेखर' जी, रामकिशोर दाहिया जी, जगदीश 'व्योम' जी, कुमार मुकुल जी, रणजीत पटेल जी, समीर श्रीवास्तव जी, सौरभ पाण्डेय जी, ब्रजेश नीरव जी, राधेश्याम बंधु जी, अवनीश त्रिपाठी जी एवं राहुल शिवाय जी से भी मुझे समय-समय पर स्नेह, सहयोग और आशीर्वाद मिलता रहा है। सच तो यह है कि यह सूची बहुत बड़ी है, सभी का नाम यहाँ जोड़ पाना संभव नहीं। बस, सभी अग्रजों-गुरुजनों को मन से नमन करना चाहूँगा। 

प्रश्न: आपका पसंदीदा परिवेश?

अवनीश सिंह चौहान : परिवेश बहुत व्यापक शब्द है, इसमें समय, समाज, बोली-बानी, भेष-भूषा, खान-पान, तीज-त्यौहार,  मान्यताएं, विश्वास आदि का समावेश होता है। यदि किसी स्थान विशेष को पसंद या नापसंद करना हो तो  इन सब को ध्यान में रखकर ही कुछ कहा जा सकता है। इसलिए मैं इतना ही कह सकता हूँ कि जहाँ  आपसी प्रेम, सद्भाव एवं सहयोग की भावना दिखाई पड़ती हो, वह स्थान अच्छा ही होगा। बाकी गुरूनानक  देव जी के शब्दों में कहूँ - 'नानक दुखिया सब संसारा, सुखिया सोई जो नाम अधारा।'  

प्रश्न : आपका पसंदीदा व्यंजन?

अवनीश सिंह चौहान : कबीर की खिचड़ी भाषा का जो आनंद है, वह भोजन में मुझे खिचड़ी खाने से मिलता है। 

प्रश्न : आपकी दृष्टि में साहित्य की परिभाषा क्या हो सकती है?

अवनीश सिंह चौहान : साहित्य की परिभाषाएँ बड़े-बड़े साहित्यकारों ने दी हैं। जितने साहित्यकार, उतनी परिभाषाएं। कुछ परिभाषाएं पढ़ी हैं, कई पढ़ना बाकी है। जब उन सभी को पढ़कर कुछ लिखने का मन बनेगा तब अवश्य बताऊंगा। 

प्रश्न : आपके जीवन में सबसे अधिक खुशी का पल कब आता है?

अवनीश सिंह चौहान : जीवन में सबसे अधिक खुशी का पल तब आता है जब आपको कोई पूरी तरह से समझ लेता है और आप किसी को पूरी तरह से समझ लेते हैं। और इस आपसी समझ के परिणामस्वरुप जो मनोभाव बनता है वह मेरे लिए उस समय का सर्वाधिक खुशी का पल होता है। 

प्रश्न : पाठकों को आपका संदेश?

अवनीश सिंह चौहान : सन्देश उसे दिया जाता है जो लेना चाहे, और जिसे सन्देश लेना होता है वह अपनी आवश्यकता और रूचि  के अनुसार ग्रहण कर लेता है। मेरा मानना है कि इस हेतु पाठकों को स्वतंत्र छोड़ देना चाहिए।

आपका बहुत-बहुत आभार

अवनीश सिंह चौहान : प्रतिलिपि की रचनात्मक सक्रियता के लिए पूरी टीम को साधुवाद। 



परिचय 

बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, बरेली के मानविकी एवं पत्रकारिता महाविद्यालय में आचार्य और प्राचार्य के पद पर कार्यरत कवि, आलोचक, अनुवादक डॉ अवनीश सिंह चौहान हिंदी भाषा एवं साहित्य की वेब पत्रिका— 'पूर्वाभास' और अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य की अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका— 'क्रिएशन एण्ड क्रिटिसिज्म' के संपादक हैं। 'शब्दायन', 'गीत वसुधा', 'सहयात्री समय के', 'समकालीन गीत कोश', 'नयी सदी के गीत', 'गीत प्रसंग' 'नयी सदी के नये गीत' आदि समवेत संकलनों में आपके नवगीत और मेरी शाइन द्वारा सम्पादित अंग्रेजी कविता संग्रह 'ए स्ट्रिंग ऑफ़ वर्ड्स' एवं डॉ चारुशील एवं डॉ बिनोद मिश्रा द्वारा सम्पादित अंग्रेजी कविताओं का संकलन 'एक्जाइल्ड अमंग नेटिव्स' में आपकी रचनाएं संकलित की जा चुकी हैं। पिछले पंद्रह वर्ष से आपकी आधा दर्जन से अधिक अंग्रेजी भाषा की पुस्तकें कई विश्वविद्यालयों में पढ़ी-पढाई जा रही हैं। आपका नवगीत संग्रह 'टुकड़ा कागज़ का' साहित्य समाज में बहुत चर्चित रहा है। आपने 'बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता' पुस्तक का संपादन किया है। 'वंदे ब्रज वसुंधरा' सूक्ति को आत्मसात कर जीवन जीने वाले ऐसे विलक्षण युवा रचनाकार को 'अंतर्राष्ट्रीय कविता कोश सम्मान', मिशीगन- अमेरिका से 'बुक ऑफ़ द ईयर अवार्ड', राष्ट्रीय समाचार पत्र 'राजस्थान पत्रिका' का 'सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार', अभिव्यक्ति विश्वम् (अभिव्यक्ति एवं अनुभूति वेब पत्रिकाएं) का 'नवांकुर पुरस्कार', उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान- लखनऊ का 'हरिवंशराय बच्चन युवा गीतकार सम्मान' आदि से अलंकृत किया जा चुका है।

Courtesy: Interview: Abnish Singh Chauhan in Conversation with the Representative of pratilipi.com https://hindi.pratilipi.com/author-interviews/a-short-interview-with-dr-abnish-singh-chauhan

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