पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

रविवार, 30 सितंबर 2012

अनुवाद-पत्रिका सद्भावना दर्पण


आपको यह जानकर ख़ुशी होगी कि बड़े भाई गिरीश पंकज जी ने अपनी अनुवाद-पत्रिका''सद्भावना दर्पण'' (http://sadbhawanadarpan.blogspot.com) को -१४ साल तक त्रैमासिक चलाने के बाद- अब मासिक कर दिया है. हर महीने निकालने का संकल्प है. यह संकल्प इसलिये भी किया है कि नेट के माध्यम से अनेक लेखक उनके परम मित्र-स्नेही और शुभचिंतक बन गए है. इनमे आपका भी नाम हो सकता है. पंकज जी चाहते हैं कि आपका रचनात्मक सहयोग उन्हें मिलता रहे. 

पंकज जी  कहते हैं- 

-मुझे भारतीय एवं विश्व साहित्य की रचनाओं के हिंदी अनुवाद चाहिए.
-लोक भाषाओँ में लिखी गई रचनाएँ भी चलेंगीं.
-हिंदीतर रचनाशीलता को हिंदी के माध्यम से सुधी पाठको तक पहुँचना मेरा उद्देश्य है. यह काम आपके सहयोग के बिना संभव नहीं. 
-हिन्दी की स्तरीय मौलिक रचनाओं का भी स्वागत है. 
-लेकिन मेरी पहली प्राथमिकता अनुवाद ही है. फिर भी आप स्वतंत्र रूप से अपनी महत्वपूर्ण रचनाये भी भेज सकते हैं. लेखिकाओं से भी अनुरोध है. सबके लिए यह मंच खुला है. कुछ अनुवादकों के पते मिल सकें तो फ़ौरन उपलब्ध कराये. ब्लॉगर मित्रों से अनुरोध है कि वे अपने पतें भेज दें, ताकि, उन्हें नमूने का एक अंक भेज दूं. 
-रचनाओं का पारिश्रमिक अभी संभव नहीं है, लेकिन लक्ष्य यही है, कि इसे मानदेय देने वाली पत्रिका बनाऊ. 
-आप अपनी रचनाएँ ईमेल (girishpankaj1@gmail.com) से भेज सकते हैं. रचनाएँ यूनीकोड में ही भेज दें, मै उसे ''चाणक्य'' फांट में बदल लूँगा.. 

आपके सहयोग की प्रतीक्षा में..इन पंक्तियों के साथ, कि आपकी शुभकामनाएँ साथ हैं

क्या हुआ गर कुछ बलाएँ साथ हैं 
इस अँधेरे को फतह कर लेंगे हम 
रौशनी की कुछ कथाएँ साथ है. 
हारने का अर्थ यह भी जानिए 
जीत की संभावनाएं साथ हैं 

- श्री गिरीश पंकज

Sadbhavana Darpan

4 टिप्‍पणियां:

  1. उसने मुझे चूमा और अब मैं कोई और हूं
    - ग्रॅब्रिएला मिस्त्राल
    उसने मुझे चूमा और
    अब मैं कोई और हूं
    धड़कनों में कोई और
    जो मेरी नसों में धड़कता है

    और वह सांसों में घुल-मिल जाती
    अब मेरी कोख उतनी ही उदात्त
    जितना मेरा हृदय

    और फूलों की सांसों में पाई जाती
    मेरी सां सें
    यह सब उसके कारण
    जो पलता कोख में मेरी
    जैसे कि
    घास पर ओस।

    अनुवाद- नरेंद्र जैन
    (पहल की पुस्तिका ‘पृथ्वी का बिंब’ से साभार)

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  2. videshi lekhko ki kavitaon mai vyiktik sarokar or anubhutiyo ki pradhanta hoti hai ,kiya hm hidi ki kavitaon ka anubad nahi kar sakte hai

    जवाब देंहटाएं
  3. Uttam Kumar (Hindi Translator)
    HR Deptt, MM Complex
    NLC Ltd
    Dr RP Road, Neyveli


    Pls send me a sample copy, Thanks
    Tamilnadu 607807

    जवाब देंहटाएं

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