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सोमवार, 26 दिसंबर 2011

मनोज जैन 'मधुर': नवगीत की जमीन पर ताजा गुलाब- वीरेंद्र आस्तिक

मनोज जैन 'मधुर की कृति “एक बूंद हम” का
लोकार्पण करते वरिष्ठ साहित्यकार

भोपाल (१३ नव. २०११): स्वराज भवन, भोपाल में रविवार की शाम एक नवगीत संग्रह “एक बूंद हम” का लोकार्पण किया गया | ‘शहद हुए एक बूँद हम’ इस संग्रह का पहला नवगीत है और इसी से इस कृति का यह शीर्षक लिया गया है। युवा गीतकार मनोज जैन मधुर का यह नवगीत संग्रह छंद, लय और भावों को बखूबी प्रस्तुत करता हैं | गीतकार मनोज जैन ने अपनी इस कृति में अपने चिंतन के जरिए समाज को जोड़ने की भरपूर कोशिश की हैं | 52 गीतों से सजी इस पुस्तक में जीवन के सामाजिक-सांस्कृतिक पहलुओं के साथ-साथ श्रृंगार, करुणा और दर्शन को भी समाहित किया गया हैं | कला मंदिर (भोपाल) के तत्वावधान में आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि वरिष्ठ आलोचक धनंजय वर्मा ने किया। 

कार्यक्रम में वरिष्ठ साहित्यकार दिवाकर वर्मा ने कहा- "मनोज जैन के इस संग्रह में सहेजे गए गीत युगबोध को अभिव्यंजित करते हैं।" वहीं कानपुर के वरिष्ठ नवगीतकार व समालोचक वीरेंद्र आस्तिक ने कहा- "मधुर अपने रचनात्मक स्तर पर एक कुशल समन्वयकार हैं, ऐसे में उन्हें नवगीत की जमीन का ताजा गुलाब कहा जाना गलत नहीं होगा। वरिष्ठ कवि मयंक श्रीवास्तव मानते हैं कि मनोज जैन मधुर युवा पीढी के एक सशक्त नवगीतकार हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए  वरिष्ठ साहित्यकार मुरारीलाल गुप्त 'गीतेश' ने कृति की सराहना करते हुए गीत-नवगीत के इतिहास पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर न्यायमूर्ति व प्रखर चिंतक आरडी शुक्ला, डॉ. रामवल्लभ आचार्य, शिवकुमार अर्चन, लक्ष्मीनारायण पयोधि, श्याम बिहारी सक्सेना, हुकुम पाल सिंह विकल, नरेन्द कुमार जैन, महेन्द्र कुमार जैन, महेश अग्रवाल, नवल जायसवाल एवं राघवेंद्र तिवारी सहित शहर के अन्य साहित्यकार एवं साहित्य-प्रेमी मौजूद रहे।

Ek Boond Ham by Manoj Jain Madhur

2 टिप्‍पणियां:

  1. प्रिय मनोज ने प्रवास प्र आने से पहले एक कार्यक्रम में अपनी पुस्तक के लोकार्पन के कार्यक्र्म में भाग लेने का अनुरोध करते समय ही मैनें उन्हें अपनी हार्दिक शुभकामनाएँ /बधाईदेकर अनुपस्थिति के लिए खेद व्यक्त किया था फिर भी जैसे उसकी कानमेन भनक पड़ी मैने भाई कमाल कांत के मध्यम
    से बधाई भिज़्बाई थी.प्रस्तुत समाचार को पढ़ कर म न गदगद हो गया :उन्हे कितनी ही बार गीत पढ़ते और तालियाँ बटोरते देखने का सौभाग्य मिला है.अतः मेरे कवि गुनगुनाया:
    सूरज नया उगा,गीत के गगन में
    त म कहाँ छिपेगा,गीत के चमन में
    पथ के अथ मे सज़ा धज़ा शिलालेख
    अजर अमर होगा ,मधुर के स्रज न में
    आपने लोकार्पण का समाचार भिज़्बाया आप को धन्यवाद न दूं एसा कैसे हो सकताहै.
    डाक्टर जयजयराम आनंद
    सैंट जॉन कनाडा

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  2. आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा मंच-741:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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