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मंगलवार, 1 मई 2012

किशन तिवारी और उनकी चार गज़लें — अवनीश सिंह चौहान

डॉ. किशन तिवारी

मूर्धन्य साहित्यकार त्रिलोचन शास्त्री जी ने डॉ किशन तिवारी जी के बारे में लिखा है कि "ग़ज़ल के रूप विधान में उनकी कविता हिन्दी भाषा को और समृद्ध बनाती है और उनके पाठक और शायद हिन्दी के निराश समीक्षक इन कविताओं को पढ़ते-पढ़ते पसंद करेंगे और भूलने से बचेंगे।" मुझे भी लगता है कि ग़ज़ल की भीड़ में डॉ किशन तिवारी की रचनाएँ अपनी विशिष्ट पहचान के साथ अलग खड़ी दिखाई देती हैं। तिवारी जी का जन्म १४ अक्टूबर १९४९ को भोपाल में हुआ। हिन्दी में पीएच.डी. के साथ मेकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के बाद आपने बी.एच. ई. एल., भोपाल को अपनी सेवायें दीं। वर्तमान में यहीं पर आप उप प्रबंधक के पद पर कार्यरत। आपकी प्रकाशित कृतियाँ- 'भूख से घबराकर', 'आपकी जेब में', 'सोचिये तो सही' आदि। रत्न भारती पुरस्कार, शब्दशिल्पी सम्मान और म.प्र. के महामहिम राज्यपाल द्वारा साहित्यकार सम्मान से सम्मानित। संपर्क- ३४ / सेक्टर ९- ए, साकेत नगर, भोपाल-४६२०२४। ई-मेल- kishan.young@gmail.com । 

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार
 १. कोई उत्तर नहीं मिलता

क्या हुआ वो अगर नहीं मिलता।
यूं भी मिलता है पर नहीं मिलता।।

रास्ते हैं जुदा, जुदा मंजिल।
बन के वो हम सफ़र नहीं मिलता।।

शब्द के अर्थ ही बदल ड़ाले।
वरना मुझको सिफ़र नहीं मिलता।।

दिल में जो है वही जुबाँ पर हो।
झूठ से ये हुनर नहीं मिलता।।

मैंने तुमसे कहा सुना तुमने।
कोई उत्तर मगर नहीं मिलता।।

२. सावधान

लो बिगुल बज गया सावधान।
मौसम चुनाव का सावधान।।

वादों की नर्म फुहारें हैं।
भीतर सब जलता सावधान।।

मारीच स्वर्ण मृग लुभा रहा।
हो जाना सीता सावधान।।

सपनों के सौदागर आये।
सूरज निकलेगा सावधान।।

इस जात-पात के चक्कर में।
अब तक जो खोया सावधान।।

सच इधर-उधर मत पूछा कर।
सच-सच मन कहता सावधान।।
.
३. इनमें ज़िन्दगी कम है

मेरी बस्ती के च़रागों में रोशनी कम है।
लोग ज़िन्दा हैं मगर इनमें ज़िन्दगी कम है।।

एक नलका है जिसपे भीड़ बहुत भारी है।
प्यास बस्ती में है इतनी कि इक नदी कम है।।

सबकी आँखों में कई स्वप्न झिलमिलाते हैं।
कुछ तो साकार हो चुके हैं पर अभी कम है।।

मैं अपने प्यार का इज़हार करूँ तो कैसे।
बस इतनी बात को कहने में ये सदी कम है।।

मैं खुद को आइने में देख के ड़र जाता हूँ।
ये है बदमाश बहुत इसमें सादगी कम है।।

चलो अच्छा हुआ तुम मिल गये कुछ बात करें।
लोग बस कहते हैं सुनने को वक्त भी कम है।।

४. तू जब भी गुज़र जाती है

मेरे नज़दीक से तू जब भी गुज़र जाती है।
यूँ लगा जैसे ये दुनिया ही ठहर जाती है।।

मैंनें रोका है नज़र को उधर नहीं देखूँ।
तू जिधर है, नज़र हर बार उधर जाती है।।

तेरी आँखों से तेरी हाँ का यकीं होता है।
जुबाँ को जाने क्या हुआ है कि ड़र जाती है।।

जाने क्या बात है महसूस यही होता है।
आजकल आजकल में उम्र गुज़र जाती है।।

आँख से आँख तक नज़रों का सफ़र लम्बा था।
एक पूरी सदी लम्हे में गुजर जाती है।।

अपने मोबाईल से नम्बर हटा दिया लेकिन।
तेरी तस्वीर निगाहों में उतर जाती है।।

Four Gazals of Dr. Kishan Tiwari

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बुधवारीय चर्चा-मंच पर |

    charchamanch.blogspot.com

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  2. बहुत-बहुत ही अच्छी भावपूर्ण रचनाये है......

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  3. बहुत बहुत शुक्रिया स्तरीय ग़ज़ल पढवाने का ,चर्चा में छाने का ,आपके आने का .
    बुधवार, 2 मई 2012
    " ईश्वर खो गया है " - टिप्पणियों पर प्रतिवेदन..!
    http://veerubhai1947.blogspot.in/
    लम्बी तान के ,सोना चर्बी खोना
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/05/blog-post_02.html

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  4. Vyaktigat, samaj,aur aur swabhivyakti ka sundar prastuti karan Dr. Kishan Tiwariji ki gajalon me ek santh dekhne ko milta he. Soe hue samaj ko jagane ki koshison ka panam nahi niklne ki abhivyakti to bahut hi sundar he, Apko inke prakashn aur Dr Tiwariji ko prastuti ke liye anek sadhuwad. Prakash Kanungo

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  5. Aapke dwaara likhi hui ghazal samaaj k liye ek ek sach ka swaroop darshaati hai.... Saath he saath isme bhawnaao ka bhi acha vishleshan hai... Aapke is saahittik safar k liye aapko lakh lakh badhaaiya...... Ankit Tiwari

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