पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

शुक्रवार, 18 अक्तूबर 2013

पत्रिका: दूरदर्शन द्वारा प्रकाशित ‘दृश्यांतर' का प्रवेशांक (अक्टूबर २०१३)


ब हमलोगों ने नया नया लिखना आरम्भ किया था यानी ८० से ९० के दशक में,तब धर्म युग, हिन्दुस्तान, सारिका निहारिका जैसी पत्रिकाए बडे घरानो द्वारा निकाली जाती थी। हम उन पत्रिकाओं मे अपनी रचनाए भेजते थे तो खेद है जैसे एक पत्र के साथ रचनाऎ वापस आ जाती थी। उसके बाद हमें पता चला कि कुछ छोटी पत्रिकाए भी निकलती है और उन्हें लेखक ही मंगा कर बेचते है। छोटी पत्रिकाओं मसलन उतरार्ध ,कलम, पहल, नया पथ, वसुधा आदि के साथ जुडने के बाद लेखकीय संस्कार बनते चले गए। इन पत्रिकाओं में तब गजब का संपादकीय दृष्टिकोण होता था।

पूरा पढने के बाद अपने भीतर बहुत कुछ नया जुडता था। पढ कर पत्र लिखते थे। पत्र भी छप जाता था तो खुशी होती थी। उसके समानान्तर पूर्वग्रह, साक्षात्कार, गगनांचल, समकालीन भारतीय साहित्य और इंद्रप्रस्त भारती जैसी कुछ सरकारी पत्रिकाऎ भी निकलती थी ।धीरे धीरे वे पत्रिकाए जो बडे घरानो द्वारा निकाली जाती थी, बन्द हो गई। साहित्यिक संगठनो द्वारा निकाली जाने वाली कुछ पत्रिकाए संकलन बन गई है और सरकारी पत्रिकाओं कोरम पूरा कर रही है।

इस नए दौर में एक नई सरकारी कोष से निकलने वाली पत्रिका का प्रवेशांक आया है। नाम है दॄष्यांतर। इसके संपादक है अजित राय। संपादकीय में अजीत राय ने लिखा है कि करीब एक साल पहले दूरदर्शन के महानिदेशक त्रिपुरारी शरण ने एक ऎसी पत्रिका की परिकल्पना की जिसमें हिन्दी के श्रेष्ट लेखन को छापा जा सके.साथ ही मिडिया की गतिविधियों का अन्वेषण और विश्लेषण किया जा सके। पत्रिका के प्रवेशांक ने मुझे निराश नहीं किया। पत्रिका कुल ९६ पृष्टों की है । इतने कम पॄष्टों में श्याम बेनेगल का त्रिपुरारी शरण द्वारा लिया गया साक्षात्कार, राम गोपाल बजाज पर देवेन्द्र राज अंकुर का संस्मरण, चन्द्र प्रकाश द्विवेदी का पिंजर से मुहल्ला अस्सी तक का अनुभव और असगर वजाहत का नाटक पाकिटमार रंगमंडल हमें नाटक और सिनेमा जगत से जोडता है तो राजेन्द्र यादव ,शिव मूर्ति, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी और विनोद भारद्वाज की रचनाऎ आश्वस्त करती है। मंजीत ठाकुर का रिपोर्ताज बुंदेल खंड डायरी –बूंद चली पाताल-पढ कर तो दहशत पैदा हो जाती है और पता चलता है कि औद्योगिक संसकृति ने किस तरह कृषि संसकृति को तबाह किया है। 

यह पत्रिका अपने कलेवर और तेवर से एक उम्मीद जगाती है , यह बना रहे इसके लिए अपने मित्र अजीत राय और त्रिपुरारी शरण को बहुत बहुत शुभकामनाऎ।

दृश्यांतर: सम्पादक: अजित राय, कार्यालय-दूरदर्शन महानिदेशक, कमरा नं. 1026, बी विंग, कोपरनिकस मार्ग, नई दिल्ली-110001) Ph. : 91-11-23097513, Email : drishyantardd@gmail.com

(निलय उपाध्याय की फेसबुक टाइमलाइन से साभार)

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