पूर्वाभास (www.poorvabhas.in) पर आपका हार्दिक स्वागत है। 11 अक्टूबर 2010 को वरद चतुर्थी/ ललित पंचमी की पावन तिथि पर साहित्य, कला एवं संस्कृति की पत्रिका— पूर्वाभास की यात्रा इंटरनेट पर प्रारम्भ हुई थी। 2012 में पूर्वाभास को मिशीगन-अमेरिका स्थित 'द थिंक क्लब' द्वारा 'बुक ऑफ़ द यीअर अवार्ड' प्रदान किया गया। इस हेतु सुधी पाठकों और साथी रचनाकारों का ह्रदय से आभार।

शनिवार, 22 अक्तूबर 2011

गुलाब सिंह और उनके दो नवगीत — अवनीश सिंह चौहान

गुलाब सिंह

कुम्भ नगरी के रूप में विश्वविख्यात और उत्तर भारत की तीन नदियों (गंगा, यमुना एवं सरस्वती) के संगम स्थल के लिए जाना जाने वाला इलाहाबाद (प्राचीन नाम प्रयाग) ने जहाँ देश को यशस्वी स्वतंत्रता सेनानी, प्रधानमंत्री, वैज्ञानिक, अभिनेता, प्रशासक, खिलाड़ी, शिक्षाविद, समाज सुधारक आदि दिए हैं, वहीं उत्तर प्रदेश की इस साहित्यिक राजधानी ने कई विशिष्ट साहित्यकार भी दिए हैं। इस जनपद में अपनी पहचान बनाने वाले आ. अकबर इलाहाबादी, अमरकांत, अरविंद कृष्ण मेहरोत्रा, चिंतामणि घोष, दूधनाथ सिंह, महादेवी वर्मा, महावीर प्रसाद द्विवेदी, रघुपति सहाय (फिराक़ गोरखपुरी), शमसुर रहमान फारूकी, सुमित्रनंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, हरिवंश राय बच्चन आदि साहित्यकारों-लेखकों की इस सूची में नवगीत विधा से गुलाब सिंह का नाम भी शामिल किया जा सकता है। 5 जनवरी 1940 को जनपद इलाहाबाद (उ.प्र.) के ग्राम बिगहनी में जन्मे जाने-माने कवि गुलाब सिंह के गीतों में भारतीय ग्राम अपने समय, समाज और संस्कृति के साथ स्पष्ट दिखाई पड़ता है। कहने का आशय यह कि आपकी रचनाओं में आधुनिक गांव-समाज की संगत एवं विसंगत छवियां देखने को तो मिलती ही हैं, आपके द्वारा गढे हुए अनूठे प्रतीकों-बिम्बों के चिन्तनपरक चित्रांकन एवं रागवेशित भावाभिव्यक्ति से मानवी संवाद भी स्थापित होता चलता है। देखने में सरल, विनम्र और सादगी पसन्द श्री गुलाब सिंह राजकीय इण्टर कालेज के प्रधानाचार्य के पद से सेवानिवृत्त होने के बाद स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। 1962 से देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में स्पेस पाने वाले इस महत्वपूर्ण रचनाकार द्वारा सृजित तीन नवगीत संग्रह- ‘धूल भरे पांव’, ‘बांस और बासुरी’, ‘जड़ों से जुड़े हुए’ आदि  और एक उपन्यास- 'पानी के फेरे ' अब तक प्रकाशित। साथ ही डॉ  शम्भुनाथ सिंह द्वारा सम्पादित 'नवगीत दशक ' और 'नवगीत अर्धशती' में भी आपके गीत संकलित किये गये हैं। संपर्क-  ग्रा. व  पो. - बिगहनी, जनपद- इलाहाबाद, उ.प्र.  मोब.-09936379937कई पुरस्कारों से सम्मानित इस गीत कवि के दो नवगीत यहाँ दिए जा रहे हैं:-

चित्र गूगल सर्च इंजन से साभार
1. हतप्रभ हैं शब्द 

शायद किसी मोड़ पर
ठहर जाए
थककर हाँफती
जिन्दगी लौट आए

पीपल के पत्तों तक का
हिलना बन्द है
इस कदर
मौसम निष्पंद है
हवाओं के झोंके
सिर्फ उठें श्मशानों से
भटक रही राख
खुली आँखों में पड़ जाए

मंचों पर नाच रही
कठपुतली
मिट्‌टी खाए मुँह में
डाले टेढ़ी अँगुली
छिः छिः आ आ
माँ बार बार दुहराए
बच्चा बस रो रोकर
मौन मुस्कराए

हतप्रभ हैं शब्द
दया करुणा संवेदना
सब कहते अपने को
दुनिया की आँखों से देखना
कौन सी दुनिया
यही जो मूल्यों के शस्य डाल-
खड़ी है दोनो हाथ
उन पर आए ।

2. गीतों का होना

गीत न होंगे
क्या गाओगे?

हँस-हँस रोते
रो-रो गाते
आँसू-हँसी
राग-ध्वनि-रंजित
हर पल को
संगीत बनाते
लय-विहीन
हो गए अगर
तो कैसे फिर
सम पर आओगे

तन में कण्ठ
कण्ठ में स्वर है
स्वर शब्दों की
तरल धार ले
देह नदी
हर साँस लहर है
धारा को अनुकूल
किए बिन
दिशाहीन बहते जाओगे

स्वर अनुभावन
भाव विभावन
ऋतु वैभव
विन्यास पाठ विधि
रचनाओं के
फागुन-सावन
मुक्त-प्रबंध
काव्य कौद्गाल से
धवल नवल
रचते जाओगे ।

Two Poems Of Varishth Navgeetkar Gulab Sing

4 टिप्‍पणियां:

आपकी प्रतिक्रियाएँ हमारा संबल: