युवा रचनाकार अशोक शर्मा का जन्म 2 फरवरी 1 9 8 3 को दनकौर, गौतमबुद्ध नगर, उ प्र में हुआ। शिक्षा: एम एससी (आई टी)। आपके दो उपन्यास- बी प्रेक्टीकल (अंग्रेजी) और राजपथ पर साधु (हिंदी) प्रकाशित हो चुके है। सम्प्रति: नॉएडा की एक सॉफ्टवेर कंपनी में कार्यरत। संपर्क: ए-38/6, अमर विहार, करावल नगर, दिल्ली-110094, मोब- 09971801807, ईमेल- aksharma0202@live.in
Art by Vishal Bhuwania |
रुई के इंसान
जल, वायु, अग्नि, प्रथ्वी और आकाश
इन पांच तत्वों से भगवान् ने इंसान को रचा है
लेकिन अपनी तासीर के हिसाब से इंसान
पारे , पीतल, लोहे, तांबे और रुई के हॊते है
पारे के इंसान वो है
जो अपने गुणों के बावजूद
जल, वायु, अग्नि, प्रथ्वी और आकाश
इन पांच तत्वों से भगवान् ने इंसान को रचा है
लेकिन अपनी तासीर के हिसाब से इंसान
पारे , पीतल, लोहे, तांबे और रुई के हॊते है
पारे के इंसान वो है
जो अपने गुणों के बावजूद
अपने को किसी भी रूप में ढाल लेते है
जिनका व्यक्तित्व भारीपन के बावजूद
जिनका व्यक्तित्व भारीपन के बावजूद
पानी सा सरल होता है
लेकिन अपनी सरलता को बनाये रखते हुए भी
लेकिन अपनी सरलता को बनाये रखते हुए भी
ये किसी के हाथ नहीं आते!
पीतल के इंसान वो है
जिनकी बाते वजनदार, इरादे मजबूत है
और जिनका व्यक्तित्व समाज में
पीतल के इंसान वो है
जिनकी बाते वजनदार, इरादे मजबूत है
और जिनका व्यक्तित्व समाज में
अपने आकर्षण की चमक बिखेरता है
लेकिन अपने आकर्षण के बावजूद
लेकिन अपने आकर्षण के बावजूद
ये सबको ग्रहण नहीं करते !
लोहे के इंसान वो है
जिनकी बाते वजनदार, इरादे मजबूत है
लेकिन उनके लिए किसी को आकर्षण नहीं है
अपनी सारी क्षमताओ के बावजूद
लोहे के इंसान वो है
जिनकी बाते वजनदार, इरादे मजबूत है
लेकिन उनके लिए किसी को आकर्षण नहीं है
अपनी सारी क्षमताओ के बावजूद
इन्हें अपने वजूद के लिए लड़ना पड़ता है!
ताम्बे के इंसान वो है
जिनकी बाते भली और गुणकारी है
लेकिन उनमें मजबूती नहीं है
मुश्किलों की ज़रा सी नमी
उनकी चमक को धुन्दला कर देती है
बचे हुए सब इंसान रुई के होते है
उनका ईमान-धर्म, वादे-इरादे
बचे हुए सब इंसान रुई के होते है
उनका ईमान-धर्म, वादे-इरादे
सब सुंदर लेकिन दिखावटी होते है
जरा सी
विरोध की हवा, मुश्किलों की आंच, दुःख की लहरे
उनका सब कुछ उड़ा, जला और बहा देती है!
इनका आकार कितना भी बड़ा क्यों ना हो
लेकिन ये कभी किसी के लिए
जरा सी
विरोध की हवा, मुश्किलों की आंच, दुःख की लहरे
उनका सब कुछ उड़ा, जला और बहा देती है!
इनका आकार कितना भी बड़ा क्यों ना हो
लेकिन ये कभी किसी के लिए
एक कदम का भी आधार नहीं बन सकते
इंसान तो वो है जिसका ईमान
इंसान तो वो है जिसका ईमान
पारे की तरह भारी हो
जिसकी बातें
जिसकी बातें
पीतल की ठोस और तांबे की तरह गुणकारी हो
व्यक्तित्व का आकर्षण भले ही लोहे की तरह कम हो
ना कि रुई की तरह हल्का, बनावटी और बाजारी हो !
इंसान के रुई का होने की शुरुवात घर से होती है
यहीं उसे व्यक्तित्व के भारी, ठोस, मजबूत, गुणकारी
या रुई का हॊने की शिक्षा मिलती है !
आज
घर से बाजार तक
सड़क से दरबार तक
हर तरफ "धुनी" लगी हुई है
और सब दिखावटी सुन्दरता का
प्रचार, प्रसार, व्यापार और व्यवहार कर रहे है !
घर की, समाज की,
व्यक्तित्व के विकास की
धातु को तपा पर कुंदन बनाने की
भट्टी कहीं नहीं दिखती !
रिश्ते, प्यार, आदर और व्यवहार को
रुई की तरह दिखावटी और हल्का कर देने के बाद
हम उनसे ठोस परिणाम की आशा कैसे कर सकते है
ठोस परिणाम तपती भट्टी से निकलते है
गीत गाती "धुनी" से नहीं!
"धुनी" से तो सिर्फ रुई की तरह
हल्का व्यक्तित्व,
हल्का विश्वास
और हलके रिश्ते ही
पनपेंगे !
A Hindi Poem of Ashok Sharma
व्यक्तित्व का आकर्षण भले ही लोहे की तरह कम हो
ना कि रुई की तरह हल्का, बनावटी और बाजारी हो !
इंसान के रुई का होने की शुरुवात घर से होती है
यहीं उसे व्यक्तित्व के भारी, ठोस, मजबूत, गुणकारी
या रुई का हॊने की शिक्षा मिलती है !
आज
घर से बाजार तक
सड़क से दरबार तक
हर तरफ "धुनी" लगी हुई है
और सब दिखावटी सुन्दरता का
प्रचार, प्रसार, व्यापार और व्यवहार कर रहे है !
घर की, समाज की,
व्यक्तित्व के विकास की
धातु को तपा पर कुंदन बनाने की
भट्टी कहीं नहीं दिखती !
रिश्ते, प्यार, आदर और व्यवहार को
रुई की तरह दिखावटी और हल्का कर देने के बाद
हम उनसे ठोस परिणाम की आशा कैसे कर सकते है
ठोस परिणाम तपती भट्टी से निकलते है
गीत गाती "धुनी" से नहीं!
"धुनी" से तो सिर्फ रुई की तरह
हल्का व्यक्तित्व,
हल्का विश्वास
और हलके रिश्ते ही
पनपेंगे !
A Hindi Poem of Ashok Sharma
बहुत ही सार गर्भित कविता । बधाई
जवाब देंहटाएंशिव प्रकाश जी धन्यवाद!
हटाएंअशोक शर्मा
भई, हम तो रुई के ही बने हैं। कविता हालाँकि हम जैसे लोगों की निन्दा करती है, फिर भी अच्छी है।
जवाब देंहटाएंजनविजय जी, रुई के इंसान होते हुए भी हमें खुद से ये वादा रखना चाहिए की हम हमेशा रुई के इंसान ही नहीं बने रहेंगे, समय पड़ने पर हम पारे, पीतल,ताम्बे या लोहे के इंसान बन कर परिस्थियों का सामना करेंगे!!!!
हटाएंधन्यवाद
अशोक शर्मा
अच्छी कविता है।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद पियूष!!!!!!!!!!!!
हटाएंअशोक सर बहुत बढ़िया....
जवाब देंहटाएंआप twitter क्यों नहीं join कर केते हैं.... अपनी बात को अच्छे तरह से सभी तक पहुंचा पाएंगे.....
मनोज सिंह
मनोज आप ही मेरी कविता को twitter पर promote कर दो!!!!
हटाएंअशोक शर्मा
अशोक शर्मा की रुई के इंसान ...वाह पूर्ण वैज्ञानिकता से भरपूर विवेचन ...विज्ञान के विद्यार्थी होने का भरपूर लाभ ...!!
जवाब देंहटाएंइंसान तो वो है जिसका ईमान
पारे की तरह भारी हो
जिसकी बातें
पीतल की ठोस और तांबे की तरह गुणकारी हो
व्यक्तित्व का आकर्षण भले ही लोहे की तरह कम हो
ना कि रुई की तरह हल्का, बनावटी और बाजारी हो !
ठोस परिणाम तपती भट्टी से निकलते है।।।।।।।।।।बहुत सुन्दर ......रचनकार को हार्दिक बधाई ...!!
प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद भावना जी!
हटाएंअशोक शर्मा