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शनिवार, 14 दिसंबर 2013

सरहद को स्वरांजलि कार्यक्रम आयोजित


इटानगर: गत 22-24 नवम्बर 2013 को अरुणाचल की राजधानी इटानगर के इंदिरा गांधी पार्क में संस्कार भारती के तत्वावधान में त्रिदिवसीय 'सरहद को स्वरांजलि‘ कार्यक्रम आयोजित हुआ जिसमें 1962 के युद्ध में शहीद जवानों को इन गीतों के माध्यम से श्रद्धांजलि दी गई।

22 नवम्बर को उद्घाटन अवसर पर अरुणाचल के शहरी विकास मंत्री श्री राजेश ताचो जी, इटानगर निगम परिषद के उपाध्यक्ष श्री किपा बाबू, औद्योगिक विकास विभाग में सचिव श्री सुरेन्द्र गंगोत्रा जी सहित कई विशिष्ट अतिथियों की उपस्थिति में आठों राज्यों से जिला एवं राज्य स्तर पर हुई ’ए मेरे वतन के लोगों..‘ गीत प्रतियोगिता से चुनकर आये 23 प्रतिभागियों के मध्य पूर्वोत्तर स्तरीय गीत स्पर्धा हुई, जिसमें असम की श्रुति बुजरबरुआ प्रथम और मीनाक्षी देवी द्वितीय तथा मणिपुर के मार्टिन को तृत्तीय स्थान प्राप्त हुआ। बालिवुड से दिलीप शुक्ला सहित, हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायक पंडित नागराज हवलदार, शहनाई वादक उस्ताद सोहेल अहमद खाँ साहब तथा पंडित निलय दत्त इस प्रतियोगिता में निर्णायक थे। अपने उद्बोधन में श्री राजेश ताचो जी ने श्रोताओं को वह वक्त याद दिलाया जब यह गीत हर भारतीय के दिल की धड़कन और देशभक्ति का स्त्रोत बन गया था।

दूसरे दिन, 23 नवम्बर को, इस महोत्सव के 24 घंटे व्यापी सुर-ताल-लय से सजे सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारंभ पूर्वोत्तर की सभी जनजातीयों (अरूणाचल से आपातानी, आदी, गालो, निशि, असम से बोड़ो, राभा, असमिया, कछारी, मणिपुर से मैतेयी, मेघालय से सेन खासी (बूवाइयिंग), नागालैंड से नागा, मिजोरम से मिजो, सिक्किम से नेपाली और त्रिपुरा से रियांग समुदाय) की विभिन्न पूजा पद्धतियों द्वारा किये गये ’देव आवाहन्‘ से हुआ, जिसमें देशभर से आये प्रसिद्ध कलाकारों ने अपनी प्रस्तुतियों से शहीदों के परिवारों को दिये जाने वाले सुश्री लता मंगेशकर द्वारा हस्ताक्षरित स्मृति चिन्हों और रक्षासूत्रों सहित 1857 के शहीदों के जन्मस्थान और कर्मस्थान बिठूर में हुये ’नमन 1857‘ की अभिसिंचित माटी और अरूणाचल के सीमांत गावों की मिट्टी को अभिशिक्त किया। इनमे, ध्रुपद गायक डागर बंधु उस्ताद नफीसुद्दीन खाँ और उस्ताद अनीसुद्दीन खाँ, अंतर्राश्ट्रीय ख्याति प्राप्त चित्रकार श्री वासुदेव कामथ, हिंदुस्थानी षास्त्रीय संगीत गायक पंडित नागराज हवलदार, बांसुरी वादक पंडित चेतन जोशी, तबला वादक पंडित श्री निलय दत्त, नृत्य प्रशिक्षक तथा गायक श्री देलोंग पादुंग, श्रीमती रंजूमोनी सैकिया, थांग-टा गुरू- गुरूमयूम गौरकिशोर शर्मा, सहित पूर्वात्तर के आठों राज्यों से आये हजारों कलाकार मंच की शोभा थे।

अरुणाचल के संस्कृति मंत्री श्री सेतोंग सेना ने इन कलाकारों का स्वागत किया और कहा कि 1962 का भारत-चीन युद्ध सिर्फ अरुणाचल के लिये ही नहीं पूरे भारत के लिये एक महत्तपूर्ण मोड़ था, अपने शहीदों से प्रेरणा लेते हुये अपनी मातृभूति के प्रति हम अपने कर्तव्य का निर्वाह करें। 24 घंटे व्यापी यह कार्यक्रम 23 नवम्बर को 5.41 प्रातः सूर्योदय से प्रारंभ होकर, 24 नवम्बर को 5.42 प्रातः सूर्योदय पर अरूणाचल के इष्टदेव डोनी-पोलो की पूजा से सम्पन्न हुआ।

24 नवम्बर 2013, इस त्रिदिवसीय महोत्सव का समापन दिवस था। प्रातः 10:00 बजे, इटानगर के इंदिरा गांधी पार्क में लोग उन वीरों की माताओं का दर्शन करने उपस्थित थे, जो मातृ-भू रक्षार्थ शहीद हो गये थे। 1962 में 72 घण्टों तक चीन की सेना को रोके रखने वाले, जसवंत गढ़ के बाबा के रूप में पूजे जाने वाले, 20 साल की उम्र में शहीद हुये, महावीर चक्र जसवंत सिंह रावत की 92 वर्षीया माता श्रीमती लीला देवी इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि थीं, जो परिवार के उत्तराखण्ड से पधारीं। इनके साथ कीर्ति चक्र शहीद एन. के. तापे याजो और शहीद पातेय तासुक की माता तथा शहीद तागोम तासुक के भाई ने कार्यक्रम में उपस्थित हजारों दर्शकों के साथ शहीदों को श्रद्धांजलि दी। महाभारत में पितामह और बच्चों के चहेते शक्तिमान श्री मुकेश खन्ना (मुम्बई) तथा अरुणाचल के माननीय मुख्यमंत्री श्री नाबम तुकी सहित हिगियो अरूनी (मुख्य पार्षद, इटानगर), श्री किपा बाबू (उप-मुख्य पार्षद, इटानगर), स्वामी विश्वेशानंद (रामकृश्ण मिशन), श्री टोनी कोयू (साहित्यकार), श्री नाबुम अतुम (उपाध्यक्ष, पूर्वात्तर जनजाति फोरम), श्री ताबा हारे (सामाजिक कार्यकर्ता), पद्मश्री बिनि यांगा (सामाजिक कार्यकर्ता), श्री जोम्न्या सिराम (गायक), रेरिक कारले रिगबक (गायक), श्री ज्ञाती राणा (सचिव, आपातानी परिशद), मणिपुर से पद्म श्री गुरूमयूम गौरकिशोर शर्मा, असम से श्री प्रांजल सैकिया (अभिनेता), श्री मुनिन बोरा (शास्त्रीय गायक), श्री वीरेन बरूआ, सेवानिवृत्त ले. जन. श्री वी. एम. पाटिल (पुणे), श्री इन्द्रेष कुमार (हिमालय परिवार), श्री दिनेश चन्द्र (विहिप), श्री राकेश कुमार (सीमा जागरण मंच), श्री विजय कुमार (पूर्व सैनिक परिषद), श्री विमल लाठ (कोलकाता), श्री वासुदेव कामथ (मुम्बई) समेत कई विशिष्ट अतिथि शहीदों को नमन करने, मंच पर मौजूद थे।

पासीघाट के कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय से आये 450 छात्रों द्वारा नृत्य की भावुक प्रस्तुति, 1962 की संवेदनाओं को जीवंत कर गई और इसके बाद हजारों कंठों से सामूहिक गाया गया ’ए मेरे वतन के लोगों‘ गीत फिर से हमें उस दर्द की टीस से निकालकर गर्व के भावों से भर गया।
स्कूलों से आये हजारों बच्चों के शक्तिमान और पितामह भीषम के रूप में सभी दर्शकों को सम्बोधित करते हुये श्री मुकेश खन्ना ने कहा कि देश की सीमाओं की रक्षा का दायित्च हर नागरिक का है। अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, श्री नाबम तुकी ने मातृभूमि सेवा में अपना जीवन बलिदान करने वाले शहीदों के प्रति अपनी भावनायें व्यक्त कीं और इस प्रकार का शहीदों की स्मृति में आयोजित अनूठा कार्यक्रम अरुणाचल की धरती पर सम्पन्न हुआ, इसके लिये संस्कार भारती को धन्यवाद दिया। 

इस अवसर पर मा. मुख्यमंत्री ने सभी वीर शहीदों की स्मृति में इटानगर में ’शहीद स्मारक‘ बनवाने की घोषणा की और उल्लेखनीय है कि कार्यक्रम के 5 दिनों बाद ही अरुणाचल प्रदेश मंत्रिपरिषद ने ’शहीद स्मारक‘ के प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी। समापन दिवस की संध्या पर बाबा मौर्य द्वारा ’भारतमाता की आरती‘ से यह कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।

सरहद को स्वरांजलि कार्यक्रम में शामिल नहीं हो पाये शहीदों के परिवारों को 3 दिसम्बर 2013 को अरूणाचल के नाहरलगुन में आयोजित ’शहादत को सम्मान‘ कार्यक्रम में सम्मानित किया गया।
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हिमालय की गोद में बसा, भारत के पूर्वोत्तर का सीमांत प्रदेश, कुल जनसंख्या लगभग 14 लाख, प्रतिवर्ग कि.मी. में औसतन 17 लोगों की रिहायिश, छोटी और खस्ता सड़कें, अव्यवस्थित यातायात, सभी चीजों के आसमान छूते दाम और कुछ उपद्रवी तत्वों द्वारा फैलायी जा रही अशांति से जूझता अरुणाचल। जहां सुशासन पर नेताओं की स्वसेवा और जनता की उपेक्षा हावी है; जहां पढ़ाई और आजीविका के उत्तम अवसर न होने से लोग विशेषकर युवा बेबसी का जीवन जीकर गलत राह चुनने को मजबूर हुये जाते हैं और ये सिलसिला चला आ रहा है। आजादी के बाद, ’नीच चीन‘ के 1962 के छल ने भी सरकार को गंभीर नहीं किया है, जिसका परिणाम है कि ड्रैगन आज भी अरुण को निगलने को तत्पर है। लेकिन हर बार युद्ध या हथियारों से ही सफलता संभव हो, ऐसा नहीं है। इस पर डॉ एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा है - ’मेरा दृढ़ विश्वास है कि संगीत और नृत्य इसमें प्रभावशाली औजार साबित हो सकते हैं।‘

1962 में चीन ने भारत पर आक्रमण किया, जिसमें भारत के 3105 जवान शहीद हुये थे। इसी समय भारत को पराजय बोध और अवसाद से निकालकर देशभक्ति और शौर्य के भावों से भर देने वाला स्वर्गीय कवि प्रदीप का लिखा और स्वर्गीय श्री सी. रामचन्द्र के संगीत में सजा गीत - ’ए मेरे वतन के लोगों‘, सुर साम्राज्ञी भारतरत्न लता मंगेषकर ने 27 जनवरी 1963 को पहली बार गाया था और चीन, 1962 की लड़ाई में हथियारों से जीतकर भी, इस गीत की तासीर से हार गया था।

इस के पूर्व, युद्ध के पश्चात सुधाकंठ डॉ भूपेन हजारिका असम से पत्रकार के रूप में तवांग पहुँचे, लेकिन युद्ध में हुई तबाही को देखकर विह्वल मन से बोमडिला लौटे और 16 दिसम्बर, 1962 को गीत ’कतो जोवानोर मृत्यु होल‘(असमिया में) लिखा। यह वर्ष इन दोनों गीतों का अर्धशताब्दी वर्ष है।.………………………… 

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