प्रयागराज। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की स्मृति में हिन्दुस्तानी एकेडेमी में कवि-दिवस का आयोजन गरिमामय ढंग से किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत राष्ट्रकवि के चित्र पर माल्यार्पण से हुई। इसके उपरांत सम्मानित कवियों का स्वागत शॉल, पुष्पगुच्छ एवं प्रतीक-चिह्न प्रदान कर एकेडेमी के सचिव डॉ. अजीत कुमार सिंह और कोषाध्यक्ष पायल सिंह ने किया।
स्वागत भाषण में डॉ. अजीत कुमार सिंह ने बताया कि 1987 में, राष्ट्रकवि की जन्मशताब्दी वर्ष पर, एकेडेमी ने उनके जन्म दिवस 3 अगस्त को ‘कवि-दिवस’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया। उसी वर्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने 26 अप्रैल को घोषणा की कि प्रतिवर्ष 3 अगस्त को कवि-दिवस मनाया जाएगा। तभी से यह परंपरा निरंतर जारी है।
कवि सम्मेलन की अध्यक्षता वरिष्ठ कवि वीरेंद्र आस्तिक (कानपुर) ने की और संचालन डॉ. श्लेष गौतम ने किया। सम्मेलन में डॉ. प्रकाश खेतान, डॉ. विजयानंद, शैलेन्द्र, डॉ. रेखा शेखावत, डॉ. विनम्रसेन सिंह, जितेन्द्र ‘जलज’, शिवम् भगवती और कुमार विकास सहित अनेक कवियों ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। कवियों ने कविता के सभी रसों का संगम प्रस्तुत किया और समाज की विसंगतियों पर तीखा प्रहार भी किया। सामाजिक सरोकारों से जुड़ी विविध रंगों की रचनाओं ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
रचनाकारों की पंक्तियाँ:
हम जमीन पर ही रहते है
अम्बर पास चला आता है
अपनी बातचीत रामायन
अपने काम-धाम वृन्दावन
दो कौड़ी का लगा सभी कुछ
जब-जब रूठ गया अपनापन
हम तो खाली मंदिर भर है
ईश्वर पास चला आता है
,— वीरेंद्र आस्तिक
ऐ सावन दिन रात तू, बरस चुका है खूब
अब विनती थम जा यहीं, लोग रहे हैं डूब
— डॉ. श्लेष गौतम
पानी के रंग मे घुले, बूंदो के बान चले
धूप कुछ ढीली हुई दिन भी कुछ भीग
लाल तावे सा भा सूरज रंग कुछ पीला हुआ
घिर गये बादल घनरे, खेतों में धान पले
— जितेन्द्र ‘जलज’
प्रेम का अधिकार माँगा,
तुमसे केवल प्यार मांगा,
लुट गए हैं इस जनम में,
इसलिए हर बार मांगा।
— शिवम् भगवती
जिन्दगी के रास्ते पर जब सफर करना जरूरी है,
लोग कहते हैं करो मत पर, अब तो डरना भी जरूरी है।
हैं बहुत नकली यहाँ रिश्ते, इसलिए ये याद रखना तुम,
हो कोई कितना भी नज़दीकी, पर उचित दूरी जरूरी है।
— डॉ. विनम्रसेन सिंह
जिंदगी जैसे कोई थियेटर और अदने से किरदार हम हैं
सारी दुनिया हमें पढ़ रही है, इक अधूरे से अख़बार हम हैं
— कुमार विकास
अपनी अनकही गीतों में गाती, दिनभर की थकान को
चंद लम्हों में भुलाती, घर की चक्की में पिसते-पिसते
खुद में ही रिसते-रिसते, प्रेम की तिलांजलि
साड़ी तक साबन बिताती औरतें
— डॉ. रेखा शेखावत
मकरन्द बना करती कविता, जय हिन्द बना करती निर्भय
वन्देमातरम हुआ करती कविता, भारत माता की जय
— डॉ. विजयानंद
हाँ, मैंने आवाज दी थी
पर रोका नहीं था
तुम मुड़कर देखोगे
पर सोचा न था
— शैलेन्द्र
पड़ गये पांव में छाले पे छाले
भरी दोपहरी में
जमीन, उम्र, दौलत सब गँवा दो
कचहरी में
— डॉ. प्रकाश खेतान
कार्यक्रम के अंत में कोषाध्यक्ष पायल सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह, संजय पुरुषार्थी, वजीर खान, रघुनाथ द्विवेदी, मनोज गुप्ता, डॉ. संजय कुमार सिंह, डॉ. प्रतिमा सिंह, नज़र इलाहाबादी, एम.एस. खान सहित कई शोधार्थी एवं शहर के अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
वंदे ब्रज वसुंधरा' सूक्ति को आत्मसात कर जीवन जीने वाले वृंदावनवासी डॉ अवनीश सिंह चौहान (जन्म 4 जून, 1979) का नाम वेब पर हिंदी नवगीत की स्थापना करने वालों में शुमार है। वर्तमान में वे बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, बरेली के मानविकी एवं पत्रकारिता महाविद्यालय में प्रोफेसर और प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं।
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