23 अगस्त 2025
"आज शनिवार का कार्यक्रम : किसी भी वर्तमान नवगीतकार का एक या दो नवगीत और उसका जीवन परिचय साहित्यिक उपलब्धियों के साथ। संयोजक के निवेदन पर किसी भी नवगीतकार द्वारा रखा हुआ और उस पर सौम्य निष्पक्ष परिचर्चा।" — नवगीत कुटुंब (वॉट्सऐप ग्रुप)
अवनीश सिंह चौहान
जन्मतिथि : 4 जून, 1979
पिता : श्री प्रहलाद सिंह चौहान
माता : श्रीमती उमा चौहान
पत्नी : नीरज चौहान
शिक्षा : देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर (म.प्र.) से अंग्रेजी में एम.फिल., पीएच-डी. व डी.लिट. (मानद उपाधि)
प्रकाशित कृतियाँ : अंग्रेजी में— ‘स्वामी विवेकानन्द : सिलेक्ट स्पीचेज’, 2004 (द्वितीय सं. 2012), ‘विलियम शेक्सपियर : किंग लियर’, 2005 (आईएसबीएन सं. 2016), ‘स्पीचेज ऑफ स्वामी विवेकानन्द एण्ड सुभाषचन्द्र बोस : ए कॅम्परेटिव स्टडी’, 2006, ‘फंक्शनल स्किल्स इन लैंग्वेज एण्ड लिट्रेचर’, 2007, ‘फंक्शनल इंग्लिश’, 2012, ‘राइटिंग स्किल्स’, 2012, ‘द फिक्शनल वर्ल्ड ऑफ अरुण जोशी : पैराडाइम शिफ्ट इन वैल्यूज’, 2016
पद्यानुवाद : ‘बर्न्स विदिन’ (हिंदी कविताओं का अंग्रेजी में अनुवाद), 2015
नवगीत संग्रह : ‘टुकड़ा कागज का’ (तीन संस्करण : 2013, 2014, 2024), ‘एक अकेला पहिया’, 2024
कविता संग्रह : 'टेल मी प्लीज' (2025)
संपादित कृतियाँ : अंग्रेजी में— ‘इंडियन पोएट्री इन इंग्लिश— पेट्रिकोर : ए क्रिटीक ऑफ सीएल खत्री'ज पोएट्री’, 2020 (सह-सं)। हिंदी में— ‘बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता’, 2013, 'नवगीत वाङ्मय', 2021 (सं)
साक्षात्कार संग्रह : ‘नवगीत : संवादों के सारांश’ (साक्षात्कार संग्रह), 2023
विशेष : 'समकालीन नवगीत संचयन'— भाग 1, साहित्य अकादमी, नई दिल्ली, 2023 में रचनाएँ संकलित
संपादन: 'पूर्वाभास' (www.poorvabhas.in) तथा 'क्रिएशन एण्ड क्रिटिसिज्म' (www.creationandcriticism.com)
सम्मान : 'प्रथम कविता कोश सम्मान', 2011, 'बुक ऑफ द ईयर अवार्ड— 2011', 2012, 'सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार', 2013, 'नवांकुर पुरस्कार', 2014, 'हरिवंशराय बच्चन युवा गीतकार सम्मान', 2014, 'साहित्य गौरव सम्मान', 2015, 'दिनेश सिंह स्मृति सम्मान', 2018 आदि से अलंकृत
सम्प्रति : आचार्य व अध्यक्ष, अंग्रेजी विभाग तथा प्राचार्य, बीआईयू कॉलेज ऑफ ह्यूमनिटीज एण्ड जर्नलिज्म, बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, बरेली (उ.प्र.), ईमेल— abnishsinghchauhan@gmail.com, व्हाट्सएप्प— +91-9456011560
(1) असंभव है
चौतरफा
जीवन ही जीवन
कविता मरे
असंभव है
अर्थ अभी
घर का जीवित है
माँ, बापू, भाई-बहनों से
चिड़िया ने भी
नीड़ बसाया
बड़े जतन से, कुछ तिनकों से
मुनिया की पायल
बाजे छन-छन
कविता मरे
असंभव है
गंगा में
धारा पानी की
खेतों में चूनर धानी की
नये अन्न की
नई खुशी में
बसी महक है गुड़धानी की
शिशु किलकन है
बछड़े की रंभन
कविता मरे
असंभव है।
(2) सर्वोत्तम उद्योग
छार-छार हो
पर्वत दुख का
ऐसा बने सुयोग
गलाकाट इस 'कंप्टीशन’ में
मुश्किल सर्वप्रथम आ जाना
शिखर पा गए किसी तरह तो
मुश्किल है उस पर टिक पाना
सफल हुए हैं
इस युग में जो
ऊँचा उनका योग
बड़ी-बड़ी ‘गाला’ महफिल में
कितनी हों भोगों की बातें
और कहीं टपरे के नीचे
सिकुड़ी हैं मन मारे आँतें
कोई हाथ
साधता चाकू
कोई साधे जोग
भइया मेरा बता रहा था
कोचिंग भी है कला अनूठी
नाउम्मीदी की धरती पर
उगती है कॅरिअर की बूटी
सफल बनाने का
असफल को
सर्वोत्तम उद्योग।
(3) बाज़ार समन्दर
चेहरे पढ़ो
कि सबके सब हैं
अविश्वास के अक्षर
थर्मामीटर तोड़ रहा है
उबल-उबल कर पारा
लेबल मीठे जल का
लेकिन पानी लगता खारा
समय उस्तरा है जिसको
अब चला रहे हैं बन्दर
चीलगाह जैसा है मंजर
लगती भीड़ मवेशी
किसकी कब थम जाएँ साँसें
कब पड़ जाए पेशी
कितने ही घर डूब गए हैं
यह बाज़ार समन्दर
त्यागी है हंसों ने कंठी
बगुलों ने है पहनी
बागवान की नज़रों से है
डरी-डरी-सी टहनी
दिखे छुरी को सेंदुर-जैसा
सूरज एक चुकंदर।
सौजन्य से : शिवानन्द सिंह 'सहयोगी', वाराणसी
नवगीत कुटुंब : समर्थ आलोचकों की प्रतिक्रियाएँ
(1)
आज पटल पर अवनीश सिंह चौहान जी के तीन नवगीत पढ़े। बहुमुखी प्रतिभा के धनी अवनीश जी नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर हैं।
पहला नवगीत "असम्भव" एक आशावादी रचना है। जब तक संसार में कोमल भावनाएँ विद्यमान हैं और उन्हें उद्वेलित करने वाले कारण उपस्थित हैं, तब तक कविता मुखरित होती रहेगी।
दूसरा नवगीत स्पष्टतः वर्तमान की गला-काट स्पर्धा की ओर संकेत करता है, जहाँ प्रतिभाएँ पददलित हो रही हैं। सामाजिक-आर्थिक विषमताएँ पीड़ादायक हैं।
बाज़ारवाद और बढ़ता दिखावा असली-नकली की पहचान करना कठिन बना रहे हैं।
तीनों नवगीत समाज की दुखती रग पर कोमलता से हाथ रखते हैं। अच्छे नवगीतों के लिए अवनीश जी को बधाई और इन गीतों से रूबरू कराने के लिए सहयोगी जी को साधुवाद।
— मधु प्रधान, कानपुर
(2)
श्री अवनीश सिंह चौहान जी एक बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी एवं प्रतिभासंपन्न रचनाकार हैं। इनके तीनों ही गीत जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूते हैं और पाठकों को आकर्षित करते हैं। भाई अवनीश जी को हार्दिक बधाई। पटल पर इन्हें प्रस्तुत कर हमसे रूबरू कराने के लिए आदरणीय श्री सहयोगी जी को भी बहुत-बहुत साधुवाद।
— विजय सिंह, प्रयागराज
(3)
अवनीश सिंह चौहान समकालीन हिंदी साहित्य के एक बहु-आयामी रचनाकार हैं, जिनका कार्यक्षेत्र कविता, आलोचना, संपादन, अनुवाद और शिक्षण तक फैला है। उनकी विद्वत्ता अंग्रेजी साहित्य में एम.फिल. और पीएच.डी. के स्तर तक विकसित है, वहीं उनकी रचनात्मकता नवगीत, समालोचना और भाषा के व्यावहारिक प्रयोगों में स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। अवनीश जी की रचनाओं में परंपरा और आधुनिकता का सुंदर समन्वय दिखाई देता है।
असंभव है : यह नवगीत जीवन की जिजीविषा, संवेदना और आशावाद का सशक्त उद्घोष है। गीत का केन्द्रीय कथ्य यह है कि जब तक जीवन की सहज प्रवृत्तियाँ— ममता, श्रम, सृजन, परिवार, प्रकृति और प्रेम, अविरल प्रवाहित हैं, तब तक कविता (अर्थात् संवेदना) का मरना असंभव है।
सर्वोत्तम उद्योग : यह गीत समकालीन प्रतिस्पर्धात्मक समाज की विडंबनाओं को उजागर करता है। यहाँ ‘कोचिंग’ और ‘कॅरिअर’ जैसे शब्दों से स्पष्ट है कि यह गीत आज की शिक्षा व्यवस्था, बेरोजगारी और युवाओं की संघर्षशीलता पर केंद्रित है।
बाज़ार समन्दर : यह नवगीत आधुनिक बाजारवादी संस्कृति की आलोचना करता है, जहाँ हर मूल्य बिकाऊ है और सत्य व विश्वास का ह्रास हो चुका है। यह गीत उपभोक्तावादी व्यवस्था की अमानवीयता को प्रतीकात्मक भाषा में उद्घाटित करता है।
समग्र रूप से अवनीश सिंह चौहान के ये तीनों गीत आधुनिक हिंदी गीत कविता की गहनता, बहुआयामिता और सामाजिक चेतना को दर्शाते हैं। वे एक ओर जीवन की संवेदना और सौंदर्य को बचाए रखने की जिद में हैं ("असंभव है") और दूसरी ओर वे सामाजिक विडंबनाओं से भी मुँह नहीं मोड़ते ("सर्वोत्तम उद्योग", "बाज़ार समन्दर" जैसे गीतों में)।
अवनीश जी को हार्दिक बधाई। साझा करने के लिए आदरणीय सहयोगी जी का बहुत-बहुत धन्यवाद।
— अशोक शर्मा 'कटेठिया', जयपुर
(4)
अवनीश जी के तीनों गीत सहज कवि-कर्म के जीवन-सन्दर्भ से जुड़े हुए हैं। ऐसा लगता है मानो कवि ने बात-बात में गीत लिख लिए हों। इनमें कहीं भी केवल शब्द-लाघव या अर्थ-विलास की कृत्रिम क्रीड़ा नहीं है; सब कुछ कवि के जीवनानुभव में रचा-पका हुआ है।
अवनीश जी को हार्दिक बधाई! फलक पर इन्हें प्रस्तुत करने के लिए आदरणीय सहयोगी जी प्रशंसा के पात्र हैं।
— उदयशंकर सिंह 'उदय', मुजफ्फरपुर
(5)
अवनीश सिंह चौहान जी प्रसिद्ध नवगीतकार, साहित्यकार और विभिन्न अकादमिक क्षेत्रों के विद्वान हैं। आज पटल पर आपकी रचनाओं को देखकर और पढ़कर अत्यंत सुखद अनुभव हुआ। प्रस्तुत नवगीत प्रेरक एवं हृदयस्पर्शी हैं।
अवनीश जी का हार्दिक अभिनंदन। पटल पर इनका प्रस्तुतीकरण करने हेतु आदरणीय सहयोगी जी का हृदय से आभार।
— रघुवीर शर्मा, खण्डवा
(6)
समर्थ नवगीतकार अवनीश सिंह चौहान जी के नवगीत समकालीन विद्रूपताओं को इंगित करते हैं— "चीलगाह जैसा है मंजर/ लगती भीड़ मवेशी।" बाजारवाद के समंदर में जकड़े हुए इस युग पर वह बिल्कुल सटीक लिखते हैं। एक रचनाकार का यही युगबोध है और उत्तरदायित्व भी। तो "भइया मेरा बता रहा था/ कोचिंग भी है कला अनूठी" की अभिव्यक्ति वर्तमान का आईना है। बावजूद इसके वे उद्घोष करते हैं कि "चौतरफा/ जीवन ही जीवन/ कविता मरे/ असंभव है।" विसंगतियों भरे इस परिवेश में नवगीत के माध्यम से सकारात्मक संदेश प्रदान करने की उनकी स्पष्ट शैली नवगीत विधा को समृद्ध करती है। बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी चौहान जी को शानदार रचनाधर्मिता के लिए बधाई।
— डॉ शैलेश गुप्ता 'वीर', फतेहपुर
(7)
आज स्वास्थ्यगत परेशानी के कारण भैया अवनीश जी के गीतों पर टिप्पणी नहीं कर पाया, इसके लिए क्षमा चाहता हूँ। अभी डॉक्टर से मिलने जा रहा हूँ।
— जयप्रकाश श्रीवास्तव, जबलपुर
(8)
‘नवगीत कुटुंब’ के इस समृद्ध पटल पर मेरे नवगीतों पर अभिमत देने वाले सभी महानुभावों के प्रति मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ। साथ ही, इस पटल पर मौन रहकर स्नेह और आशीर्वाद प्रदान करने वाले सभी आदरणीय जनों का भी हार्दिक आभार।
— अवनीश सिंह चौहान, वृन्दावन
(9)
आज की चर्चा में सम्मिलित सभी मित्रों का आभार।
— शिवानंद सिंह 'सहयोगी', वाराणसी
पूर्वाभास के एक पाठक की प्रतिक्रिया
‘नवगीत कुटुंब’ के इस समृद्ध मंच पर हाल ही में डॉ. अवनीश सिंह चौहान के नवगीतों पर सार्थक चर्चा हुई। अवनीश जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी रचनाकार हैं, जिनकी कविताओं और नवगीतों में जीवन-संवेदना, सामाजिक यथार्थ और नवीन दृष्टि का अद्भुत समन्वय दिखाई देता है।
प्रस्तुत नवगीतों में कहीं आशा और जिजीविषा का स्वर मुखरित है, तो कहीं समकालीन समाज की विषमताओं, स्पर्धा और बाजारवाद की आलोचना व्यंजित होती है। उनके गीत भाषा की सादगी, अनुभूति की गहराई और विचार की प्रखरता के कारण पाठकों एवं श्रोताओं को विशेष रूप से आकर्षित करते हैं।
चर्चा में सम्मिलित सभी साहित्य-प्रेमियों ने अपनी-अपनी दृष्टि से गीतों की अर्थवत्ता और सामयिक प्रासंगिकता पर विचार व्यक्त किए। मौन रहकर भी आशीर्वाद देने वाले सभी वरिष्ठ जनों की उपस्थिति ने इस विमर्श को और अधिक गरिमामय बना दिया।
इस सफल आयोजन हेतु ‘नवगीत कुटुंब’ और सहयोगी साथियों का हृदय से आभार।
— डॉ प्रियंका चौहान, ग्वालियर
Discussion on the Hindi lyrics of Abnish Singh Chauhan at Navgeet Kutumb
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